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मुंबई का अगला सेनापति कौन?

मुंबई ने चौथाई शताब्दी बाल ठाकरे के साये में बिताई. उनकी मृत्यु के बाद उद्धव और राज के बीच विरासत को लेकर संघर्ष गहराने का अंदेशा.

अपडेटेड 27 नवंबर , 2012

शनिवार 17 नवंबर को दिन में 3.33 बजे 'मातोश्री’ में दिल का दौरा पडऩे से शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के निधन के कुछ मिनट बाद ही उनके भतीजे राज ठाकरे को एक संदेश प्राप्त हुआ. इसे ठाकरे के करीबी रहे रवि डोढ़ा ने भेजा था. संदेश के मुताबिक, ठाकरे के बेटे उद्धव ने फैसला किया था कि परिवार के अलावा और किसी को भी दूसरे फ्लोर पर ठाकरे के कमरे में जाने की इजाजत नहीं होगी. संदेश मिलने पर राज ने आगंतुकों को समझाया कि परिवार ने अगले दिन एक बड़े अंत्येष्टि समारोह की योजना बनाई है, इसलिए वे दिवंगत नेता को आखिरी श्रद्धांजलि देने के लिए कमरे में न जाएं.

इसके बाद शाम 7.30 बजे राज घंटे भर के लिए मातोश्री से बाहर गए. लौटने पर उन्होंने देखा कि मातोश्री पर पड़ोसियों की एक छोटी-सी भीड़ जमा है. यह देखकर वे भन्ना उठे क्योंकि उनसे कुछ और कहा गया था और यहां कुछ और हो रहा था. कौन खेल रहा था यह खेल? तमतमाए राज शिवसेना नेता दिवाकर राउत पर चिल्ला पड़े, ''माला खोटे का पड़ता?” (आप मुझे झूठा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं?) मामला दरअसल कुछ और था.

ठाकरे के जो पड़ोसी मातोश्री पर इकट्ठे हुए थे, वे उनके कमरे में जाने की इजाजत मांग रहे थे. उद्धव ने उन्हें मातोश्री आने से नहीं रोका था, बस ठाकरे के कमरे में प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी. राज को नहीं पता था कि उद्धव ने पड़ोसियों से क्या बात की है, इसलिए वे शिवसेना के नेताओं पर बरस पड़े थे.Raj and uddhav

संवादहीनता की इससे बेहतर मिसाल नहीं मिल सकती. ठाकरे बंधुओं के बीच गलतफहमी और अविश्वास लंबे समय से बरकरार है जो उन्हें अलग किए हुए है. सात साल बाद शिवसेना के समर्थक और राज के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के कार्यकर्ता दोनों चचेरे भाइयों को अब साथ काम करते देखना चाहते हैं. लेकिन हवाओं में गलतफहमी और सस्ती बयानबाजियों का जहर घुला है. दोनों के बीच की दरारें सबके सामने हैं.

अगले दिन 18 नवंबर को राज ने बाल ठाकरे की अर्थी को कंधा नहीं दिया. अटकलें गर्म हैं कि राज से ठाकरे का शव ले जाने वाले ट्रक पर चलने की बजाए अंतिम यात्रा में पैदल आने को कहा गया था जबकि उद्धव उस ट्रक पर सवार थे. शर्मिंदगी के एहसास से राज ने अंतिम यात्रा बीच में ही छोड़ दी और ट्रक के शवदाह गृह पहुंचने से कुछ मिनट पहले वे सीधे शिवाजी पार्क पहुंचे.

अपने सहयोगियों को उन्होंने बताया, ''मुझे सिर दर्द हो रहा था.” मगर हकीकत क्या थी, इसका खुलासा मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के एक अफसर के बयान से होता है, जिसने बताया कि पुलिस ने राज को अंतिम यात्रा में हिस्सा लेने से मना कर दिया था. राज 2005 में शिवसेना से अलग हो चुके थे. अगर वे ट्रक में ठाकरे के शव के साथ होते, तो मुमकिन था कि ठाकरे की अंतिम झलक देखने को बेचैन और उत्तेजित 30 लाख शिवसेना समर्थक हंगामा कर देते.

