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सविता भाभी ने कैसे पाटी मर्द और औरत की सेक्स जरूरतों के बीच की खाई

भारतीय महिलाओं की यौन आजादी सामाजिक रिश्तों में बदलाव का संकेत है. सविता भाभी ने मर्द और औरत की सेक्स जरूरतों की बीच की खाई को दूर किया है.

अपडेटेड 18 दिसंबर , 2013
अभी तक सविता भाभी के ग्राफिक कॉमिक के बारे में मुझे जो सबसे अप्रत्याशित तारीफ मिली है, वह एक महिला की तरफ से है जिसने मुझे सविता को दिखाने के लिए धन्यवाद दिया जो हर एपिसोड में चरम-सुख (ऑर्गेज्म) प्राप्त करती है.

उसकी इस आभार जताने की वजह एकदम साफ है और मैं इस बात की शर्त लगाने को तैयार हूं कि सविता भाभी पढऩे के बाद बहुत से पतियों ने अपनी पत्नियों से महिलाओं के चरम-सुख हासिल करने के बारे में पूछा होगा और यह भी कि वहां तक पहुंचने के लिए वे उनकी किस तरह मदद कर सकते हैं.

इंडिया टुडे-एमडीआरए 2013 सेक्स सर्वे के नतीजे बताते हैं कि करीब 80 फीसदी महिलाएं ‘‘हमेशा’’ या ‘‘ज्यादातर’’ चरम-सुख हासिल करती हैं. इस नतीजे के मद्देनजर मैं यह मानना चाहूंगा कि मर्दों और औरतों की सेक्स जरूरतों के बीच की खाई को पाटने में सविता भाभी की भी एक छोटी-सी भूमिका जरूर रही है.

निजी तौर पर मैं यह नहीं मानता कि 2003 के बाद भारतीय महिला में इतना ज्यादा बदलाव आया है. हालांकि, अब यह किसी महिला के लिए ज्यादा स्वीकार्य हो गया है कि अपनी सेक्स जरूरतों और आकांक्षाओं के बारे में खुलकर बात करे

भारतीय महिलाओं के समूहों की शाम की चाय पार्टियों का मैं कोई भेद तो नहीं जानता, लेकिन मेरा यह मानना है कि उनमें सेक्स और अपनी जीत के बारे में चर्चा जरूर होती होगी और अब यह सिर्फ युवा मर्दों का ही अधिकार क्षेत्र नहीं रहा.

मैं हमेशा यह सोचता था कि सविता भाभी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय होगी, सिर्फ इसलिए क्योंकि यह महिलाओं की सेक्सुएलिटी को सामान्यीकरण से कहीं आगे ले जाती है और ऐसी शक्तिशाली महिला पेश करती है जो आत्मविश्वास से लबरेज है और अपनी सेक्सुएलिटी का भरपूर लुत्फ उठाना चाहती है.

एक साल पहले हमने जब सर्वे किया तो यह जानकर कोई अचरज नहीं हुआ कि हमारी 30 फीसदी पाठक महिलाएं हैं. हालांकि, मैं यह स्वीकार करना चाहूंगा कि जब हमने Savitabhabhi.com तैयार किया तो हमारे शीर्ष एजेंडे पर ‘‘नारी मुक्ति’’ नहीं था-यह धीरे-धीरे एक ऐसे ग्राफिक उपन्यास में तब्दील होता गया जिसमें  सेक्स की कमान महिला के हाथों में रहती है!

जब हमें महिला पाठकों के फीडबैक मिलने शुरू हुए, तो यह आभास हुआ कि यह भारतीय मर्दों को इस बारे में शिक्षित करने का आदर्श मंच हो सकता है कि महिलाओं की भी यौन जरूरतें होती हैं.

 मेरे हिसाब से काफी हद तक यह बदलाव इस वजह से भी हो रहा था कि इंटरनेट के माध्यम से भारत दुनिया की संस्कृति के लिए अपने दरवाजे खोल रहा था. अब न सिर्फ महिलाएं सेक्स और तरह-तरह के प्रयोग के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल कर रही हैं, बल्कि उनके मर्द साथी भी महिलाओं के यौन इच्छाओं को लेकर बेहतर समझ और स्वीकार्यता रखते हैं.

तमाम आलोचक कहते हैं कि सविता भाभी महिलाओं को उपभोग की वस्तु की तरह दिखाती है. लेकिन मेरा मानना है कि सच काफी हद तक इसके एकदम उलटा है. सविता भाभी के माध्यम से हम यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि सेक्स कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे सिर्फ मर्द ही चाहता है.

दरअसल, यह दोतरफा मामला है-औरत भी उतना ही मजा चाहती है जितना कि मर्द. अगर हम अपने 50 फीसदी पाठकों तक भी यह बात पहुंचा पाएं तो आप भारत में महिलाओं को ज्यादा खुश देख पाएंगे.

भेड़िए की तरह चिल्लाने वाले हर आलोचक के विपरीत हमें 10 ऐसे लोग मिल जाते हैं, खासकर महिलाएं, जो महिलाओं की यौन आजादी का संदेश पेश करने के लिए सविता भाभी की तारीफ  करते हैं. मेरी राय में इस यौन आजादी की मुख्य वजह भारतीय मर्दों और औरतों में सत्ता संतुलन का नए सिरे से निर्माण होना है.

2013 की महिला पहले की अपेक्षा ज्यादा ताकतवर और आजाद है जो खुद आगे बढ़कर अपनी सेक्सुएलिटी को ज्यादा खुलेपन से दिखाती है.  इंटरनेट और सूचनाओं के अन्य स्रोतों तक पहुंच से हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि यह रुझान आगे भी जारी रहेगा और भारतीय महिलाएं सेक्स सहित जीवन के सभी पहलुओं में ज्यादा आजादी हासिल करेंगी.

अब वह बेडरूम में अपनी भूमिका खुद तय कर रही है, या संभोग के लिए जो भी अन्य प्रयोग वह करना चाहती है, कर रही है.

देशमुख डी. सविता भाभी इरॉटिक कॉमिक स्ट्रिप के रचयिता पुनीत अग्रवाल का छद्म नाम है.