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ललित मोदी: दांव पर बहुत कुछ

चमक-दमक और शाही ठाठ वाले ललित मोदी आग उगल रहे हैं और उसमें उनके दुश्मन ही नहीं, कभी खास रहे दोस्त भी बराबर झुलस रहे हैं.

अपडेटेड 22 जून , 2015

उत्तर में हाइड पार्क और पूरब में कडोगन प्लेस गार्डेन से घिरा, लंदन के सबसे शांत कोने में स्थित, केनसिंगटन और चेल्सिया के शाही नगर के भीतर,  7,000 वर्ग फुट का लाल ईंटों वाला एक विशाल भवन ललित कुमार मोदी का घर कहलाता है. पिछले चार साल के दौरान जिस किसी जानने वाले ने उनकी शानदार मेजबानी का लुत्फ  उठाया है, वह आठ डबल बेडरूम और चार रिसेप्शन रूम वाले इस पांच मंजिला भवन का जिक्र सिर्फ इसकी भव्यता के चलते नहीं करता. वे बताते हैं कि तस्वीरों और प्रतिमाओं से लबरेज और काठ की तख्तियों से सजे अपने इस आवास में किसी मेहमान के आगमन के कुछ मिनटों के भीतर ही मोदी उसे जरूर बताते हैं कि यह इलाका कितना खास है. वे अपने अतिथियों के सामने एक से ज्यादा बार यह जिक्र करना नहीं भूलते कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का लंदन वाला घर वहां से बमुश्किल मील भर दूर 118 पार्क स्ट्रीट पर डॉर्शेस्टर होटल की बगल में है. आखिर यह बताने की वजह भी है क्योंकि ललित मोदी का निर्वासन भी तो पाकिस्तानी नेताओं के निर्वासन जैसा ही खास है. कथित वित्तीय अनियमितताओं से लेकर विदेशी मुद्रा विनिमय के उल्लंघन तक तमाम आरोपों में उनकी तलाश भारत को है लेकिन इससे बेपरवाह मोदी इस जन्नत में चैन से बैठे वक्त गुजार रहे हैं. कभी अपने जख्मों को सहला रहे हैं तो कभी किसी अगले हमले की साजिशें रच रहे हैं. टीवी इंटरव्यू के रास्ते या ट्विटर पर उनके हमले बदस्तूर जारी हैं. उनके घर के भूतल पर रखी शीशे की एक मेज पर कागजों के गट्ठर लदे हैं. यह उनका शस्त्रागार है. इनमें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) की तमाम कार्रवाइयों के दस्तावेज मौजूद हैं, जिस पर कभी उनका राज हुआ करता था और जिसने उन पर आजीवन बंदिश लगा दी. पिछली बार 2013 में उनसे यहां मिलने आए एक मेहमान बताते हैं, “ये कागजात सिर्फ  सूचना भर नहीं हैं. ये कुछ गोपनीय दस्तावेज हैं जिनकी प्रति शायद उनके कुछ अंदरूनी सहयोगियों ने मुहैया कराई है. ललित के दोस्त तेजी से कम होते जा रहे हैं, लेकिन अब भी कुछेक ऊंची जगहों पर बैठे लोग उनके साथ हैं.” 

ताकतवर दोस्त बनाने और गंवाने की यही कला है जिसने ललित मोदी की जिंदगी के मरकज पर असर डाला है. उनके साथ जुड़ना एक दुधारी तलवार के साथ खेलना है-जब तक चीजें ठीक हैं तब तक तो पूरा मजा, उत्सव और लाभ मिलता है लेकिन जैसे ही वे किसी नए विवाद में पड़ते हैं, उन्हें बरदाश्त करना मुश्किल हो जाता है. यह बात अब जाकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, ब्रिटिश सांसद कीथ वाज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पता चल रही है. राजे ने उन्हें ब्रिटेन में रहने के लिए अनुमति दिलवाने में कथित तौर पर मदद की थी जबकि सुषमा और वाज ने उनके ऊपर यात्रा संबंधी लगी बंदिशों को हटाने के लिए जरूरी दस्तावेज मुहैया करवाने में संभवतः मदद की थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को यह कड़वी सचाई 2012 में ही समझ में आ गई थी जब आइपीएल की तत्कालीन कोच्चि फ्रेंचाइजी के स्वामित्व पर मोदी के साथ ट्विटर पर हुई झड़प के चलते उन्हें पद गंवाना पड़ा था.

