जमशेदपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित जादूगोड़ा कल तक यूरेनियम की खानों और उससे जुड़े रेडिएशन की वजह से जाना जाता था. झारखंड का यह शहर अब बड़े घोटाले की वजह से चर्चा में है. जादूगोड़ा की यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआइएल) में काम करने वाले कर्मचारी कमल सिंह ने पैसा दोगुना करने और भारी-भरकम ब्याज देने के नाम पर करीब 8,000 लोगों को करोड़ों रुपए का चूना लगा दिया. फिलहाल वह फरार है और उसके घर पर पुलिस का पहरा है. अपना पैसा गंवा बैठे सैकड़ों लोग रोज उसके घर आ रहे हैं.
कमल की चालबाजी में उसका भाई दीपक सिंह भी कथित तौर पर शामिल है. वे लोगों को कहते थे कि उनका पैसा रियल एस्टेट और मुनाफे देने वाली कंपनी के शेयर खरीदने में लगाया जाएगा. वे एक लाख रु. प्रति माह 5,000 रु. ब्याज पर देने का वादा करते. शुरू में वे ऐसा करते भी ताकि बाजार में उनकी साख बने. उन पर भरोसा करके कइयों ने पांच से 20 लाख रु. तक लगाए. लेकिन एक दिन अचानक उन्हें बता दिया गया कि अमेरिकी बाजार में भारी गिरावट से उनके पैसे डूब गए हैं. ठगी की यह बात जनवरी में ही सामने आ चुकी थी जिसकी तस्दीक अब जाकर हुई है.
कुछ सामाजिक संस्थाओं जैसे इंडियन डेमोक्रेटिक ह्यूमन राइट ऑर्गेनाइजेशन ने पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त और एसपी को इस बारे में लिखित शिकायत की थी. जनवरी में याचिकाकर्ता संजय लकड़ा ने झारखंड हाइकोर्ट में एक रिट भी दाखिल की थी. उनके वकील राजीव कुमार कहते हैं ''हम लोगों ने कोर्ट के माध्यम से सरकार से यह जानकारी मांगी है कि झारखंड में कितनी चिट फंड कंपनियां रजिस्टर्ड हैं. क्या ये कंपनियां रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का पालन करती हैं? यह अरबों रु. का घोटाला है और ऐसे घोटाले बिना राजनैतिक और प्रशासनिक संरक्षण के नहीं होते. इसकी जांच सीबीआइ और ईडी से होनी चाहिए. ''
दीपक ने अपनी राज कॉम मोबाइल कंपनी को रजिस्टर्ड चिटफंड कंपनी बताते हुए इस धंधे में अपने भाई कमल का साथ दिया. इस कंपनी के मालिक दीपक और कमल हैं. दोनों भाइयों ने 2007 से ही ठगी का धंधा शुरू कर दिया था और पचासों एजेंट बहाल कर रखे थे. यह सब प्रशासन की नाक के नीचे होता रहा. जादूगोड़ा के थाना प्रभारी एन.के. दास कहते हैं, ''अब तक 169 लोगों ने ठगी की शिकायत दर्ज कराई है. अभी वे दोनों फरार हैं. जांच शुरू की गई है. कितने की ठगी हुई है यह कह पाना अभी संभव नहीं है. ''

ठगी के शिकार लोगों का कहना है कि दोनों भाइयों ने बड़े पैमाने पर अपना जाल बिछा रखा था, इसलिए यह ठगी करीब 1,500 करोड़ रु. की है. सिर्फ जादूगोड़ा ही नहीं बल्कि घाटशिला, जमशेदपुर के अलावा पश्चिम बंगाल, ओडिसा तक के लोग भी उनके शिकार हुए हैं. बहुतों को तो ठगे जाने की भनक ही नहीं है. अपने तीन लाख रु. गंवा बैठे जादूगोड़ा के दुलाल भगत कहते हैं. ''इस भरोसे के साथ उन्हें पैसे दिया था कि वे मुझे बेहतर रिटर्न देंगे लेकिन मेरा तो सब डूब गया. ''
कमल ठगी के धंधे से देखते-देखते ही रईस हो गया. न प्रशासन और न ही इनकम टैक्स विभाग की नजर इस बात पर गई कि मामूली पगार पाने वाला कमल कैसे एक मॉल का मालिक बन बैठा. जादूगोड़ा चौक पर पिछले ही साल उसका मॉल खुला है. कमल को जानने वाले जादूगोड़ा के सुनील कहते हैं. ''कमल शुरू से ही लोगों को अपनी बातों में फंसाने में माहिर था. ''
पश्चिम बंगाल की शारदा चिट फंड कंपनी ने प्रदेश के सैकड़ों लोगों को भी अपना शिकार बनाया था. एक और कंपनी रोज वैली के मामले में भी ऐसी ही शिकायतें आई थीं. उस समय भी राज्य सरकार कुछ ठोस उपाय नहीं कर पाई थी. पिछले साल झारखंड विधानसभा ने स्टेट इंस्टीट्यूशनल फाइनेंस के अधिनियम ''जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण नियम'' को राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेजा था जिस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इस कानून के तहत जिला मजिस्ट्रेट को ऐसे नॉन बैंकिंग और चिट फंड कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने और कड़ी सजा देने का प्रावधान है. बहरहाल सुस्त पुलिस जांच करने का दावा कर रही है. सामाजिक कार्यकर्ता रणजीत राय चिंता जताते हैं, ''अगर अपराधियों को सजा नहीं हुई और लोगों को पैसे वापस नहीं मिले तो जादूगोड़ा में आत्महत्या का दौर शुरू हो जाएगा. ''
कमल की चालबाजी में उसका भाई दीपक सिंह भी कथित तौर पर शामिल है. वे लोगों को कहते थे कि उनका पैसा रियल एस्टेट और मुनाफे देने वाली कंपनी के शेयर खरीदने में लगाया जाएगा. वे एक लाख रु. प्रति माह 5,000 रु. ब्याज पर देने का वादा करते. शुरू में वे ऐसा करते भी ताकि बाजार में उनकी साख बने. उन पर भरोसा करके कइयों ने पांच से 20 लाख रु. तक लगाए. लेकिन एक दिन अचानक उन्हें बता दिया गया कि अमेरिकी बाजार में भारी गिरावट से उनके पैसे डूब गए हैं. ठगी की यह बात जनवरी में ही सामने आ चुकी थी जिसकी तस्दीक अब जाकर हुई है.
