कर्नाटक में भाजपा की सत्ता में वापसी मुमकिन करने के दो साल बाद 78 वर्षीय मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा कुर्सी से हटने वाले हैं. उनकी कार्यशैली की बढ़ती आलोचना, बेटे बी.वाइ. विजयेंद्र का सरकार में भारी दखल, उनकी बढ़ती उम्र, इन सभी ने आखिर उनके खिलाफ माहौल बनाया है. लेकिन येदियुरप्पा को हटाने का मुख्य कारण अधिक युवा नेतृत्व के तहत अगला विधानसभा चुनाव (2023 में होने वाला) लड़ने का पार्टी का निर्णय प्रतीत होता है. बेशक, येदियुरप्पा स्टार प्रचारक होंगे, क्योंकि वे अब भी लिंगायतों के निर्विवाद नेता हैं, जो कर्नाटक में सबसे बड़ा समुदाय और भाजपा का विश्वसनीय वोट बैंक है.
इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि येदियुरप्पा 26 जुलाई को या उसके बाद इस्तीफा दे देंगे, जिस दिन वे अपने दो साल पूरे कर लेंगे. मुख्यमंत्री ने 26 जुलाई को विधायक दल की बैठक बुलाई है (हालांकि अभी तक कोई आधिकारिक आदेश नहीं है) और पार्टी के सभी विधायकों को रविवार रात अपने आवास पर डिनर के लिए आमंत्रित किया है. भाजपा के एक शीर्ष सूत्र का कहना है कि यह ''अप्रत्याशित घटनाक्रम'' पिछले हफ्ते नई दिल्ली में येदियुरप्पा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के साथ बैठक के बाद आया था.
कर्नाटक में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल मई 2023 में समाप्त हो रहा है और जाहिर तौर पर येदियुरप्पा ने अपनी कुर्सी बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत की है. सूत्र का कहना है कि ''लेकिन उन्हें यह साफ कर दिया गया है कि उन्हें पद छोडऩा होगा. उन्होंने अपनी शर्तों पर सम्मानजनक विदाई पसंद की है, जिनमें से अधिकांश पर सहमति हुई थी.''
येदियुरप्पा वह आधार रहे हैं, जिस पर भाजपा ने कर्नाटक में अपना गढ़ बनाया है. उन्होंने चार अलग-अलग मौकों पर सीएम के रूप में कार्य किया, इनमें से दो-एक सप्ताह से अधिक नहीं चले (क्योंकि वे आवश्यक बहुमत हासिल करने में विफल रहे). लिंगायतों के अग्रणी नेता के रूप में उनकी जगह लेना आसान नहीं होगा. समुदाय को अभी तक एक उपयुक्त विकल्प नहीं मिला है, जो लिंगायत समुदाय के संतों के परेशान होने का एक और कारण भी है. अखिल भारतीय वीरशैव महासभा ने भी इस फैसले का विरोध किया है.
सूत्रों का कहना है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा से सुचारू रूप से कुर्सी की सुपुर्दगी सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है. उनकी स्वीकृति के बदले में येदियुरप्पा की मांगों में—उन्हें राज्य इकाई में उच्च स्तर पर सशक्त बनाना, चुनाव में उनकी पसंद के उम्मीदवार, और नई सरकार में बेटे विजयेंद्र (पहले से ही कर्नाटक भाजपा में उपाध्यक्ष) को शामिल करना-शामिल था.
सूत्र ने कहा, ''बदले में, येदियुरप्पा को अपने उत्तराधिकारी को पूरा समर्थन देने और लिंगायत समुदाय को भाजपा के साथ बनाए रखने के लिए कहा गया है.'' राजनीतिक पर्यवेक्षक बताते हैं कि येदियुरप्पा पिछले 7-8 महीनों में भारी दबाव में थे. ''भाजपा और आरएसएस के नेता विपक्षी दल को मंत्रिमंडल में लेने के कारण उनसे नाराज थे. राजनीतिक इतिहासकार प्रो. बी. मंजूनाथ कहते हैं, महामारी से निपटने में कुप्रबंधन आखिरी तिनका था.
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी (ब्राह्मण) के साथ सीएम पद के लिए कई दावेदार कथित तौर पर सूची में हैं. प्रस्तावित अन्य नामों में विधानसभा अध्यक्ष वी. हेगड़े कागेरी (ब्राह्मण), विधायक अरविंद बेलाड (लिंगायत युवा नेता), उप मुख्यमंत्री सी.एन. अश्वथ नारायण (कर्नाटक के दूसरे सबसे बड़े समुदाय, वोक्कालिगा से), खान और भूविज्ञान मंत्री मुरुगेश निरानी (लिंगायत), गृह मंत्री बसवराज बोम्मई (लिंगायत) और भाजपा प्रवक्ता सी.टी. रवि (वोक्कालिगा) शामिल हैं. खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री उमेश कट्टी (लिंगायत) ने भी अपना दांव चल दिया है. इस बीच, येदियुरप्पा से जुड़ी कहानियों का श्रेय एक वॉयस क्लिप को है, जो वायरल हो गई है, जिसमें राज्य भाजपा अध्यक्ष नलिन के. कतील और पार्टी के एक अन्य नेता के बीच नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर एक कथित बातचीत है. हालांकि कतील ने दावा किया है कि यह उनकी आवाज नहीं है.
शीर्ष पर किसी भी बदलाव का मंत्रिपरिषद पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें अब कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनाने में मददगार कांग्रेस और जद (एस) के बागी विधायकों का वर्चस्व है. जबसे इन दलबदलुओं को अच्छे विभाग दिए गए हैं, भाजपा दिग्गजों में हड़कंप मच गया है. अगर येदियुरप्पा को हटा दिया जाता है और कैबिनेट में फेरबदल होता है, तो यह मंत्रियों के बीच एक बड़ी हलचल पैदा कर सकता है.