कहते हैं, झारखंड की राजधानी रांची को जमशेदपुर से जोडऩे वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-33 पर इन दिनों मौत दौड़ती है. 125 किलोमीटर में फैला यह राजमार्ग 'मौत की सड़क' के तौर पर भी कुख्यात होता जा रहा है. घबराइए नहीं, इस राजमार्ग को कोई शाप नहीं मिला है और न ही इस पर कोई मनîस छाया है बल्कि यह प्रशासनिक लापरवाही का शिकार है. और इसी वजह से पिछले 20 दिन में आठ लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं. इस राजमार्ग पर खासकर बुंडू और तमाड़ के बीच पडऩे वाला करीब 50 किलोमीटर का हिस्सा तो अब घोषित डेंजर जोन बन चुका है जहां यह पता नहीं होता कि मौत किस वक्त, किसे अपना शिकार बनाएगी. 13 अप्रैल को हुए एक सड़क हादसे में यहां सात लोगों की मौत हो गई थी.
बुंडू, तैमारा घाटी और तमाड़ के इन हिस्सों में सड़कों पर तकरीबन 40 तीखे और बेहद ही खतरनाक मोड़ और ऊंची-नीची घाटियां हैं और बचा-खुचा काम खस्ताहाल सड़कें कर देती हैं. राज्य पथ निर्माण विभाग की वेबसाइट बड़ी ही ईमानदारी से इस बात को स्वीकार करती है कि राज्य की सड़कें खस्ताहाल हैं और तीखे और खतरनाक मोड़ की वजह से सुरक्षित नहीं हैं.
2011 में इस मार्ग पर जब एक भीषण दुर्घटना में 22 यात्री अपनी जान से हाथ धो बैठे थे तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को काफी किरकिरी झ्ेलनी पड़ी थी. मुंडा ने उस समय एक पखवाड़े के भीतर सड़क के सारे गड्ढों को भरने का आदेश दिया था. सरकार के आदेश के बाद कितने गड्ढे भरे गए, उसकी किसी ने गिनती तो नहीं की लेकिन राज्य सरकार और केंद्र के बीच इन टूटी और खस्ताहाल सड़कों के हालात पर जुबानी जंग जरूर छिड़ गई. मुंडा ने तब आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार झारखंड से गुजरने वाले राजमार्गों की मरम्मत के लिए फंड नहीं देती. मुंडा अब भी वही दोहराते दिखते हैं, ''बीजेपी शासित राज्यों खासकर झारखंड के प्रति केंद्र का रवैया नकारात्मक रहा है. मैंने दर्जनों बार केंद्र को झारखंड के राजमार्गों के लिए राशि मुहैया करवाने का निवेदन किया लेकिन उसे अनसुना किया गया. स्वीकृति देने में हमेशा देरी की गई. इन सड़कों से खनिज से लदे हजारों ट्रक गुजरते हैं जिससे सड़कें खराब होती हैं. मुनाफा केंद्र कमाता है और नुकसान राज्य उठाता है. ''
लंबी जद्दोजहद के बाद पिछले साल दिसंबर में राष्ट्रीय राजमार्ग 33 को चौड़ा करने और फोर लेन में तब्दील करने की मंजूरी दी गई. पहले चरण में अमचुरिया जमशेदपुर की 18 किलोमीटर लंबी सड़क को दुरुस्त करने का प्रस्ताव है. इसी क्रम में बुंडू (गोसाईडीह), जोजोडीह (तमाड़) और रंगामाटी (चांडिल) के बीच काम शुरू हो गया है. पथ निर्माण विभाग की प्रधान सचिव राजबाला वर्मा कहती हैं, ''आपको जल्द ही बेहतर सड़कें देखने को मिलेंगी. काम शुरू हो गया है. ''
लेकिन इस पूरी कहानी का खतरनाक हिस्सा यह है कि मौत वाली सड़क के रूप में बदनाम हो चुके इस राजमार्ग पर कोई भी ट्रॉमा सेंटर नहीं है जिससे घायल लोगों की जान बचाई जा सके. 3 अप्रैल को जब केंद्रीय सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्री सी.पी. जोशी इस राजमार्ग के एक अन्य हिस्से के निर्माण के शिलान्यास कार्यक्रम में आए थे तब भी उन्होंने ट्रॉमा सेंटर की कोई बात नहीं कही थी. फिलहाल राज्य के हाइवे पर दो ही ट्रॉमा सेंटर हैं—बहरागोड़ा और नगरउटारी गढ़वा. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के नियम के अनुसार प्रत्येक 50 किलोमीटर की दूरी पर एंबुलेंस, 100 किलोमीटर पर एक ट्रॉमा सेंटर और 300 किलोमीटर पर एक सुपर सुपरस्पेशियालिटी हॉस्पिटल होना चाहिए. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी यह तो कहते हैं कि फंड समस्या नहीं है लेकिन सेंटर न होने के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं.
तैमारा घाटी किलर जोन के तौर पर पहचानी जाती है. इस घाटी में प्रवेश करने से पहले बुंडू में सड़क की बाईं तरफ देवी काली और हनुमानजी का एक छोटा-सा मंदिर है. इस राजमार्ग से गुजरने वाली हरेक गाड़ी के चालक यहां रुककर चढ़ावा जरूर चढ़ाते हैं. अब यह मान्यता बन गई है कि यहां पैसे चढ़ाने से दुर्घटना नहीं होती. लेकिन जिनकी जान गई, उनके लिए भगवान जिम्मेदार है या वह प्रशासन, जिसका काम सड़कों को दुरुस्त करना है.