पूर्वोत्तर भारत के जायके का लुत्फ उठाने के लिए गुवाहाटी अच्छी शुरुआत हो सकती है. अगर आप पूर्वोत्तर भारत से नहीं हैं, जैसा कि मैं हूं, तो आपको यहां के मैदानों का खानपान थोड़ा परिचित-सा लग सकता है. लेकिन सामान्य मसालों और सामग्रियों की ताजगी उन्हें विशिष्ट बनाती है. आपको गुवाहाटी के विभिन्न रेस्तरांओं में असम की जनजातियों और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के खानपान का जायका भी मिल सकता है. इस इलाके का ज्यादा से ज्यादा स्वाद लेने के लिए आपको पर्याप्त वजहें मिलेंगी. मेरी हालिया गुवाहाटी यात्रा के दौरान कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ. यह दार्जिलिंग से आगे मेरी पहली पूर्वोत्तर यात्रा थी.
गुवाहाटी की जायका यात्रा का मेरा पहला पड़ाव मिसिंग किचन था. इस जगह के बारे में सोशल मीडिया में कई लोगों ने सिफारिश की थी. मिसिंग किचन एक किफायती रेस्तरां है, जिसमें घुसते ही आपको एक अलग तरह की गर्मजोशी नजर आ सकती है. एक रात जब मैं वहां गया तो वह भोजन कर रहे खुशहाल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. वे घर जैसे भोजन का आनंद ले रहे थे, वह भी जेब पर ज्यादा बोझ पड़े बिना. यहां की सॢवस बहुत गर्मजोशी वाली है और मुस्कराते युवा वेटर सतर्कता के साथ टेबल पर लोगों का स्वागत करते दिख जाते हैं.
इस रेस्तरां की शुरुआत 2015 में निवेदिता येइन पेगु नामक महिला ने की थी. ऐसा लगता है कि यहां का मेन्यू निवेदिता के पति लाखि पेगु ने तैयार और योजनाबद्ध किया है. मेरे लिए यह स्त्री-पुरुष बराबरी का एक जबरदस्त उदाहरण था, जिसे मैंने असम की अपनी छोटी-सी यात्रा के दौरान नोट किया था.
इस रेस्तरां के मेन्यू में विभिन्न तरह की मछलियों और मीट की थालियां तथा आल कार्ट डिशेज थे. मैंने थालियों पर गौर नहीं किया, हम पूरे मील की जगह मेन्यू से कुछ सैम्पल जैसा जायका चखना चाहते थे, क्योंकि इसके बाद हमें उसी रात एक अन्य रेस्तरां में भी जाना था. मैंने यहां सीधे पोर्क के डिश टेस्ट करने का फैसला किया.
मैं असम जाने से पहले भी असमी खाना खा चुका था, लेकिन उस मेन्यू में पोर्क शामिल नहीं था. इसलिए इस बार गुवाहाटी में पहले असमी भोजन का चुनाव करते समय मेरे लिए पोर्क का ऑर्डर करना स्वाभाविक लग रहा था. इसके पहले जो असमी फूड मैंने खाए थे, वे मुंबई और दिल्ली में घरेलू शेफ के बनाए, अचानक मिल जाने वाले भोजन थे. एक बार बेंगलूरू के रेस्तरां में मैंने यह खाया था. गुवाहाटी में मुझे यह समझ में आया कि असमी फूड का मतलब सिर्फ पोर्क नहीं होता है! वे शुरुआत के लिए ग्रीन्स पसंद करते हैं और नदियों की मछलियां उन्हें पसंद हैं.
गुवाहाटी में मेरे ठहरने के दौरान सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस पर नाखुशी भी जाहिर की कि आज बाहरी लोग पोर्क को असमी खानपान का पर्याय मानने लगे हैं. उनका कहना है, "पोर्क असमी खानपान का हिस्सा नहीं है और न ही रेशम का कीड़ा!''
मुझे यह आभास हुआ कि वे "असमी'' शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए कर रहे हैं, जो असम के मैदानों में रहते हैं. शायद उनके लिए नहीं जो असम के जनजातीय इलाकों में रहते हैं. अगर आप असम के नहीं हैं तो आपको यह बात थोड़ी भ्रमित करने वाली लग सकती है. संभवतः यह उस अंतर्धारा की वजह से ही है जो अविभाजित असम के विभाजन की वजह बनी है, लेकिन फिलहाल इस मसले को राजनीति विज्ञानियों के लिए छोड़ देते हैं.
जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं, पोर्क असम के पहाड़ी इलाकों में रहने वाली जनजातियों का पसंदीदा भोजन है. लेकिन मैं समझता हूं कि अब मैदानी इलाकों में भी चीजें काफी बदल रही हैं और गुवाहाटी में विभिन्न रेस्तरां अपने मेन्यू में पोर्क को शामिल कर चुके हैं. एक युवा असमी महिला ने मुझे इंस्टाग्राम पर बताया कि "इस सदी'' में पैदा हुए लोगों ने शायद अभी इसका बहुत लाभ नहीं उठाया है!
