चार जनवरी को दुनियाभर के करोड़ों व्हाट्सऐप यूजर्स को नोटिफिकेशन मिली कि 8 फरवरी से इस प्लेटफॉर्म की सेवा शर्तें और निजता की नीतियां बदल जाएंगी और यूजर्स को नई शर्तें माननी होंगी तभी वे इस ऐप का इस्तेमाल कर पाएंगे. निजता की अपनी नई नीति में व्हाट्सऐप ने उस छूट को खत्म कर दिया जिसमें उसकी मालिकाना हक की कंपनी फेसबुक से कुछ डेटा साझा करने के लिए यूजर्स बाध्य नहीं थे.
'मानो या जाओ' वाली इस नीति से दुनियाभर में व्हाट्सऐप के खिलाफ लोगों में गुस्से की लहर फैल गई कि वह यूजर्स के निजता के साथ समझौता कर रहा है. कई लोग टेलीग्राम और सिग्नल जैसे दूसरे चैट प्लेटफॉर्म की तरफ चले गए. निजता की नई नीति के आने के हफ्ते भर के भीतर व्हाट्सऐप के रोजाना डाउनलोड में 7 फीसद की कमी आ गई. इसके उलट, 6 जनवरी से लेकर 10 जनवरी के बीच सिग्नल के डाउनलोड में 18 गुना तेजी देखी गई. भारत में, दो पीआइएल—एक सुप्रीम कोर्ट में और दूसरा दिल्ली हाइकोर्ट में—दाखिल किए गए जिसमें व्हाट्सऐप को यूजर्स के निजी डेटा को शेयर करने से रोकने के लिए कानूनी हस्तक्षेप करने की अपील की गई थी. केंद्र सरकार ने भी व्हाट्सऐप के मुखिया विल कैथकार्ट से कहा कि वे ''भारतीय यूजर्स की सूचना की निजता और डेटा सुरक्षा का सम्मान'' करें और भारत में निजता नीति की ताजा शर्तों को वापस लें.
मामला उल्टा पड़ता देखकर व्हाट्सऐप ने नई शर्तों को लागू करने की तारीख आगे खिसका दी और यह कहा कि इसका मकसद यूजर्स की निजी सूचना तथा चैट के ब्योरे के साथ समझौता करना नहीं था. व्हाट्सऐप ने एक बयान जारी करके कहा कि 'आपके निजी संदेश एंड-टू-एंड इनक्रिप्शन के जरिए सुरक्षित हैं और हम इस सुरक्षा को कमजोर नहीं करेंगे, और आप हमारा समर्पण जानते हैं.'
बहरहाल, यह बहस इनक्रिप्टेड डेटा की निजता को लेकर नहीं है, बल्कि यह उस निजी सूचना को लेकर है जो यूजर के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में स्टोर है और जहां तक इस मैसेज प्लेटफॉर्म की पहुंच है. अगर आपने डेटा नहीं साझा करने के विकल्प को नहीं चुना है जिसका मौका कंपनी ने आखिरी बार 2016 में दिया था, तो व्हाट्सऐप फेसबुक के साथ उन कई सारी निजी सूचनाओं को साझा करता है जिन्हें वह अपनी सेवाओं को 'ऑपरेट, मदद, समझ, कस्टमाइज, सहायता और उसे मार्केट' करने के लिए संभाल कर रखती है.
यह विकल्प भी विशेषज्ञों को रास नहीं आ रहा है. कानूनी फर्म टेकलेगीज एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के सलमान वारिस कहते हैं, ''अगर यूजर्स ने जिन सेवाओं/उत्पादों की चर्चा निजी चैट में की होगी और उससे जुड़े विज्ञापनों की उन पर बौछार होगी, या फिर फेसबुक अकाउंट पर वैसे विज्ञापन दिखेंगे जो व्हाट्सऐप पर उनके वित्तीय लेनदेन से जुड़े होंगे, तो इससे निजता के उल्लंघन जैसा महसूस होगा और नैतिकता के मोर्च पर भी यह गलत हो सकता है.'' वे कहते हैं, ''डेटा को लेकर फेसबुक कभी भी नैतिक नहीं रहा और जो कैम्ब्रिज एनालिटिका केस में दिखा भी. ऐसे में, यूजर्स को स्वाभाविक रूप से आशंका होगी कि किसी कंपनी के साथ अज्ञात डेटा भी साझा किया जाएगा जो उनके डेटा हिस्ट्री का इस्तेमाल कर सकती है.''