एक सवाल जो अकसर पूछा जाता रहा है, जिसे बाल ठाकरे की मृत्यु ने एक बार फिर जिंदा कर दिया है: क्या 52 वर्षीय उद्धव और 44 वर्षीय राज ठाकरे फिर साथ आएंगे? शिवसेना के समर्थक और एमएनएस के सदस्य मानते हैं कि व्यापक हितों के लिए उन्हें साथ आना ही चाहिए: व्यापक हित यानी कांग्रेस-एनसीपी गठजोड़ को सत्ता से बाहर करना. यह बात अलग है कि दोनों भाइयों को इसकी कोई जल्दी नहीं है. ठाकरे के आखिरी दिनों में राज हर अगले दिन मातोश्री जाते रहे, हालांकि उस दौरान उन्होंने उद्धव और उनके परिवार से कोई बातचीत नहीं की. वे या तो बीमार ठाकरे की बगल में बैठ जाते थे या फिर मातोश्री के पीछे खड़ी अपनी मर्सिडीज ई क्लास गाड़ी में पाए जाते.

उनके करीबी सहयोगियों का कहना है कि उद्धव के परिवार ने उनके साथ ठीक बरताव नहीं किया था. समर्थक बताते हैं कि जब वे मातोश्री जाते थे तो उन्हें एक कप चाय के लिए भी नहीं पूछा जाता था. मगर उद्धव के एक समर्थक इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं. वे कहते हैं, ''उद्धव ने बाल ठाकरे को मुखाग्नि देने से पहले राज का हाथ पकड़ा और उन्हें चिता के पास ले गए.

उनके मन में अगर कोई गलत  भावना होती तो वे राज को अंतिम क्रिया से दूर ही रखते.” एमएनएस के विधायक नितिन सरदेसाई के मुताबिक, उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि दोनों भाइयों के बीच क्या चल रहा था. वे कहते हैं, ''आखिरी के चार दिन मैं राज के साथ मातोश्री गया था. वे दोनों जब भी बालासाहेब की बगल में बैठते थे, मैं वहां नहीं होता.”

शिवसेना के समर्थकों की निचली कतार राज को स्वीकार करने को तैयार नहीं है. इन लोगों का मानना है कि 2009 के विधानसभा चुनावों से पहले राज ने बाल ठाकरे की भावनात्मक अपील की उपेक्षा कर दी थी. ठाकरे ने उस वक्त कहा था, ''मेरे दरवाजे हमेशा खुले हैं. फैसला राज का है.” अंधेरी से शिवसेना के डिप्टी जोनल चीफ जितेंद्र जनावले कहते हैं, ''यदि एक होने के बाद हम सत्ता में आ भी गए, तो उसका सुख लेने के लिए साहेब अब हमारे बीच नहीं होंगे. राज उनके जीते जी तो उन्हें खुश नहीं कर सके. हम उन्हें कभी स्वीकार नहीं कर सकते.”

राज को जब भी ठाकरे की अनुकृति बताया जाता है, तो जितेंद्र को इस बात से बहुत चिढ़ होती है, ''साहेब तो असली शोले थे (1975 की हिट फिल्म), राज तो रामगढ़ के शोले हैं (1991 में बनी उसकी नकल).” अंधेरी से ही एमएनएस के एक नेता मानते हैं कि शिवसेना से हाथ मिलाने में बड़ी व्यावहारिक दिक्कतें हैं. उनके शब्दों में, ''दोनों पार्टियों का अपना सांगठनिक ढांचा है. दोनों के विलय से अराजकता पैदा होने के अलावा और कुछ नहीं होगा.” शिवसेना के महाराष्ट्र में करीब 10 लाख सदस्य हैं जबकि एमएनएस के तीन लाख.

संबंध बहाली की किसी भी गुंजाइश से सरदेसाई इनकार करते हैं. वे कहते हैं, ''इस मामले में राज और उद्धव ही कोई फैसला ले सकते हैं.” वे इस राजनीति को आसान आंकड़ों से समझाते हैं: एमएनएस बढ़ रही है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 13 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में उसके नौ प्रत्याशियों को 1 लाख से ज्यादा वोट पड़े थे.

