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असली हीरोः थैलेसीमिया से जंग

बेहद गंभीर बीमारी थैलेसीमिया के साथ-साथ गरीबी से भी जूझ रहीं ममता इस बीमारी के खिलाफ फैला रही हैं जागरूकता

मलिक असगर हाशमी
मलिक असगर हाशमी

आ म इनसान साधारण-सा इंजेक्शन लेने से पहले और बाद में मानसिक और शारीरिक तौर पर परेशान रहता है, लेकिन 31 वर्षीया ममता के लिए यह सामान्य बात है. उनके मुस्कराते चेहरे से अंदाज लगाना मुश्किल है कि वे डेढ़ वर्ष की उम्र से ऐसी स्थितियों से गुजर रही हैं. उसकी सेहत की नियमित निगरानी करने वाले दिल्ली अपोलो हॉस्पिटल के डॉक्टर मानस कालरा कहते हैं, ''मरीज की थोड़ी-सी लापरवाही जान पर बन सकती है.''

दरअसल, राजधानी दिल्ली से सटे फरीदाबाद की पर्वतीय कॉलोनी की ममता थैलेसीमिया जैसे गंभीर रोग से पीड़ित हैं.

फाउंडेशन एगेंस्ट थैलेसीमिया के संस्थापक रवींद्र डुडेजा के मुताबिक, ''हरियाणा में ऐसे रोगियों की संख्या करीब 1,200 है. यह रोग उनमें ज्यादा है जो बंटवारे के समय पाकिस्तान से भारत में आ बसे थे.'' ममता फाउंडेशन के कार्यों में हाथ बंटाने के अलावा अपने स्तर पर भी थैलेसीमिया को लेकर जनजागृति अभियान चला रही हैं.

थैलेसीमिया के गंभीर रोगियों को हर पंद्रह-बीस दिन पर ब्लड चढ़ाना आवश्यक है. नियमित दवाई लेना और प्रत्येक महीने चेकअप कराना भी इसके इलाज का हिस्सा है. डॉ. कालरा बताते हैं, ''इलाज और ब्लड लेने में थोड़ी भी लापरवाही शरीर के कई संवेदनशील अंगों और जीवन को नुक्सान पहुंचा सकती है.''

थैलेसीमिया से पीड़ित रहे फाउंडेशन के कोषाध्यक्ष नीरज कुकरेजा बताते हैं कि इसके रोगियों के इलाज पर 12,000 से 15,000 रु. मासिक खर्च आता है. अधिकांश रोगियों की ऐसी स्थिति नहीं है कि वे हर महीने इलाज पर इतनी मोटी रकम खर्च कर सकें. 1995 में फाउंडेशन का गठन ऐसे रोगियों को सहायता पहुंचाने के लिए किया गया था.

खुद आर्थिक तंगी की शिकार ममता कहती हैं कि थैलेसीमिया से ग्रस्त होने के कारण जब कोई उनसे शादी करने को राजी न था तब मनप्रीत प्यार बनकर उसकी जिंदगी में आए. सब कुछ जानते हुए भी उन्होंने ममता से शादी की. उनका एक पांच वर्षीय बेटा है. दूसरा गर्भ में पल रहा है. उनकी जिंदगी की गाड़ी बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ रही है. फिर भी वे इस कोशिश में हैं कि ऐसी मुसीबत किसी और को न झेलनी पड़े.

थैलेसीमिया रोगियों की ब्लड की आपूर्ति के लिए फाउंडेशन प्रत्येक महीने हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों में रेड क्रॉस, एम्स और दूसरे संस्थानों की मदद से पांच से छह ब्लड डोनेशन कैंप लगवाता है. ममता कहती हैं कि थैलासीमिया रोगियों को कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. वे रोगियों को ये बातें बताने का काम पिछले दस-पंद्रह वर्ष से कर रही हैं.

गौरतलब

ममता डेढ़ साल की उम्र से थैलासीमिया से पीड़ित हैं

इसके गंभीर रोगियों को हर पंद्रह-बीस दिन पर ब्लड चढ़वाना होता है

ममता थैलेसीमिया रोगियों को बरतने वाली सावधानियों के बारे में जागरूक करती हैं

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