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कुछ खास हैं मिथिला के आम

बिहार के मिथिलांचल के एक इलाके में आम महोत्सव के जरिये लोगों ने दिखाया कि उनके यहां कई किस्म के आम पाए जाते हैं

सबकी पहुंच के भीतर : मिथिला के बगीचों में कई प्रजातियों के आम लगाए जाते हैं
सबकी पहुंच के भीतर : मिथिला के बगीचों में कई प्रजातियों के आम लगाए जाते हैं
अपडेटेड 12 जुलाई , 2022

पुष्यमित्र

अमूमन आम के मामले में मिथिला का जिक्र नहीं होता, जबकि वहां हर गांव में आम के ऐसे बगीचे मिल जाते हैं जिनमें एक साथ एक दर्जन से अधिक किस्में फलती है. स्थानीय लोग विभिन्न गांवों में उगाई जाने वाली प्रजातियों की नुमाइश करते रहते हैं. कई लोग अपने इलाके की जैवविविधता की नुमाइश करते हैं. हाल में मिथिला के एक गांव सरिसब पाही में एक अनूठा आयोजन हुआ: मिथिला आम महोत्सव. इसमें आम की 139 वेराइटी जुटाकर उनका प्रदर्शन किया.

सरिसब पाही के आयोजन के तीन दिन बाद ही 15 किमी दूर बसे एक गांव दीप के किसानों ने भी ऐसा ही एक महोत्सव कर डाला. मिथिला अमृत महोत्सव के नाम से हुए इस आयोजन में गांव के लोगों ने न सिर्फ आम की 151 किस्मों का प्रदर्शन किया, बल्कि उन्होंने अपने इलाके की 51 प्रकार की मछलियां, पांच तरह के पान और पांच तरह के मखान का भी प्रदर्शन किया. एक तरह से यह मिथिला की जैव विविधता का प्रदर्शन था.

मिथिला के विविध प्रसंगों पर शोध एवं लेखन करने वाली कुमुद सिंह कहती हैं, ''हमारी जानकारी में मिथिला में कभी आम की 171 किस्में हुआ करती थीं. 1890 के दशक में दरभंगा राज में एक बाटनिस्ट हुआ करते थे चार्ल्स मैरिस. उन्होंने दरभंगा के आनंद बाग में आम की सौ से अधिक किस्म के पौधे लगाए थे, उनमें से 40 किस्मों को उन्होंने खुद विकसित किया. इसका जिक्र उनकी किताब कल्टीवेटेड मैंगोज ऑफ इंडिया में है. आज सरिसब पाही और दीप गांव में लोगों ने इनमें से 151 किस्मों का प्रदर्शन कर के यह संदेश दिया है कि सवा सौ साल बाद भी आज यहां आम की विविध किस्में जिंदा हैं.’’

आम की किस्में
1. मिथिला में आम की कोई अलग किस्म यहां की पहचान नहीं है. मिथिला के आम के बगीचों की खासियत यह है कि यहां छोटे से छोटे बगीचे में भी कई तरह के आम मिलते हैं.
2. यहां अप्रैल-मई में पकने वाले जर्दा आम से लेकर अगस्त-सितबंर तक में पकने वाले जलमरई और स्वर्णरेखा आम तक एक ही बगीचे में मिल जाते हैं.

3. ज्यादातर बगीचों में एक दर्जन से लेकर 51 किस्मों तक के आम आसानी से मिलते हैं.
4. लोग दुर्गापूजा के मौके पर भी देवी को आम का भोग लगाना चाहते हैं. 
5. यहां एक बरमसिया आम भी है, जो साल में दो से तीन बार तक आम का फल देता है.
6. माना जाता है कि दरभंगा राज के बॉटेनिस्ट चार्ल्स मैरिस के लगाए बगीचे से आम की अलग-अलग किस्मों को पड़ोस के गांव के लोग अपने यहां ले गए. इससे दूसरे इलाके में भी अलग-अलग किस्म के आम के पेड़ लगाने का चलन शुरू हुआ.

मिथिला की परंपरा में आम
1. आम मिथिला के जन-जीवन का अहम हिस्सा है. जन्म से लेकर मरण तक यहां के लोगों को आम की जरूरत होती है. हर आयोजन में आम का पल्लव इस्तेमाल होता है. यज्ञ-हवन से लेकर दाह संस्कार तक आम की लकड़ियां इस्तेमाल होती हैं. 
2. आम के अचार को भी लोग खूब पसंद करते हैं, आज भी कई घरों में 51 किस्म के आम के अचार आसानी से मिल जाते हैं. 