कुछ सामाजिक संस्थाओं जैसे इंडियन डेमोक्रेटिक ह्यूमन राइट ऑर्गेनाइजेशन ने पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त और एसपी को इस बारे में लिखित शिकायत की थी. जनवरी में याचिकाकर्ता संजय लकड़ा ने झारखंड हाइकोर्ट में एक रिट भी दाखिल की थी. उनके वकील राजीव कुमार कहते हैं ''हम लोगों ने कोर्ट के माध्यम से सरकार से यह जानकारी मांगी है कि झारखंड में कितनी चिट फंड कंपनियां रजिस्टर्ड हैं. क्या ये कंपनियां रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का पालन करती हैं? यह अरबों रु. का घोटाला है और ऐसे घोटाले बिना राजनैतिक और प्रशासनिक संरक्षण के नहीं होते. इसकी जांच सीबीआइ और ईडी से होनी चाहिए. ''
दीपक ने अपनी राज कॉम मोबाइल कंपनी को रजिस्टर्ड चिटफंड कंपनी बताते हुए इस धंधे में अपने भाई कमल का साथ दिया. इस कंपनी के मालिक दीपक और कमल हैं. दोनों भाइयों ने 2007 से ही ठगी का धंधा शुरू कर दिया था और पचासों एजेंट बहाल कर रखे थे. यह सब प्रशासन की नाक के नीचे होता रहा. जादूगोड़ा के थाना प्रभारी एन.के. दास कहते हैं, ''अब तक 169 लोगों ने ठगी की शिकायत दर्ज कराई है. अभी वे दोनों फरार हैं. जांच शुरू की गई है. कितने की ठगी हुई है यह कह पाना अभी संभव नहीं है. ''

ठगी के शिकार लोगों का कहना है कि दोनों भाइयों ने बड़े पैमाने पर अपना जाल बिछा रखा था, इसलिए यह ठगी करीब 1,500 करोड़ रु. की है. सिर्फ जादूगोड़ा ही नहीं बल्कि घाटशिला, जमशेदपुर के अलावा पश्चिम बंगाल, ओडिसा तक के लोग भी उनके शिकार हुए हैं. बहुतों को तो ठगे जाने की भनक ही नहीं है. अपने तीन लाख रु. गंवा बैठे जादूगोड़ा के दुलाल भगत कहते हैं. ''इस भरोसे के साथ उन्हें पैसे दिया था कि वे मुझे बेहतर रिटर्न देंगे लेकिन मेरा तो सब डूब गया. ''
कमल ठगी के धंधे से देखते-देखते ही रईस हो गया. न प्रशासन और न ही इनकम टैक्स विभाग की नजर इस बात पर गई कि मामूली पगार पाने वाला कमल कैसे एक मॉल का मालिक बन बैठा. जादूगोड़ा चौक पर पिछले ही साल उसका मॉल खुला है. कमल को जानने वाले जादूगोड़ा के सुनील कहते हैं. ''कमल शुरू से ही लोगों को अपनी बातों में फंसाने में माहिर था. ''
पश्चिम बंगाल की शारदा चिट फंड कंपनी ने प्रदेश के सैकड़ों लोगों को भी अपना शिकार बनाया था. एक और कंपनी रोज वैली के मामले में भी ऐसी ही शिकायतें आई थीं. उस समय भी राज्य सरकार कुछ ठोस उपाय नहीं कर पाई थी. पिछले साल झारखंड विधानसभा ने स्टेट इंस्टीट्यूशनल फाइनेंस के अधिनियम ''जमाकर्ताओं के हितों के संरक्षण नियम'' को राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेजा था जिस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इस कानून के तहत जिला मजिस्ट्रेट को ऐसे नॉन बैंकिंग और चिट फंड कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने और कड़ी सजा देने का प्रावधान है. बहरहाल सुस्त पुलिस जांच करने का दावा कर रही है. सामाजिक कार्यकर्ता रणजीत राय चिंता जताते हैं, ''अगर अपराधियों को सजा नहीं हुई और लोगों को पैसे वापस नहीं मिले तो जादूगोड़ा में आत्महत्या का दौर शुरू हो जाएगा. ''