मिसिंग किचन में दो तरह के पोर्क डिश थे. दोनों में पोर्क की गुणवत्ता बेहतरीन थी. दोनों डिश में मीट पूरी तरह से नरम था और उसके साथ काफी मनभावन फैट भी था. हमने जो भी दो डिश ऑर्डर किए, उनका स्वाद एक-दूसरे से काफी अलग था.

एक था पोर्क खोरिका. खोरिका असल में बारबेक्यू करने का एक तरीका है, जिसमें बांस की सींक का इस्तेमाल किया जाता है और ग्रामीण इलाकों में यह गड्ढों में लकड़ी की आग जलाकर पकाया जाता है. इसमें पोर्क ज्यादातर हल्के मसालेदार रखे जाते हैं, जिसमें थोड़ा ही नमक डाला जाता है. इस डिश के जरिए पोर्क की बेहतरीन गुणवत्ता को पेश किया जाता है. इसके बाद पोर्क के टुकड़ों को "सलाद'' के तौर पर पेश किया जाता है, कटे हुए प्याज, बारीक कटी हुई हरी मिर्च और नींबू निचोड़ के. पोर्क के प्रेमियों के लिए अगर कोई डिश है तो यही है!
मिसिंग किचन में जो दूसरा डिश मैंने आजमाया, वह था ओ्यटेंगा पोर्क. मुझे लगा कि यह मसालेदार होगा, क्योंकि मांस थोड़ा ज्यादा लाल दिख रहा था. हालांकि ऐसा था नहीं. इसमें जो प्रभावी स्वाद था, वह था ओ्यटेंगा वुड एपल का तीखापन, जिसकी वजह से पोर्क की चरबीदार मांसलता कम हो गई थी और डिश काफी संतुलित हो गया था.
हेरिटेज खोरिकागुवाहाटी के हेरिटेज खोरिका रेस्तरां में मैंने एक अन्य बहुत प्रभावी भोजन का जायका लिया. यह रेस्तरां शेफ अतुल लहकार चलाते हैं. अतुल इससे पहले खोरिका रेस्तरां में शेफ थे और बाद में उन्होंने अपना अलग रेस्तरां खोल लिया. आज गुवाहाटी में खोरिका और हेरिटेज खोरिका, दोनों रेस्तरां चल रहे हैं. मुझे यह एहसास हुआ कि दोनों रेस्तरांओं का अपना-अपना प्रशंसक वर्ग है.
शेफ अतुल ने मुझे बताया कि वे पूरे असम का जायका यहां लाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने इस्तेमाल होने वाली स्थानीय सामग्रियों और कुकिंग के तरीकों को अपने मेन्यू में शामिल किया है. इसके लिए उन्होंने राज्य भर की यात्राएं की हैं. उन्होंने बताया कि असम के खानपान में काफी विविधता है और इसके मैदानों का खानपान पहाड़ों के खानपान से काफी अलग है. उन्होंने अपने प्रशंसकों को दोनों तरह के खानपान का जायका मुहैया कराने की कोशिश की है. वे एक कैफे भी चलाते हैं, जिसमें असमी सामग्री का इस्तेमाल करते हुए कई फ्यूजन डिश पेश किए जाते हैं. उम्मीद है, अपनी अगली यात्रा पर मैं इसका स्वाद ले सकूंगा.
हर शहर का अपना एक प्रसिद्ध रेस्तरां होता है, या वहां कई ऐसे रेस्तरां होते हैं, जिनके बारे में लोग बताते हैं कि आपको वहां जाना चाहिए. हालांकि, कई लोग इन रेस्तरांओं के बारे में यह कहते हुए मिल जाएंगे कि इनकी खूबी को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है. पहली बार किसी शहर की यात्रा कर रहे शख्स के लिए यह थोड़ी भ्रम की स्थिति होती है. गुवाहाटी का पैराडाइज रेस्तरां इसका उदाहरण है. यह उन विभिन्न रेस्तरांओं में से पहला था, जिसके बारे में मुझे बताया गया कि यह असमी फूड के लिए समर्पित रेस्तरां है. स्थानीय लोगों से मुझे यह समझ में आया कि पैराडाइज वाले असमी फूड की परंपरागत परिभाषा के मुताबिक चलते हैं. वे इतने ज्यादा "असमी'' हैं कि पोर्क भी नहीं सर्व करते.
माजुली असांज एक और दिलचस्प रेस्तरां है, जिस पर आपको गौर करना चाहिए. माजुली असम में ताजे जल के एक द्वीप का नाम है जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य, जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और खानपान के लिए मशहूर है. करीब एक दशक से भी ज्यादा पुराने इस किफायती रेस्तरां को राजीव बोरा नामक सज्जन चलाते हैं. बोरा ने मुझे बताया कि वे प्रेरणा और नए विचारों के लिए पूरे माजुली द्वीप की यात्रा करते रहते हैं और उन्हें अपने रेस्तरां के मेन्यू में शामिल करते हैं.