3. लोग पूर्वजों की समाधि पर कम से कम पांच पेड़ लगाते हैं. उनमें एक आम होता है.
4. मिथिला में आम के बगीचों को दान करने की भी परंपरा रही है. 
5. मंदिर प्रांगण और पुजारियों की आजीविका के लिए आम का बगीचा लगा कर छोड़ देने की भी परंपरा रही है.

आम की कुछ खास किस्में
1. सजमनिया: इसका आकार लौकी जैसा होता है. कोई एक आम खा ले तो फिर उसे पूरे दिन कुछ खाने की जरूरत नहीं होती.
2. सेरहा: यह काफी बड़ा होता है. एक आम का वजन एक किलो के बराबर होता है.
3. कर्पूरिया-धुमनाहा: कर्पूरिया आम से कपूर और धुमनाहा से धुम्मन की खुशबू आती है. दोनों आम अधिक नहीं खाए जा सकते.

4. लक्ष्मेश्वर भोग: दरभंगा के राजा लक्ष्मेश्वर सिंह के नाम पर विकसित इस किस्म में काफी गूदा होता है. यह बहुत मीठा होता है. 
5. पाहुन पदौना: यह खट्टा और मीठा दोनों होता है. यह बहुत फलता है, इतना ज्यादा कि इसे खाते-खाते मेहमान भी थक जाते हैं. इसलिए इसका नाम पाहुन पदौना रखा गया है. 
6. सपेटा: यह मिथिला के आम की सबसे स्वादिष्ट किस्म है. इसमें गूदा ज्यादा होता है और खुशबू भी अच्छी होती है. बीज और छिलके बहुत पतले होते हैं.

7. चोरबा अभोग: नाम से जाहिर है, यह चुराकर खाने वाले को भोग नहीं होता. कहा जाता है कि चोर इसे चुराने का प्रयास करते, पर चुरा नहीं पाते थे. यह केरबी प्रजाति का है.
8. डोमा बंबई, नेजरा बंबई और सब्जा बंबई: ये बंबई आम की स्थानीय प्रजाति हैं. इसमें गूदा और रस दोनों पर्याप्त होता है. यह फलता अधिक है.
9.सेरहा, सजमनिया, राएढ़, शुकुल: ये अचार बनाने में ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. 
10. मुफर्रस: यह अलफांसों की स्थानीय किस्म है. 

बीजू है मैथिलों की पहली पसंद
1. पूरे देश में कलमी आम लगाने की परंपरा रही है, पर मिथिला के इस इलाके में बीजू यानी बीज से उगे आम लगाने की विशेष परंपरा है. इसकी वजह यह है कि कमली आम गरम और पेट के लिए नुक्सानदेह होता है. 
2. महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के बगीचे में ज्यादा बीजू आम के पेड़ थे. उनके बाटनिस्ट चार्ल्स मैरिस ने देशभर से कलमी आम को जुटाकर उनके बीजों को यहां रोपा. ये बाग आज भी मौजूद हैं.

मिथिला के आम का इतिहास
1. मिथिला के कई गांवों में बुद्धेश बगीचा नामक आम के बगीचे होते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि ये बगीचे बुद्ध के जमाने के हैं, क्योंकि बुद्ध को आम बहुत पसंद था.
2. हाल में मिथिला में उत्खनित कर्नाट कालीन मूर्तियों में आम भी नजर आते हैं.
3. आईन-ए-अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह अकबर ने दरभंगा में एक लाख पेड़ों वाला एक आम का बगीचा लगवाया था, जिसे लक्खा बाग कहते थे.

4. उस जमाने में एक ऐसे बागीचे का भी जिक्र आता था, जिसमें ठंड के दिनों में आम फलता था. उसे कतिका यानी कार्तिक महीने का आम कहा जाता था.
5. राजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने यार्कशायर से मशहूर बॉटनिस्ट चार्ल्स मैरिस को दरभंगा बुलाया था. वे यहां 1882 से 1898 तक रहे. उनका लगाया आम का बगीचा कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय में आज भी मौजूद है.

