
साल का पेशेवर 2021
प्रधानमंत्री के राजनैतिक रसूख से जुड़ी बड़ी परियोजनाओं को अमली जामा पहनाने की वजह से वास्तुकार बिमल पटेल को शोहरत मिली है और साथ ही विवाद में भी रहे हैं.
काइ फ़्रीज़
बीते दो साल बेशक यादगार रहे, पर इनमें मोटे तौर पर किसी ऐतिहासिक महत्व के निर्माण कार्य का जश्न नहीं मनाया गया. अपवाद थीं तो ऐसी कुछ परियोजनाएं जो प्रधानमंत्री के दिल के करीब हैं. अयोध्या में राम मंदिर तो है ही. काशी विश्वनाथ धाम गलियारा भी है, जिसका हाल में टेलीविजन पर भारी धूमधाम से उद्घाटन प्रसारित हुआ.
और सेंट्रल विस्टा, राजधानी के बीचोबीच इसके निर्माण स्थल पर काम की गहमागहमी तब भी बनी रही जब शहर लॉकडाउन में बंद था और बगल में संसद स्थगित थी. इन परियोजनाओं को बलपूर्वक आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका को राष्ट्रीय फलक पर उभारने के लिए जहां नरेंद्र मोदी ने तस्वीर खिंचवाने का कोई मौका नहीं छोड़ा, बाद की दो परियोजनाओं का डिजाइन तैयार करने के लिए जिम्मेदार अहमदाबाद के वास्तुकार बिमल पटेल भी सुर्खियों में आ गए.
प्रधानमंत्री की राजनैतिक प्रतिष्ठा से जुड़ी चर्चित परियोजनाओं से जुड़े होने ने (पहले उन्हें अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट के पुनर्विकास, गांधीनगर में मुख्यमंत्री के सचिवालय और दिल्ली में भाजपा के नए मुख्यालय के इंटीरियर डिजाइन का काम भी मिला था) पटेल को पेशेवर शोहरत के साथ विवाद की सौगात भी दी. सेंट्रल विस्टा के कायाकल्प पर कई आम दिल्ली वालों के अलावा खासकर वास्तुकारों, धरोहर और शहरी नियोजन से जुड़े पेशेवरों के एक मुखर तबके की त्यौरियां चढ़ गईं.

परियोजना पर लोगों का ध्यान सबसे पहले सितंबर 2019 में गया, जब ठेके के लिए जरूरी 50 लाख रुपए का 'बयाना’ देने की हैसियत रखने वाले कुछ चुनिंदा वास्तुकारों के प्रस्तावों का एक वीडियो लीक हो गया. कुछ वक्त बाद जब ऐलान हुआ कि ठेका पटेल को मिला है, तो भारी राहत की सांस ली गई कि कुछ अन्य खौफनाक प्रस्तावों (इशारा हफीज कॉन्ट्रैक्टर की ओर था) को ठुकरा दिया गया है.
फिर विजेता के डिजाइन का पैमाना और महत्वाकांक्षा समझ में आते ही बेचैनी बढ़ गई. एचसीपी के वीडियो में राजपथ के दोनों ओर कम से कम 10 नई आठ-मंजिला दफ्तरी इमारतें बनाने और रायसीना पहाड़ी की ढलान पर मौजूद सारी इमारतें गिराने का प्रस्ताव था. एक नया तिकोना संसद भवन और प्रधानमंत्री व उपराष्ट्रपति के आवास सेंट्रल विस्टा के फलक में जोड़े जाने थे और उसके साथ एक नया पीएमओ भी, जबकि ऐतिहासिक सेंट्रल सेक्रेटेरिएट और संसद भवन को संग्रहालय के मकसद से इस्तेमाल किया जाना था.
सरकार और उसकी तरफ से बदस्तूर बोलने वालों ने सबसे ऐतिहासिक सार्वजनिक जगहों में से एक को लेकर पनपते आक्रोश (कम से कम हेरिटेज हलकों में) को थामने की कम ही कोशिश की, वहीं पटेल काफी मुस्तैदी से परियोजना के प्रवक्ता बनकर उभरे. उनकी यह मुस्तैदी कम से कम शुरुआत में संभावित प्रतिकूल जनमानस का ध्यान बंटाने में असरदार भी रही.