हालांकि उनमें से कोई जीत नहीं सका. मुंबई और पुणे की महानगरपालिका में एमएनएस की बड़ी मौजूदगी है. नासिक में तो यह सत्ता में ही है. सरदेसाई कहते हैं, ''हम किसी जल्दबाजी में नहीं हैं.” शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी कहते हैं, ''राजनीति में कट्टर दुश्मन भी साथ आ जाते हैं, लेकिन मैं सिर्फ  इतना कह सकता हूं कि निकट भविष्य में राज और उद्धव साथ नहीं आएंगे.”

मगर राजनैतिक मजबूरियां जो भी हों, पारिवारिक मसले तो अलग ही होते हैं. ठाकरे परिवार को जानने वाले एक करीबी बताते हैं, ''दोनों भाइयों की पत्नियां उन्हें साथ नहीं आने देंगी.” एक सूत्र के मुताबिक, उद्धव की महत्वाकांक्षी पत्नी रश्मि और राज की राजनीति से दूर रहने वाली लेकिन दबंग पत्नी शर्मिला दोनों ही यह चाहेंगी कि उनके पति अपनी राजनैतिक राह खुद गढ़ें. उद्धव के समर्थक याद करते हैं कि कैसे एक बार राज के घर पर उनकी पत्नी शर्मिला ने उन्हें बार-बार मातोश्री जाने पर डपटा था.

अपने निधन के घंटे भर पहले बाल ठाकरे उद्धव के छोटे बेटे तेजस (18) को देखना चाहते थे. तेजस जब कमरे में गया, तो ठाकरे ने उसका हाथ पकड़ कर उसकी पीठ ठोकी. वे बोल नहीं पा रहे थे, लेकिन क्या पीठ ठोककर वे कोई संदेश देना चाह रहे थे? गौरतलब है कि 18 अक्तूबर को उद्धव ने अपने बड़े बेटे आदित्य (23) को शिवाजी पार्क में हुई एक रैली में शिवसेना की युवा इकाई युवा सेना का प्रमुख घोषित किया था.

बाल ठाकरे का जाना उद्धव के नेतृत्व की अग्निपरीक्षा है. उद्धव के एक राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी का मानना है कि शिवसेना के 45 साल से ऊपर के कार्यकर्ताओं की खामोश नजरें भविष्य की घटनाओं पर बनी रहेंगी, उसके बाद ही वे तय करेंगे कि सेना में बने रहना है या उसे छोड़कर निकल जाना है. दूसरी ओर 25 साल तक के कार्यकर्ताओं ने अपना नेता चुन लिया है: उन्हें सौम्य और अंतर्मुखी उद्धव नहीं बल्कि चमत्कारी राज चाहिए.

इसमें कोई संदेह नहीं कि सेना को ठाकरे की चमत्कारी राजनीति की कमी अखरेगी. शरद पवार, लालकृष्ण आडवाणी और प्रणब मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ उनके रिश्ते बेहतरीन थे. जब प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया, तो बाल ठाकरे ने एनडीए का घटक होने के बावजूद उनका समर्थन किया. उद्धव को हर पार्टी के बीच ऐसी लोकप्रियता हासिल नहीं है. इससे भी बुरा यह है कि 1986 से शिवसेना का लगातार साथ दे रही बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं. इसके उलट राज के साथ गडकरी के रिश्ते अच्छे हैं. ध्यान रहे कि 2009 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक साक्षात्कार में राज ने गडकरी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का योग्य उम्मीदवार ठहराया था.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे राज को साथ जोडऩे को काफी उत्सुक हैं. पार्टी ने अक्तूबर में घोषणा की थी कि 2014 का विधानसभा चुनाव मुंडे के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. महाराष्ट्र पर सेना की पकड़ ढीली होती जा रही है. उसने 2009 में विधानसभा की 288 में से सिर्फ 45 सीटें जीती थीं. मुंबई और ठाणे को छोड़ दें तो किसी भी बड़ी नगरपालिका में वह सत्ता में नहीं है. इस साल फरवरी में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में एनसीपी और कांग्रेस के बाद शिवसेना तीसरे नंबर पर रही थी. मुंडे को यदि ऐसा लगा कि एमएनएस पर दांव खेलना फायदेमंद है, तो उन्हें शिवसेना को किनारे लगाने में कोई संकोच नहीं होगा.