6. चार्ल्स मैरिस ने यहां रहते हुए ही कल्टीवेटेड मैंगोज ऑफ इंडिया लिखी. उस किताब में यहां की सौ से अधिक आम की किस्मों का जिक्र है. आम की 40 प्रजातियों का तो सचित्र और विस्तृत वर्णन है.
7. यहां के राजा और जमींदार पहले आम के बगीचों से कर नहीं लेते थे. इन बगीचों वाली जमीन बकौली जमीन कही जाती थी. इसलिए भी यहां के लोगों में आम के बगीचे लगाने की परंपरा रही है.

ऐसे हुए दोनों आयोजन

सरिसब पाही में 7-9 जून तक चले मिथिला आम महोत्सव की योजना इसी गांव के निवासी मदन झा की थी. वे दिल्ली में रहते हैं. वे पहले भी दिल्ली प्रेस क्लब में मिथिला आम महोत्सव करते रहे हैं. मगर उन महोत्सवों में आम की विभिन्न किस्में नहीं होती थीं. उनकी इच्छा अपने इलाके के आम के प्रभेदों को दुनिया के सामने लाने की थी. उन्होंने बताया कि पिछले एक साल से उनके मन में ऐसे आयोजन की योजना थी. मगर यह वे जानते थे कि ऐसा आयोजन उनके गांव में ही हो सकता है, दिल्ली में नहीं.

मदन झा इसके लिए लगातार अपने इलाके के आम के बड़े बगीचों के मालिकों से संपर्क में रहे और उनसे सहयोग मांगा. दो जून को इस आयोजन के लिए जब वे गांव पहुंचे तो लगभग पूरी तैयारी हो चुकी थी. 15-16 बड़े किसानों ने वादा किया था कि वे तय तारीख को आम लेकर पहुंच जाएंगे. गांव में उनके साथी अमल झा, विक्की मंडल, नवीन कुमार झा, उदय मिश्र और उद्धव झा लगातार जुटे थे.

एक दिन पहले से आम आने शुरू हो गए. नैजरा गांव के पुराने बगीचे से 25 किस्म के आम आए और दीप से 21 किस्म के. सरिसब पाही और पास के गांवों से आम जुटाए गए. पहले लक्ष्य 51 किस्मों के आम की प्रदर्शनी का था. पर पहले दिन आम के सौ से अधिक प्रभेद जुट गए. फिर गांव के किसान सक्रिय हुए और उन्होंने आसपास से ढूंढकर खूब आम जुटाए तथा इनकी संख्या 139 पहुंच गई.

इस उपलब्धि के बाद प्रदर्शनी की तारीख को दो दिन बढ़ाया गया. पहले सिर्फ 7 जून को प्रदर्शनी थी. इस बीच आसपास के गांवों और दूरदराज से लोग, आम प्रेमी और वैज्ञानिक आते रहे. आयोजन इतना सफल रहा कि प्रतिस्पर्धा में दीप गांव के लोगों ने भी अपने यहां इससे बड़ा आयोजन कर डाला. 

मिथिला के विविध आमों के नाम
प्रिय व्यक्ति, स्थान या देव के नाम पर विकसित आम
गोपालभोग, शाह पसीन, हनुमान भोग, सीता भोग, कामिनी, लक्ष्मीश्वर भोग, राधा भोग, दुर्गा भोग, महमूद, मोइनुद्दीन खरबूजा और गुलाब कहार आदि.

किसी खास स्वाद के आधार पर विकसित आम
लड्डूबा, सजमनियां, कर्पूरिया, केरवा, मिश्री भोग, चीनी भोग, बथुआ, गुलाब पाल, दुधिया, करैलबा और ककरिया आदि.

बाहरी आम की देसी किस्म
जर्दा, जर्दालू, बंबई, डोमा बंबई, मालदह, नेजरा मालदह, गुलाबखास, फैजली, तोता परी, शुकुल, दशहरी, कलकतिया और सिनुरिया आदि.

आम की अन्य किस्में
सपेटा, दैरमी, रोहिनियां, पाहुन पदौना, कटिनिया भोग, रूदल भोग और बरमसिया आदि.

 मखाना के प्रकार
किर्री, रसगुल्ला, हैंडपिक, फूल, मिक्स

मिथिला की मछलियों की किस्में
रोहू, भांकुर, नैनी, दरही, सिंगही, मांगुर, रेवा, भुनचट्टी, सौरा, भौंड़ा, कोतरा, गैंची, पतासी, चेलवा, डेरहा, कौवा माछ, ग्रास क्रॉप, सिल्वर क्रॉप और थाई मांगुर आदि.

 पान की किस्में
कलजोरिया, देसी, बंग्ला, कलकतिया, सांची.

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