सुप्रीम कोर्ट की वकील और साइबर अपराधों के पीड़ितों की मदद करने की एक पहल साइबरसाथी की संस्थापक, एन.एस. नपिनै इससे सहमत हैं और कहती हैं, ''यह सिर्फ कंटेंट या प्रोफाइलिंग का मामला नहीं है बल्कि एक कॉर्पोरेट की ओर से बहुत ऊंचे स्तर की प्रोफाइलिंग का मसला है. निजता और आधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बारे में पर्याप्त निर्देश देता है कि किस चीज की इजाजत है और किसकी नहीं.''
जब इंडिया टुडे ने व्हाट्सऐप के इंडिया सीईओ अभिजीत बोस से संपर्क किया, तो उनके कार्यालय ने एक स्पष्टीकरण भेजा: ''व्हाट्सऐप लोगों को सीधे व्हाट्सऐप पर खरीदारी करना और व्यवसाय से मदद लेना, दोनों को आसान बनाना चाहता है. अधिकतर लोग व्हाट्सऐप का इस्तेमाल दोस्तों और परिजनों के साथ चैट के लिए करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो साथ में कारोबार भी करना चाहते हैं.
पारदर्शिता को और अधिक बढ़ाने के लिए, हमने निजता नीति को अपडेट किया है ताकि आगे, कारोबार हमारी मूल कंपनी फेसबुक से सुरक्षित होस्टिंग सेवाएं चुन सकें, और व्हाट्सऐप पर मौजूद ग्राहकों के साथ संवाद के प्रबंधन में फेसबुक की मदद ले सकें.'' वारिस इससे संतुष्ट नहीं हैं, ''संशोधित शर्तें स्पष्ट रूप से बाजार में व्हाट्सऐप और फेसबुक के वर्चस्ववादी स्थिति का दुरुपयोग है.'' वे कहते हैं कि व्हाट्सऐप इसे अनिवार्य बनाने की बजाए यूजर्स को एक विकल्प मुहैया करा सकता था कि अगर वे डाटा शेयर करने से मना करें तो उन्हें कुछ खास सेवाएं नहीं दी जाएंगी. खासतौर पर यह देखते हुए कि व्हाट्सऐप के भारत में करीब 40 करोड़ यूजर्स हैं.''
कहां हुई सेंधमारी?
साफ कहें तो इस विवादित नीति अपडेट ने एक बार फिर से व्हाट्सऐप की पुरानी कार्यप्रणाली पर नई रोशनी डाली है. 2014 में फेसबुक की ओर से अधिग्रहण के बाद, इस चैट सेवा प्रदाता ने अगस्त 2016 में अपनी निजता नीति में एक बड़ा अपडेट किया था और इसने यूजर्स की सूचनाएं फेसबुक के साथ साझा करनी शुरू कर दी थीं. उस वक्त, इस सेवा ने मौजूदा यूजर्स को अपनी कुछ सूचनाएं साझा करने से पीछे हटने के लिए 30 दिन का विकल्प दिया था. उस फीचर को ऐप की सेटिंग से बहुत पहले हटा दिया गया.
इसलिए उस विकल्प विंडो से चूकने वाले यूजर्स का डेटा पहले से ही फेसबुक के साथ साझा हो रहा है. व्हाट्सऐप ने बार-बार यह दावा किया है कि समूह की एक कंपनी होने के कारण, 'यह फेसबुक परिवार के ऐप और उत्पादों के एकीकृत अनुभव फेसबुक से साथ साझा करता है.' पिछले कई साल से फेसबुक भी व्हाट्सऐप पर बिजनेस टूल जारी करता रहा है और उसकी यह कोशिश कंपनी के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स में ई-कॉमर्स इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करके राजस्व बढ़ाने के लिए है.
ऐसा ही एक कदम, रिलायंस की वह योजना भी है जिसके तहत वह अपने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जियोमार्ट को अगले छह महीने में व्हाट्सऐप के साथ जोड़ने वाला है. अप्रैल 2020 में फेसबुक ने 5.7 अरब डॉलर में रिलायंस इंडस्ट्रीज की डिजिटल इकाई जियो प्लेटफॉर्म्स में 9.9 फीसद शेयर खरीदे थे. तब रिलायंस के सीएमडी मुकेश अंबानी ने कहा था, ''जियोमार्ट और व्हाट्सऐप 3 करोड़ छोटे भारतीय किराना दुकानों को सशक्त बनाएंगे, जो अपने पड़ोस के हर ग्राहक के साथ डिजिटली कारोबार कर पाएंगे.''
व्हाट्सऐप का दावा है कि यह संदेशों/कॉल्स का लॉग नहीं रखता और किसी व्यक्ति के संपर्कों को फेसबुक से साझा नहीं करता. कंपनी ने कहा है, 'हम मानते हैं कि 2 अरब यूजर्स के (मेसेज और कॉल) को रखना निजता और सुरक्षा दोनों दृष्टि से जोखिम होगा और हम ऐसा नहीं करते.' 2018 में, व्हाट्सऐप ने यह साफ कर था दिया कि फेसबुक वाणिज्यिक मकसद के लिए इसके भुगतान की सूचनाओं का इस्तेमाल नहीं करता.
साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि उसकी नई निजता नीति दूर तक जाती है और भारतीय कानूनों में उल्लिखित संवेदनशील निजी सूचनाओं को साझा करने की बात करती है. वे कहते हैं, ''सूचना तकनीक नियम, 2011 में वित्तीय रिकॉर्ड को संवेदनशील निजी डेटा के रूप में पारिभाषित किया गया है. जब व्हाट्सऐप कहता है कि वह आपके लेनदेन के ब्योरे साझा करेगा तो देश के मौजूदा कानूनी ढांचे का उल्लंघन करता है.''
मौजूदा विवाद ने व्हाट्सऐप ही नहीं, सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म की ओर से अनुचित रूप से डेटा के साझा करने की ओर ध्यान खींचा है.
गोपनीयता के पैरोकारों ने पूर्ण डेटा सुरक्षा बिल के शीघ्र लागू किए जाने की अपनी मांग को दोहराया है ताकि यूजर्स केडेटा की सुरक्षा की जा सके. भारत में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 लंबित है जिसकी समीक्षा एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) कर रही है. असल में, व्हाट्सऐप निजता नीति में आए बदलावों पर भी 21 जनवरी को बुलाई गई बैठक में सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी संसदीय समति और फेसबुक तथा ट्विटर के अधिकारियों के बीच चर्चा होगी.
निजता की सुरक्षा
निजता कानून के नहीं होने से डिजिटल प्लेटफॉर्म निजता का उल्लंघन करके भी आपराधिक कार्रवाई से बचे रहते हैं. 18 जनवरी को दिल्ली हाइकोर्ट ने व्हाट्सऐप के संशोधित निजता नीति पर एक याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह चैट सेवा स्वैच्छिक है और अगर इसकी शर्तें और नियम सहमति योग्य नहीं लगते तो उसका इस्तेमाल नहीं करने का विकल्प चुन जा सकता है. हालांकि, दुग्गल इसको वर्चस्व की स्थिति का फायदा उठाने की बेहतरीन मिसाल मानते हैं और कहते हैं कि इस मामले में भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए और इस बाबत जांच शुरू करनी चाहिए. वे कहते हैं, ''व्हाट्सऐप भारत में अपनी वर्चस्व की स्थिति का दुरुपयोग कर सकता है क्योंकि यहां नीतिगत खालीपन है. भारत में डेटा सुरक्षा, निजता और साइबर सुरक्षा पर कोई कानून नहीं है, जो भारत को हर तरह के मनमाने प्रयोग के लिए बहुत उपजाऊ जमीन बनाती है.''
सुप्रीम कोर्ट के यह वकील दावा करते हैं कि यूजर्स व्हाट्सऐप के खिलाफ आइटी ऐक्ट, 2000 के तहत आपराधिक शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं क्योंकि यह आइटी ऐक्ट के मानकों पर खरा उतरने में नाकाम है. दुग्गल कहते हैं, ''आइटी ऐक्ट 2000 के तहत, व्हाट्सऐप मध्यस्थ की भूमिका में है और कानून के तहत इसे अपने दायित्वों का निर्वहन करने की जरूरत है. ऐसा नहीं करने पर, यह विभिन्न संज्ञेय अपराधों को बढ़ावा दे रहा है.''
वहीं, नप्पिनै के मुताबिक, आइटी ऐक्ट के सेक्शन 43ए के तह बनाए गए विस्तृत आइटी नियम भारत में एकत्र डेटा की सहमति, उपयोग, साझा करने और हस्तांतरण के संबंध में सुरक्षा प्रदान करते हैं. आइटी ऐक्ट के तहत नियम बनाने की शक्तियों के तहत केंद्र सरकार संवेदनशील निजी डेटा की सुरक्षा के लिए आइटी नियम बना सकती है. वे कहती हैं, ''इन नियमों में शीघ्रता से ऐसी सुरक्षा शामिल की जा सकती हैं जो यूरोपीय संघ के जीडीपीआर (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) में शामिल हैं ताकि सहमति वाले फ्रेमवर्क के उल्लंघन से सुरक्षा हासिल हो सके. इसको सभी प्लेटफॉर्म के लिए जरूरी बना दिया जाना चाहिए.'' आने वाले दिनों में और भी ज्यादा कारोबार ऑनलाइन होंगे तथा उसमें व्यक्तिगत डेटा बहुत ही मूल्यवान संपत्ति है, ऐसे में डेटा-सुरक्षा की एक मजबूत व्यवस्था की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता.