अपनी तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) योजना के तहत, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने इसकी बढ़ती गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के मद्देनजर सरकार के स्वामित्व वाले देना बैंक से ताजा ऋण जारी करने या कर्मियों की भर्ती करने से बचने को कहा है.
11 मई को देना बैंक ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए 1,924 करोड़ रु. का शुद्ध घाटा घोषित किया था, जो लगातार तीसरे वर्ष घाटे में था. पिछली तिमाही में इसका सकल एनपीए 2,192 करोड़ रु. बढ़कर 16,361 करोड़ रु. (मार्च, 2018 के अंत तक) हो गया. आरबीआइ ने इलाहाबाद बैंक को भी भारी जोखिम वाले उधार देने और ऊंची लागत वाली जमा से भी प्रतिबंधित कर दिया है.
ये दोनों बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के उन 11 बैंकों में शामिल हैं, जिन पर रिजर्व बैंक उनकी कमजोर वित्तीय हालत के कारण ‘कड़ी नजर’ रख रहा है. केंद्रीय बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के खराब ऋणों में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं. दिसंबर, 2017 में देश के सभी बैंकों का सकल एनपीए 8.4 लाख करोड़ रु. था. जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों का था.
फरवरी में रिजर्व बैंक ने मोटे खराब ऋणों के मामलों को निबटाने में धीमी गति से चलने वाले बैंकों पर कोड़ा चलाया था, यहां तक कि उनका निबटारा करने के लिए एक विशिष्ट समय-सीमा भी निर्धारित कर दी थी—2,000 करोड़ रु. या इससे अधिक के एनपीए के मामलों में छह महीने, जिसमें असफल रहने पर बैंकों को ऐसे मामलों को अनिवार्य रूप से नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) को दिवालिया कार्यवाही के लिए भेजना होगा.
रिजर्व बैंक ने विभिन्न निबटारा योजनाओं की परिभाषाएं भी जारी की हैं और वित्तीय कठिनाई की एक सांकेतिक सूची भी जारी की है, बैंकों को कुछ डिफॉल्टरों के बारे में डेटा बड़े एक्सपोजर के आरबीआइ के डेटाबेस के साथ साप्ताहिक आधार पर साझा करने का निर्देश दिया गया है.
100 करोड़ रु. से 2,000 करोड़ रु. के एक्सपोजर वाले खातों के लिए दो साल की अवधि में निबटारे की एक समयसारिणी की घोषणा की जाएगी. निबटारे का मौजूदा ढांचा और संयुक्त कर्जदाताओं का मंच (जेएलएफ) समाप्त कर दिया गया है. जेएलएफ कर्जदाता बैंकों का इसी कार्य के लिए बनाया गया एक समूह होता था, जो उस वक्त गठित किया जाता था, जब 100 करोड़ रु. या उससे अधिक की परिसंपत्ति (ऋण) एनपीए बन जाती थी.
इस दौरान, अगर अन्य पीएसबी के त्रैमासिक आंकड़े पूंजी का और आगे क्षरण होता दिखाते हैं या खराब ऋणों में अप्रत्याशित वृद्धि दर्शाते हैं, तो और अधिक सरकारी बैंक पीसीए के तहत आ सकते हैं. जिन बैंकों पर निगाह बनी हुई है, उनमें यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, कॉर्पोरेशन बैंक, आइडीबीआइ बैंक लिमिटेड, यूको बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और बैंक ऑफ महाराष्ट्र हैं. अक्तूबर, 2017 में केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 2.11 लाख करोड़ रु. की योजना की घोषणा की थी, लेकिन उसके साथ बहुत जिम्मेदारियां जुड़ी हुई थीं.
ञक्रिसिल के वरिष्ठ निदेशक कृष्णन सीतारामन कहते हैं, ‘‘पुनर्पूंजीकरण योजना ने जिक्वमेदार बैंकिं़ग का दबाव बढ़ा दिया है.’’ लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. ऊपर बताए गए 11 सरकारी बैंकों में पूंजी निवेश योजना के 52,311 करोड़ रु. लगाए गए हैं.
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