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उत्तराखंड: गंगा किनारे है किसका घर

एक सरकारी एजेंसी ने मकान बनाया तो दूसरी एजेंसी ने जारी कर दिया गिराने का नोटिस.

अपडेटेड 6 मई , 2013

कादंबरी देवी 65 साल की उम्र में ऋषिकेश के वीरभद्र मार्ग की गली न. 8 में आवास विकास कॉलोनी में अपने 35 साल पुराने मकान को तुड़वाकर नया मकान बनवा रही हैं. लेकिन उन्हें डर है कि यह घर नहीं बचेगा. वजह है हरिद्वार विकास प्राधिकरण (एचडीए) का वह नोटिस, जिसके मुताबिक उनका घर अगले दो सप्ताह में तोड़ दिया जाएगा. कादंबरी कहती हैं, ''उनके पति ने उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद से मकान खरीदा था. ''

इसी तरह दिल्ली के अशोक विहार निवासी विपिन नैयर ने ऋषिकेश में मातृछाया आश्रम बनाया. लेकिन अब इसे ध्वस्त करने के लिए एचडीए का नोटिस मिला है. 13 मार्च, 2013 को जारी इस नोटिस में एचडीए के उपसचिव ने साफ कहा है कि अपना निर्माण स्वयं ध्वस्त करें वरना प्राधिकरण की ओर से ध्वस्त करवाया जाएगा. एचडीए  का यह डर सिर्फ कुछ लोगों को नहीं है, बल्कि हरिद्वार-ऋषिकेश के करीब 300 परिवारों को अब तक ऐसे नोटिस मिल चुके हैं. अगर यह सिलसिला जारी रहता है तो गंगा किनारे बसे तकरीबन 4 लाख परिवारों पर इस संकट की गाज गिर सकती है.

रुड़की निवासी दिनेश भारद्वाज की जनहित याचिका संख्या 103/2011 पर उत्तराखंड हाइकोर्ट की डबल बेंच ने 26 फरवरी को फैसला सुनाते हुए गंगा के दोनों ओर 200 मीटर क्षेत्र को संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया. मुख्य न्यायाधीश वारिन घोष और न्यायाधीश आलोक सिंह की खंडपीठ ने गंगा में प्रदूषण को आधार मानते हुए इस क्षेत्र में सन 2000 के बाद हुए निर्माणों को अवैध करार दिया. अदालत ने एचडीए से अवैध निर्माणों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है. अदालत की ओर से मांगी गई यही प्रगति रिपोर्ट अब एचडीए के गले की हड्डी बन गई है. प्राधिकरण लोगों को चुन-चुनकर निशाना बना रहा है. असलियत यह है कि उसने पिछले 12 साल में न तो गंगा तट पर हो रहे पक्के निर्माण और न ही जमीन की खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए कोई कदम उठाया.uttrakhand

एचडीए के उपाध्यक्ष चंद्र शेखर भट्ट कहते हैं, ''उत्तर प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई, 2000 को शासनादेश निकालकर गंगातट से 200 मीटर तक निर्माण पर रोक लगा दी थी. इसी शासनादेश को उत्तराखंड ने भी ग्रहण किया. विशेष परिस्थितियों में केवल आश्रम, मठ और धर्मशालाओं के निर्माण के लिए ही तटीय इलाकों में नक्शे पास किए गए. ''

उत्तराखंड सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस शासनादेश को हू-ब-हू मानते हुए गंगा से 200 मीटर के दायरे में निर्माण पर तो रोक लगा दी, लेकिन बावजूद इसके सरकारी निर्माण न सिर्फ  धड़ल्ले से जारी रहे, बल्कि आज भी हो रहे हैं. बकौल भट्ट, एचडीए ने 21 दिसंबर, 2001 को ही ध्वस्तीकरण आदेश पारित कर दिया था, जिसमें अवैध निर्माण गिराए जाने का प्रावधान है. लेकिन वे इस सवाल को टाल गए कि हरिद्वार और ऋषिकेश में बाकायदा स्टाफ  और ऑफिस होने के बावजूद एचडीए ने कैसे पूरे 12 साल तक गंगा तट पर बड़े निर्माण होने दिए? उसने गंगा तट पर बिक रही जमीन की निगरानी क्यों नहीं की?