ठोस कानूनी अर्थों में 49 वर्षीय ललित मोदी  न तो फरार हैं और न ही भगोड़े, जैसा कि पिछले कुछ दिनों के दौरान उन्होंने और उनके वकील महमूद आब्दी ने बार-बार दोहराया है. किसी भी अदालत ने उन्हें भगोड़ा नहीं ठहराया है. लेकिन नैतिक दृष्टि से देखें तो 24 अप्रैल, 2010 को आइपीएल का तीसरा संस्करण खत्म होने के बमुश्किल तीन हफ्ते बाद 12 मई, 2010 को भारत से उनकी गुमशुदगी को साधारण भाषा में भागना ही कहा जाएगा. मोदी ने कहा था कि वे छुट्टियां मनाने इंगलैंड जा रहे हैं, हालांकि इससे पहले ही आयकर विभाग (आइटी) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच और छापों की शुरुआत हो चुकी थी. उनसे ईडी और आइटी की एक संयुक्त जांच टीम ने 21 अप्रैल और 22 अप्रैल, 2010 को दो बार पूछताछ की थी, जिसके सवालों के केंद्र में आइपीएल की कुछ टीमों की फंडिंग का स्रोत और एक टेलीविजन सौदा था, जिसके तहत सोनी एमएसएम ने आइपीएल के प्रसारण अधिकार दस साल के लिए दुबारा खरीदने की एवज में वर्ल्ड स्पोर्ट्स ग्रुप (मॉरीशस) को 8 करोड़ डॉलर का 'सुविधा शुल्क' चुकाया था. यह सौदा पहले 91.8 करोड़ डॉलर में तय हुआ था लेकिन बाद में अगले नौ साल के लिए इसे 1.02 अरब डॉलर पर तय किया गया. आरोप यह था कि इस भुगतान का कम-से-कम एक हिस्सा रिश्वत के रूप में एक विदेशी खाते में हस्तांतरित किया गया.

इस मामले की गर्मी जैसे-जैसे बढ़ती गई और आरोप सघन होते गए, मोदी की छुट्टियां लंबी होती चली गईं. गर्मी बीतने पर शरत ऋतु आई तो उन्होंने लंदन में अपनी जड़ें ही रोप दीं. मोदी ने स्लोन स्ट्रीट के मकान को किराए पर लिया और 4,000 मील दूर बैठकर अपना कारोबार निबटाने लगे. जांचकर्ताओं ने उन्हें पूछताछ के लिए कई बार बुलाया लेकिन सुरक्षा कारणों का हवाला देकर वे लगातार भारत आने से मुकरते रहे. दस माह बाद 3 मार्च, 2011 को उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया और राजस्व विभाग ने एक नोटिस जारी कर दिया कि अगर वे किसी भी भारतीय हवाई अड्डे पर पाए जाएं तो उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया जाए.

सितंबर 2013 में बीसीसीआइ की एक अनुशासन समिति ने मोदी को आठ मामलों में दोषी पाया, जिसमें मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली और तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई अन्य सदस्य थे. मोदी को वित्तीय अनियमितता, दुराचार, अनुशासन तोड़ने और बीसीसीआइ के हितों के लिए नुक्सानदायक कार्रवाइयां करने का दोषी पाया गया. समिति ने मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने 2010 में नए फ्रेंचाइजी की नीलामी के दौरान बोली में हेराफेरी की थी, फ्रेंचाइजी के खरीदारों की बांह मरोड़ी थी और बिना किसी अधिकार के मीडिया और इंटरनेट के अधिकार बेचे थे. बीसीसीआइ ने मोदी को अप्रैल 2010 में 22 आरोपों की सूची मेल की थी जिसमें एमएसएम-डब्लूएसजी टीवी सौदे में 8 करोड़ डॉलर की रिश्वतखोरी का भी आरोप शामिल था. मोदी इन तमाम आरोपों से इनकार करते हैं. उन्हें भारत वापस लाने का इकलौता गंभीर प्रयास तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने किया था, जिन्होंने मई 2013 में ब्रिटेन के वित्त मंत्री जॉर्ज ऑसबॉर्न को दो पत्र लिखकर मोदी के प्रत्यर्पण की मांग की थी. ब्रिटेन की सरकार ने इसका पालन नहीं किया.