बर्कले से शिक्षित, शालीन, मृदुभाषी और समावेशी संस्कृति के समर्थक पटेल ने तत्काल यह स्वीकार करके लाजवाब कर दिया कि योजना पर और ज्यादा सार्वजनिक विचार-विमर्श होना चाहिए था और उनकी शुरुआती डिजाइन के कुछ हिस्से (जैसे राष्ट्रीय संग्रहालय की इमारत को गिराना) गलत थे. अलबत्ता जल्द जाहिर हो गया कि उनका यह बेदाग आचरण महज शिष्टाचारवश था, न कि सुलह या समझौते का संकेत, आत्मसंदेह की तो बात ही छोड़ दें.
इस पत्रिका के साथ एक इंटरव्यू में पटेल ने बेबाक अंदाज में बताया कि उनका डिजाइन कायापलट करने वाला था पर किसी भी रूप में बाधक नहीं था. वे ''किला लोगों को सौंपकर’’ साम्राज्यिक ताने-बाने को लोकतांत्रिक बना रहे थे और साथ ही ''ठीक वही (करके) जो लुटियन्स ने किया होता’’ शायद अपने औपनिवेशिक पूर्ववर्ती के काम को ही आगे बढ़ा रहे थे. यह मानते हुए भी कि उनकी नई इमारतें ज्यादा बड़ी और भव्य हैं, उन्हें यकीन था कि ''जब कोई दूर से देखेगा, तो यही कहेगा कि सब एक जैसी हैं.’’
मगर अनुमान के मुताबिक पटेल के आलोचकों ने एडविन लुटियन्स की बजाए उनकी तुलना चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले एल्बर्ट स्पीयर से की, जो बर्लिन को महान 'जर्मेनिया’ के रूप में नए सिरे गढ़ने की एडोल्फ हिटलर की अपूरित फंतासी का वास्तुकार था. मोदी के साथ काम करने के उनके इतिहास को देखते हुए पटेल इस तुलना से भले आहत हुए हों, पर ऐसा नहीं था कि निजी हमले के लिए तैयार न हों.
उन्होंने कहा कि उनके डिजाइन का कुछ विरोध तो ''इस तथ्य की वजह से अतिरंजित था कि लोग सरकार को नापंसद करते हैं’’ और परियोजना का इस्तेमाल ''सरकार को चोट पहुंचाने के लिए फुटबॉल की तरह’’ कर रहे थे. वास्तुकार ने 2020 की शुरुआत में अपने करियर, आलोचकों और सेंट्रल विस्टा के काम पर अपने विचार वास्तुकला की प्रतिष्ठित पत्रिका लैंडस्केप में लंबी 'बातचीत’ में व्यक्त किए.
इसमें उन्होंने ''मार्क्सवादी सिद्धांत में गहरी रुचि रखने वाले’’ और ''उसके प्रभाव में आने वाले’’ वामपंथी छात्र से लेकर बाद में मोहभंग होने, खुद को ''नए सिरे से शिक्षित करने’’ और फिर सत्ता के साथ ''रचनात्मक संवाद’’ में अपना रास्ता पाने तक के अपने सफर के बारे में बताया. इसके एक खास तौर पर अर्थपूर्ण हिस्से में उन्होंने कहा: ''आप सार्वजनिक क्षेत्र में काम करना और सार्वजनिक जगहों को डिजाइन करना चाहते हैं तो सरकार के साथ काम करना पड़ेगा.
आप हाथ पर हाथ धरे विलाप नहीं कर सकते... कि सियासतदानों और अफसरशाहों को अच्छे डिजाइन की समझ नहीं है... उनकी पसंद गड़बड़ है. मैं जनहित के स्वघोषित हिमायतियों और बाकायदे निर्वाचित और जनहित में फैसले लेने के लिए नियुक्त लोगों के बीच खाई पाटने की... कोशिश करता हूं.’’
यह तरीका पटेल और उन्हें अपने पिता (2018 में दिवंगत जाने-माने वास्तुकार हसमुख पटेल) से मिली फर्म एचसीपी के लिए साफ तौर पर फायदेमंद रहा. एचसीपी के पोर्टफोलियों में ताजगी-भरी आधुनिकतावादी सांस्थानिक इमारतों से लेकर अहमदाबाद के कुलीनों के लिए आलीशान ढंग से सादगीपूर्ण घरों और शहरी भू-दृश्यों को नए सिरे से डिजाइन करने वाली विशाल परियोजनाओं के प्रभावशाली सिलसिले तक, कई चीजें हैं, जिसकी परिणति अंतत: सेंट्रल विस्टा परियोजना में हुई.
