scorecardresearch

60 % लोगों का कहना है कि प्रियंका गांधी को राहुल गांधी की जगह नहीं लेनी चाहिए

38 फीसदी लोगों का मानना है कि अगले पांच साल में कांग्रेस खुद को दुरुस्त कर लेगी जबकि 50 फीसदी लोग मानते हैं कि अब उसके पास वापसी का कोई मौका नहीं है.

अपडेटेड 1 सितंबर , 2014
कभी देश की सत्ता का केंद्र रहे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय के अपने ऑफिस में बैठे हुए पार्टी के एक दिग्गज नेता ने ए.के. एंटनी कमेटी की रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले ही उसे आड़े हाथों लेते हुए टिप्पणी की थी, ''यह सब राजनैतिक रस्मबाजी है. आपको रस्में निभानी पड़ती हैं. लेकिन बात यहीं खत्म हो जाती है.”

यह कमेटी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी पराजय का जायजा लेने के लिए बनाई गई थी. इस रिपोर्ट को कमेटी के चार सदस्यों ने निचले क्रम के पार्टी नेताओं के साथ चुनावी हार की वजहों और समाधानों पर विस्तार से चर्चा के बाद तैयार किया. यही कि क्या गलत हुआ और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है. इस रिपोर्ट को पूर्व रक्षा मंत्री एंटनी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंपा था.

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी कार्यसमिति की बैठक में इस पर चर्चा की जाएगी जहां सोनिया गांधी के अलावा पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मौजूद होंगे. इसके अलावा वे सभी वरिष्ठ नेता भी वहां होंगे जो अब पूरी तरह निराश हो चुके हैं. इन वरिष्ठ नेताओं ने ही अपने स्वार्थ के लिए वोटरों की ओर से उठ रही नए किस्म की राजनीति की मांग को लगातार नजरअंदाज किया है.

इसी का नतीजा है कि पार्टी को चुनाव में इतनी शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है. देश का मिजाज जनमत सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस का समर्थन करने वाले लोग भी चाहते हैं कि पार्टी नेतृत्व अब अपने तरीकों में बदलाव ले आए.

यूपीए-2 का समूचा कार्यकाल एक प्रकार से ऐसे हताश वरिष्ठ पार्टी नेताओं और राहुल गांधी तथा उनकी उस टीम के बीच वर्चस्व का संघर्ष रहा है जिसे सितंबर 2007 में पार्टी महासचिव बनने के बाद राहुल ने खड़ा किया था. अपेक्षा के अनुरूप एंटनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में गांधी परिवार को हार का दोषी बताने से परहेज किया है. दूसरी ओर, उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार की नाकामियों को पार्टी के पतन का जिम्मेदार माना है. इनमें महंगाई से लेकर भारी भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दे भी शामिल हैं.
प्रियंका गांधी
इस सर्वेक्षण में जिन लोगों ने प्रतिक्रिया दी है, वे कहीं ज्यादा इस बात को लेकर स्पष्ट सोच रखते हैं कि कांग्रेस का असल मर्ज क्या है. अगर 60 फीसदी लोग यह मानते हैं कि राहुल गांधी की नेतृत्व शैली पार्टी को दीर्घकालिक चुनावी फायदा नहीं दे सकती तो आधे लोगों का मानना है कि कांग्रेस के पास अब वापसी करने का कोई मौका नहीं बचा है. सब कुछ हालांकि नष्ट भी नहीं हुआ है: 38 फीसदी लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि अगले पांच साल में कांग्रेस अपने संकट से उबरेगी. मजे की बात देखिए कि यह संख्या लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को मिले वोट फीसद के तकरीबन बराबर है.

