आप धर्म के बताए रास्ते पर चलना चाहते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि धर्म के मुताबिक क्या सही है और क्या गलत, तो आप क्या करेंगे? वही कीजिए जो 33 वर्षीया फरजाना खान ने किया. वे जानना चाहती थीं कि पति पर उन्होंने जो खर्च किया है, क्या उन्हें उसे वापस पाने का अधिकार है? उन्होंने शहर के मुफ्ती के पास जाने की बजाए इंटरनेट पर मौजूद फतवा ऑनलाइन वेबसाइट की मदद ली और अगले चौबीस घंटे में जवाब मौजूद था.
फराज़ खान ने भी इस्लामवेब नामक साइट के जरिए जाना कि परीक्षा में नकल करना गलत है. फराज़ कहते हैं, ''फिर मैंने कभी चीटिंग नहीं की. यह सवाल शहर के मुफ्ती से करने में संकोच भी होता और शायद सवाल उन्हें बेतुका भी लगता. इतना तो तय है कि जवाब नहीं मिलता. ''
इस्लाम ऑनलाइन, आस्कइमाम, ऑनइस्लाम, फतवा ऑनलाइन और इस्लामवेब जैसी ढेरों वेबसाइट हैं जो मुसलमानों को फतवा या उनके धर्म संबंधी सवालों के जवाब देती हैं. इन वेबसाइट्ïस की खासियत यह है कि फतवा देने वाले ज्यादातर मुफ्ती हजारों किमी दूर विदेश में हैं. वैसे पिछले कुछ साल से ऑनलाइन फतवे देने वाली कई भारतीय साइटें भी आ गई हैं.
दारुल उलूम देवबंद की भी दारुल इफ्ता नाम से अपनी फतवा साइट है. फतवा ऑनलाइन दिल्ली के मुफ्ती एजाज अरशद कासमी चला रहे हैं. इस वेबसाइट पर हर रोज लगभग 200 सवाल पूछे जाते हैं जिनके जवाब कासमी और 10 लोगों की टीम मिलकर देती है. कासमी कहते हैं, ''इंटरनेट के जरिए मजहब के बारे में जानने में कोई बुराई नहीं है. यह तो एक आसान और बेहतर जरिया है.''
28 साल की फायजा जफर यह जानना चाहती थीं कि इस्लाम में आइब्रो बनवाने की इजाजत है या नहीं. फतवा ऑनलाइन ने उन्हें बताया कि यह गैर-इस्लामी है. इस तरह फतवा साइट्स धर्म संबंधी जानकारी ही नहीं बढ़ा रही हैं बल्कि फतवों के बारे में सोच बदलने में भी मददगार साबित हो रही हैं. जैसा कि भोपाल के नायब काजी सय्यद बाबर हुसैन नदवी कहते हैं, ''फतवा आदेश नहीं है. बल्कि इसका मतलब है कि आपने सवाल पूछा और सामने वाले ने उसका जवाब दिया. ''
फतवे की इतनी सारी साइट्स में से किससे सवाल पूछना सही है, यह पता लगाना आसान नहीं है. मुफ्ती कासमी कहते हैं, ''आपको यह देखना होगा कि फतवा देने वाले लोग कौन हैं.'' मसलन इस्मालऑनलाइन को दस लाख से ज्यादा लोग हर माह देखते हैं क्योंकि इससे मिस्र के इस्लामी विद्वान युसूफ करजावी जुड़े हैं.
फतवा वेबसाइट्स की वजह से लोगों को निजी जिंदगी से जुड़े ऐसे सवाल पूछने की आजादी भी मिल रही है जो वे धर्मगुरु से नहीं पूछ सकते थे. यानी 'फतवा' शब्द आजादी का पर्याय बनता जा रहा है.