उनके आलोचकों के लिए पटेल की साफगोई महज उनके कमाऊ-खाऊ अवसरवाद का ही एक और सबूत है. असल में, लैंडस्केप में उनके विचारों के प्रकाशन ने पत्रिका के सलाहकार संपादक को इस हद तक उकसाया कि उन्होंने विरोध में इस्तीफा दे दिया. यह शुरुआती संकेत था कि वे किस कदर ध्रुवीकरण करने वाली शख्सियत बन गए हैं. बाद के अंकों में पटेल के खिलाफ चुनिंदा दिग्गजों की लिखी तीखी आलोचनाएं छपीं.
इनमें विद्वान शिव विश्वनाथन की यह जोरदार टिप्पणी भी थी: ''मुझे लगता है उनकी असल समस्या यह है कि उन्हें सत्ता का मोह है लेकिन बहसों और विवादों से खुद को बदस्तूर अलग रखना चाहते हैं. इस संदर्भ में वे लोकतंत्र का दर्जा घटाकर उसे दिखावटी शिष्टाचार में बदल देते हैं. उनकी पेशेवर सलाहियत बेशक उनके पिता से आगे है, पर उनका सामाजिकता का बोध सीमित है.’’
सेंट्रल विस्टा के वास्तुकार पटेल ऐसे तानों के अभ्यस्त मालूम देते हैं. वे महामारी से पैदा व्यवधानों से भी अविचलित लगते हैं, अदालतों में सेंट्रल विस्टा परियोजना को रोकने की कोशिशों की तो बात ही छोड़ दें. जून में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 2-1 के बहुमत से परियोजना के हक में फैसला दिया. नवंबर 2021 में उपराष्ट्रपति आवास के विरुद्ध दायर याचिका भी खारिज कर दी गई.
पूरी परियोजना पर तमाम आपत्तियों में एक यह है कि इसकी परिकल्पना, स्वीकृति और निर्माण में इतनी जल्दबाजी क्यों, लेकिन पटेल को कोई खेद या पश्चाताप नहीं है. इस पत्रिका को दिए एक संक्षिप्त बयान में उन्होंने कहा, ''हमें खुशी है कि सेंट्रल विस्टा का काम बहुत अच्छे ढंग से आगे बढ़ रहा है. इसके जरिए हम यह दिखाने की उम्मीद करते हैं कि भारत ऊंची गुणवत्तापूर्ण परियोजनाएं समयबद्ध ढंग से साकार कर सकता है.’’ बेशक इसे 2024 तक पूरा करने का वादा किया गया है—यानी अगले आम चुनाव से ठीक पहले. क्लाएंट खुश होना चाहिए.
सेंट्रल विस्टा: आंकड़ों में तस्वीर
20,000 करोड़ रु. सकल अनुमानित लागत है सभी विकास और पुनर्विकास के कामों की. सभी परियोजनाएं चरणबद्ध और क्रमिक ढंग से 2026 तक पूरी करने की योजना है
15 एकड़ रकबा है उस प्लॉट का जिस पर साउथ ब्लॉक के पास प्रधानमंत्री का नया आवास बनाया जाना है
229.75 करोड़ रु. की फीस बिमल पटेल की फर्म एचपीसी डिजाइन को दी जा रही है लुटियन्स की दिल्ली के पुनर्विकास की योजना के लिए, जिसमें नया संसद भवन और सरकारी दफ्तर भी शामिल हैं
900 सांसद बैठाए जा सकते हैं नए तिकोने संसद भवन में, एचसीपी की योजना के मुताबिक
पटेल का कहना है कि उनके डिजाइन का कुछ विरोध तो ''इस तथ्य की वजह से अतिरंजित था कि लोग सरकार को नापंसद करते हैं’’ और परियोजना का इस्तेमाल ''सरकार को चोट पहुंचाने के लिए फुटबॉल की तरह’’ कर रहे थे
पटेल का कहना है, ''सेंट्रल विस्टा का काम बहुत अच्छे ढंग से आगे बढ़ रहा है. इसके जरिए हम यह दिखाने की उम्मीद करते हैं कि भारत ऊंची गुणवत्तापूर्ण परियोजनाएं समयबद्ध ढंग से साकार कर सकता है’’
*परियोजना शुरू करने का वर्ष
काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर वाराणसी, 2014*
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद, 2000*
साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट अहमदाबाद, 1998*
गुजरात सेक्रेटेरिएट गांधीनगर, 2011*