पार्टी की ओर से नियुक्त कोई और कमेटी होती तो वह भी रस्म अदायगी की तर्ज पर मनमोहन सिंह की सरकार को ही हार का दोषी मानती क्योंकि कांग्रेसी अपनी सार्वजनिक बयानबाजी में गांधी परिवार के प्रति वफादारी दिखाने से कभी नहीं चूकते. इसके बाद चोरी-छुपे निजी बातचीत में वे स्वीकार करते हैं कि पार्टी नेतृत्व को अतीत के मुकाबले अब और ज्यादा सटीक तरीके से बदलाव का प्रतिनिधित्व करना चाहिए.

राहुल गांधी के साथ पिछले कुछ वर्षों से लगातार काम करते रहे, पार्टी के एक पूर्व सचिव कहते हैं, ''वे (सोनिया और राहुल) हमारे नेता हैं, हमें लगातार प्रेरित करते रहे हैं और हमारा नेतृत्व करते रहे हैं.” हालांकि वे मानते हैं कि पार्टी को नेशनल यूथ कांग्रेस और नेशनल स्टुडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआइ) को लेकर राहुल गांधी के विशेष लगाव की भारी कीमत चुकानी पड़ी है. वे कहते हैं, ''चुनाव कांग्रेस लड़ती है, उसके सहयोगी संगठन नहीं.

उन्हें पार्टी पर अपना ध्यान लगाना चाहिए था, बाकी सब अपने आप ठीक हो जाता.”  यूपीए सरकार में मंत्री रह चुके राहुल गांधी की टीम के एक अन्य सदस्य कहते हैं कि आलाकमान में भ्रम की स्थिति यानी निर्देश देने में अव्यवस्था होने की वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है. उनके शब्दों में, ''फैसले राहुल गांधी ने ही लिए, फिर भी यह बात सार्वजनिक तौर पर संप्रेषित नहीं हो सकी. मतदाता इस भ्रम में रहा कि राहुल अपनी जिम्मेदारियों से बच रहे हैं.” पुराने नेताओं की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा को तुरुप के नए पत्ते के रूप में पेश करने के प्रयासों ने इस भ्रम को और मजबूत किया.

कांग्रेस का नेतृत्व गांधी खानदान में कौन करे? इस सवाल पर सर्वे में शामिल हर तीन में से तकरीबन दो व्यक्तियों का मानना था कि कांग्रेस के नए नेता के तौर पर प्रियंका गांधी को राहुल गांधी की जगह नहीं लेनी चाहिए. अभी हाल में पार्टी के महासचिव पद के लिए प्रियंका गांधी का नाम उछलने लगा था तो प्रियंका ने खुद इस बात का खंडन किया था कि वे संगठन में कोई भूमिका लेने वाली हैं. पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब भी कांग्रेस से प्रधानमंत्री पद के चहेते उम्मीदवार बने हुए हैं.

यह तथ्य भी इस सर्वे में सामने आया है. इस मामले में करीब 30 फीसदी लोग उन्हें प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी से ऊपर तरजीह देते हैं. इस परिवार के साए से बाहर के चेहरों में सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और मिलिंद देवड़ा आदि को बमुश्किल एक से तीन फीसदी लोगों ने पसंद किया है.

इस सर्वे में शामिल करीब 40 फीसदी लोगों ने बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को या तो श्रेष्ठ या अच्छा आंका है. करीब आधे लोगों (48 फीसदी) ने माना कि लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद पर कांग्रेस का ही दावा बनता है. लोकसभा अध्यक्ष ने भले ही कांग्रेस के दावे को ठुकरा दिया हो, लेकिन लोग साफ तौर पर यह चाहते हैं कि पार्टी एक असरदार विपक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करे.

चापलूस कांग्रेसियों को एक किनारे रख दिया जाए तो आखिरकार वे सामान्य लोग ही हैं जो पार्टी के पक्ष या विपक्ष में वोट देते हैं. अब वे लोग आगे कैसे वोट देंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी अपने मौजूदा नेतृत्व के सहारे किस तरह खुद को तैयार करती है और जीत के लिए लोगों के सामने कैसे पेश करती है.