असमी फूड में प्रमुख मसालों के रूप में स्थानीय जड़ी-बूटियों और मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है. पुष्पांजलि ने मुझे बताया कि गुवाहाटी जैसे शहर में भी ऐसे साप्ताहिक हाट या बाजार लगते हैं जहां स्थानीय लोग अपने समुदाय से जुड़े उत्पाद खरीदते हैं और उन्हें भोजन में इस्तेमाल करते हैं. आपको ऐसी साग सब्जियां सुपर मार्केट या मॉल में नहीं मिलेंगी. माजुली असांज जैसे रेस्तरां में मिलने वाला भोजन इसका एक उदाहरण है.
गुवाहाटी का सौंदर्य यह है कि यहां न केवल मैदानों का असमिया फूड सर्व करने वाले कई रेस्तरां हैं, बल्कि असम की विभिन्न जनजातियों के फूड सर्व करने वाले रेस्तरां भी हैं. मिसिंग किचन और माजुली असांज इसकी मिसाल हैं.
माजुली असांज बोडो समुदाय का फूड भी सर्व करता है. आपको ऐसे रेस्तरां भी मिल जाएंगे जो दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों की जातियों जैसे नगा फूड भी सर्व करते हैं. विभिन्न प्रशासनिक राज्यों में विभाजित होने से पहले ये सभी एक ही राज्य का हिस्सा रहे हैं.
असम में पीठा नाश्ता काफी प्रसिद्ध है. ताज विवांता होटल के बुफे में आपको यह मिल जाएगा. हालांकि, अगर आप थोड़े कम पॉश रेस्तरां में जाना चाहते हैं, तो उससे 6 मील आगे जाकर सड़कों पर टेकेली पीठा का आनंद ले सकते हैं. ये उबले चावल के आटे से बने केक या पकौडिय़ों जैसे होते हैं. इनके ऊपर कद्दूकस की हुई नारियल की पतली परत और बीच में गुड़ का इस्तेमाल भी होता है. इन्हें केतली में स्टीम किया जाता है और ताजा सर्व किया जाता है. इन्हें खाते हुए ऐसा लगता है, जैसे आप कोई ठोस और सूखा मफिन खा रहे हों जिसमें नारियल और गुड़ का स्वाद हो. आप इसके साथ लाल चा का ऑर्डर कर सकते हैं, यह एक मीठी काली चाय होती है जिसमें हल्का नमक भी छिड़का होता है.
अब मोमोज के बारे में आपका क्या ख्याल है? मोमोज असल में असमी खानपान का हिस्सा नहीं है और यह पूर्वोत्तर की जगह तिब्बत से ज्यादा जुड़ा है. गुवाहाटी में जब मैंने मोमोज खाना चाहा तो खानपान का शौकीन एक स्थानीय व्यक्ति मुझे चाइनीज हट ले गया. यह नेहरू स्टेडियम के सामने स्थित एक छोटा-सा रेस्तरां है. इसे एक स्थानीय असमी परिवार चलाता है और यह कोई "ऑथेंटिक'' तिब्बती जगह नहीं है. यहां आपको तंदूरी चिकन और कई तरह के रोल्स भी मिल जाएंगे.
अपने कॉलेज के दिनों में मैंने कोलकाता के एल्गिन रोड पर कई मकानों में विभिन्न तिब्बती मोमोज रेस्तरां चलते देखे हैं. उनकी यादों से प्रेरित होकर, मैंने चिकन या पनीर मोमोज की जगह पोर्क का ऑर्डर दिया, स्टीम्ड और फ्राइड, दोनों तरह के. उन मोमोज में जो मीट भरा था, वह मुलायम था. दिलचस्प यह है कि मीट को छोटे-छोटे टुकड़ों में पेश किया गया था, न कि बारीक कीमे के रूप में जैसे हम इस्तेमाल करते हैं. मुझे बताया गया कि गुवाहाटी में कई जगह तो मोमोज वाले इससे भी बड़े टुकड़े वाले मांस उनमें डालते हैं.
मुझे इस बात ने चकित किया कि स्टीम्ड और फ्राइड, दोनों तरह के मोमोज में कितने मुलायम और महीन आटे की परत का इस्तेमाल किया गया था. उसमें जैसी कुशलता दिखाई गई थी वह पूर्वी एशिया के प्रख्यात डिम सम केंद्रों टिम हो वान और डिन ताई फंग के शेफों के लिए गर्व करने की बात थी! उन मोमोज के साथ पोर्क का शोरबा सर्व किया जाता है, जिसे कि हम कोलकाता के मोमो जाइंट्स पर गटकना पसंद करते थे. तब हम युवा थे, भूख लगी होती थी और जो कुछ भी मिलता था, उस पर टूट पड़ते थे, खासकर कुछ मुफ्त में मिल जाए तो क्या कहने!
पूरे भारत में घूमते हुए मुझे गुवाहाटी में जैसा अपनापन और घर जैसा अनुभव होता है, वैसा और कहीं नहीं हुआ. मुझे लगता है कि वहां का भोजन मेरे भीतर के बंगाली से संवाद कर रहा था. ठ्ठअसम
के जनजातीय इलाकों में पोर्क पसंदीदा भोजन
मोमोज
में जो मीट भरा होता है वह कीमा के रूप में नहीं बल्कि छोटे-छोटे टुकड़ों में होता है
***