हरिद्वार के सामाजिक कार्यकर्ता धर्मेंद्र चौधरी आरोप के अंदाज में कहते हैं, ''एचडीए का पूरा तंत्र खाने-पीने के जुगाड़ में लगा रहता है. अगर एचडीए न चाहे तो गंगा तट पर एक भी अवैध ईंट नहीं रखी जा सकती. लेकिन जैसे ही कोई अनधिकृत निर्माण शुरू होता है, वैसे ही अधिकारियों की चांदी हो जाती है. नोटिसों का लंबा सिलसिला चलता है. ध्वस्तीकरण की धमकी दी जाती है और हर बार वसूली के बाद मामला शांत हो जाता है. लेकिन इस बार हाइकोर्ट के आदेश के बाद एचडीए के तेवर थोड़े सख्त हैं. ''

ऋषिकेश में आवास विकास कॉलोनी के पास गंगा तट से करीब 70 मीटर के दायरे में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआइआइएमएस) का निर्माण जोरों पर चल रहा है. एम्स के पास ही गंगा तट पर हाइकोर्ट का रेस्ट हाउस, लघु सिंचाई विभाग की कॉलोनी जैसे बड़े निर्माण इस शासनादेश के 6 साल बाद हुए हैं. वीरभद्र रोड पर बने मातृछाया आश्रम के संचालक और मातृछाया आश्रम सेवा समिति के अध्यक्ष विपिन नैयर कहते हैं, ''गंगा तट पर 200 मीटर के दायरे में सरकार ने निर्माण पर रोक लगा रखी है, लेकिन जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं है. गंगा तट पर जमीन सबसे महंगी है. रजिस्ट्री पर सरकार को लाखों रु. की स्टांप ड्यूटी मिलती है. ''

सरकार के आदेश के बावजूद न तो एचडीए ने और न हरिद्वार और देहरादून के  जिला प्रशासन ने आज तक गंगा तट के 200 मीटर क्षेत्र में जमीन  की खरीद-फरोख्त रोकने की कोई कोशिश की है. विपिन कहते हैं कि जब लोग यहां जमीन खरीद रहे हैं तो आखिर किसलिए? जाहिर है, मकान ही बनाएंगे. भट्ट कहते हैं, ''अब तक 140 नोटिस ऋषिकेश में और 125 हरिद्वार में भेजे जा चुके हैं और भेजने की प्रक्रिया जारी है. '' साफ है, अभी हजारों और लोगों को नोटिस जारी होंगे. एचडीए उन लोगों को भी नोटिस भेज रहा है, जिन्होंने मकान की मामूली मरम्मत कराई है. 47 वर्षीया कलावती देवी कहती हैं कि 30 साल पहले आवास विकास परिषद से मकान खरीदा था और इसका नक्शा भी पास है. अब इसकी मरम्मत की जरूरत है, लेकिन एचडीए के डर से हम खामोश हैं.

सरकार के इस शासनादेश के खिलाफ हाइकोर्ट में मुकदमा लड़ रहे ऋषिकेश के पार्षद 42 वर्षीय संजय व्यास कहते हैं कि इस फैसले से हरिद्वार-ऋषिकेश के एक लाख से अधिक परिवार प्रभावित हैं. इनमें से बहुत-से ऐसे लोग हैं, जो नया निर्माण तो छोडि़ए, अपने घर की मरम्मत तक नहीं करा सकते. वहीं युवा नेता 33 वर्षीय अशोक पासवान कहते हैं, ''हाइकोर्ट के आदेश का आधार तो प्रदूषण है, जबकि सबसे अधिक प्रदूषण तो आश्रम और धर्मशालाएं फैलाती हैं, जहां हजारों लोग रुकते हैं और उनका सीवर सीधे गंगा में जाता है. कॉलोनियां तो सीवर लाइन से जुड़ी हैं. ''

नैयर सवाल उठाते हैं कि एक तरफ एचडीए निर्माणों को अवैध ठहराकर नोटिस भेज रहा है, दूसरी ओर नगरपालिका घर बनते ही टैक्स लगाती है. संजय कहते हैं, ''एक सरकारी एजेंसी नोटिस दे रही है और दूसरी टैक्स वसूल रही है. इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश के जमाने में बसाई गई कॉलोनियों को भी अवैध कहा जा रहा है. ''

अगर 200 मीटर का मानक गंगा किनारे तय हुआ तो उत्तरकाशी जैसे शहरों का तो नामोनिशान मिट जाएगा. ऋषिकेश के एसडीएम रामजी शरण शर्मा के मुताबिक, अदालत के आदेश की हर हाल में तामील होगी. साफ  है कि अकेले ऋषिकेश में  ही तपोवन, लक्ष्मण झूला, रामझूला, स्वर्गाश्रम, मुनि की रेती, चंद्रभागा, मायाकुंज, शीशमझड़ी और वीरभद्र मार्ग में रहने वाले हजारों लोग फिलहाल बेचैन हैं, जबकि हरिद्वार में भी हर की पौड़ी, भीमगौड़ा, रेलवे रोड, श्रवणनाथ नगर, ललतारो पुल और सुभाष घाट समेत अनेक स्थानों पर लोगों के घरों में नोटिस पहुंच रहे हैं. चौधरी को अंदेशा है कि ''इस मामले में राजनीति और विभिन्न स्रोतों से कमाई का सिलसिला अभी लंबा चलेगा. ''

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