साल 2014 अगर देश की राजनीति में बड़े बदलाव की दिशा में बढ़ा तो 66 वर्षीय लालू प्रसाद यादव ने अपने धुर विरोधी नीतीश कुमार से गलबहियां करने में देरी नहीं की. लोकसभा चुनाव में बिहार और उत्तर प्रदेश में भगवा परचम लहराया तो वे पहले शख्स थे जिन्होंने वजूद की खातिर सियासी रंजिशें दरकिनार कर दीं.
पिछड़ों की राजनीति के अगुआ रहे लालू ने जेडी (यू) के साथ गठबंधन कर तीन माह बाद ही बिहार विधानसभा के उपचुनाव में बीजेपी की लहर को थाम लिया. उपचुनाव की 10 सीटों में से लालू-नीतीश ने छह सीटों पर परचम लहराया. इस जीत ने बिखरे हुए जनता परिवार को एकसूत्र में बंधने को प्रेरित किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए पूरा कुनबा इकट्ठा हो गया और उसने महज सात महीने पुरानी सरकार को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में इस कदर मजबूर कर दिया कि कई अहम बिल अटक गए. पहले चौधरी चरण सिंह और फिर ताऊ देवीलाल की जयंती के मौके पर इस कुनबे ने अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया.
2013 के आखिर में चारा घोटाले के मामले में पांच साल की सजा मिलने के बाद संसद के लिए अयोग्य घोषित होते ही ऐसा लगा कि अब लालू का राजनैतिक पराभव तय है. 2014 का आम चुनाव भी उनके लिए सदमे से कम नहीं था. लेकिन उपचुनावों में मिली जीत ने जनता परिवार को ऑक्सीजन दे दी और लालू ने फौरन यूपी में मायावती और मुलायम सिंह यादव को हाथ मिलाने का मंत्र थमा दिया. इस पर सपा सुप्रीमो मुलायम ने तो फौरन हामी भी भर दी, लेकिन मायावती ने इनकार कर दिया. बहरहाल, लालू ने देश भर में बिखरे हुए जनता परिवार को समेटने में सफलता हासिल की. हालांकि इसी साल उन्हें दिल की सर्जरी के लिए मुंबई के अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. स्वास्थ्य लाभ के बाद लालू ने सक्रियता दिखाई जिसका असर सड़क से संसद तक दिखने लगा.
कभी मुलायम के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़ा बने लालू ने इसी साल अपनी छोटी बेटी राजलक्ष्मी का वैवाहिक संबंध हाल ही में सांसद बने मुलायम के पौत्र तेज प्रताप यादव से तय कर राजनैतिक गठजोड़ को रिश्तेदारी में बदल दिया. अब वे एक झंडे और मुलायम के नेतृत्व में नई पार्टी बनाने में जुट गए हैं.
पिछड़ों की राजनीति के अगुआ रहे लालू ने जेडी (यू) के साथ गठबंधन कर तीन माह बाद ही बिहार विधानसभा के उपचुनाव में बीजेपी की लहर को थाम लिया. उपचुनाव की 10 सीटों में से लालू-नीतीश ने छह सीटों पर परचम लहराया. इस जीत ने बिखरे हुए जनता परिवार को एकसूत्र में बंधने को प्रेरित किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए पूरा कुनबा इकट्ठा हो गया और उसने महज सात महीने पुरानी सरकार को संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में इस कदर मजबूर कर दिया कि कई अहम बिल अटक गए. पहले चौधरी चरण सिंह और फिर ताऊ देवीलाल की जयंती के मौके पर इस कुनबे ने अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया.
2013 के आखिर में चारा घोटाले के मामले में पांच साल की सजा मिलने के बाद संसद के लिए अयोग्य घोषित होते ही ऐसा लगा कि अब लालू का राजनैतिक पराभव तय है. 2014 का आम चुनाव भी उनके लिए सदमे से कम नहीं था. लेकिन उपचुनावों में मिली जीत ने जनता परिवार को ऑक्सीजन दे दी और लालू ने फौरन यूपी में मायावती और मुलायम सिंह यादव को हाथ मिलाने का मंत्र थमा दिया. इस पर सपा सुप्रीमो मुलायम ने तो फौरन हामी भी भर दी, लेकिन मायावती ने इनकार कर दिया. बहरहाल, लालू ने देश भर में बिखरे हुए जनता परिवार को समेटने में सफलता हासिल की. हालांकि इसी साल उन्हें दिल की सर्जरी के लिए मुंबई के अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. स्वास्थ्य लाभ के बाद लालू ने सक्रियता दिखाई जिसका असर सड़क से संसद तक दिखने लगा.
कभी मुलायम के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़ा बने लालू ने इसी साल अपनी छोटी बेटी राजलक्ष्मी का वैवाहिक संबंध हाल ही में सांसद बने मुलायम के पौत्र तेज प्रताप यादव से तय कर राजनैतिक गठजोड़ को रिश्तेदारी में बदल दिया. अब वे एक झंडे और मुलायम के नेतृत्व में नई पार्टी बनाने में जुट गए हैं.