निर्वासन में मौज
मोदी 2010 से 2014 के बीच चार साल तक अपनी पत्नी मीनल और बच्चों रुचिर तथा आलिया के साथ ब्रिटेन में ही बंधे रहे. यहां उनकी जिंदगी शानदार थी. उनके घर आने वाले ऊंचे लोगों में क्रिस्टीना और स्टीव “वार्जमैन थे जो असेट मैनेजमेंट फर्म ब्लैकस्टोन के सह-संस्थापक हैं. मोदी डॉर्शेस्टर होटल में स्थित चाइना टैंग रेस्तरां में वक्त बिताते थे, जो हांगकांग के कारोबारी डेविड टैंग का है. वे नियमित तौर से विंबल्डन, इंग्लिश प्रीमियर लीग में पाए जाते थे और लंदन ओलंपिक में भी मौजूद थे जिसके टिकट की पेशकश उन्होंने अपने उन तमाम दोस्तों को की थी जो उन गर्मियों में लंदन में थे. वे क्रिकेट मैच में नहीं जाते थे, यहां तक कि लॉर्ड के सालाना टेस्ट मैच में भी नहीं गए.

कोई भी निर्वासन चाहे कितना ही खूबसूरत क्यों न हो, उसमें एक दर्द होता है. मोदी कभी अपने निजी लियरजेट का इस्तेमाल टैक्सी की तरह किया करते थे, इसलिए उन्हें इस बात का मलाल था कि वे पानी से घिरे एक द्वीप पर चार साल से बंधे पड़े हैं. हवा में उड़ने वाले को जमीन पर रेंगना कभी नहीं भाता. जमीन से ऊपर न उठ पाने का भार उनके दिमाग को जकड़ता जा रहा था. लंदन में गर्मियां बिताने वाले एक भारतीय एक्जीक्यूटिव, जो कभी-कभार वहां मोदी से भी मिलते हैं. वे बताते हैं, “उन्हें दूसरे देशों में हो रही शादियों की खबर लगती या फिर लंदन के किसी नामचीन द्वारा यूरोप में दी गई पार्टी का पता चलता, तब आप उन्हें देखकर कह सकते थे कि वे अकेला और मजबूर महसूस कर रहे होंगे.”

मोदी के यात्रा से संबंधित दस्तावेज जैसे ही 1 अगस्त, 2014 को वाज और सुषमा के दखल से उन्हें हासिल हुए-और उसके कुछ सप्ताह पहले दिल्ली हाइकोर्ट ने उनका पासपोर्ट भी बहाल कर दिया था-उन्होंने खो चुके एक-एक पल को वसूल करने की शुरुआत की. वे 3 अगस्त को लिस्बन के चैंपेलिमॉड सेंटर फॉर द अननोन में बेशक गए थे, जो शायद उनकी पत्नी मीनल के कैंसर के इलाज का मामला था. “मानवीय आधार” पर यात्रा दस्तावेज की मांग करने की वजह उन्होंने यही बताई है. उसके बाद आलीशान विदेशी यात्राओं की बाढ़ आ गई. ठीक तीन बाद इबिजा से उनका यह सफर शुरू हुआ.

इंडिया टुडे टीवी  के राजदीप सरदेसाई को 16 जून को मोंटीनीग्रो में दिए गए साक्षात्कार में मोदी ने इस यात्रा के बारे में कहा, “कैंसर का उपचार इतना इंकलाबी है कि अगर यह कामयाब हो गया तो आप उसके बाद टहलते हुए डिनर के लिए जा सकते हैं. हां, हम लोग तीन दिन बाद इबिजा में इसी का जश्न मना रहे थे.”

दुनिया की सैर
अगले दस महीनों के दौरान मोदी ने वेनिस से हवाना और फुकेट से तंजानिया के सेरेंगेती तक कम-से-कम 25 अलग-अलग जगहों की यात्रा की. इन यात्राओं के दौरान वे नाओमी कैंपबेल से लेकर पेरिस हिल्टन और केविन स्पेसी से लेकर स्टीफन फ्राइ तक तमाम मॉडलों व अभिनेताओं के साथ लगातार अपनी तस्वीरें इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते रहे. विदेश में होने वाली भारतीय शादियों के भी वे नियमित मेहमान बन गए. मसलन, 12 जून को वे वेनिस के सैन क्लीमेंते द्वीप पर सेंट रेगिस होटल में किमी ग्रोवर और पामेला ग्रोवर के बेटे अश्विन और लंदन की सोशलाइट रिया खिलनानी की शादी में थे. ग्रोवर दंपती मॉडेला वुलेंस परिवार का हिस्सा हैं और मीनल के चचेरे रिश्ते में आते हैं. इससे पहले 27 मई को मोदी इस्तांबुल के सिरागन पैलेस में उद्योगपति प्रमोद गोयनका के बेटे यश और होटल व्यवसायी रमेश नारंग की बेटी नताशा की शादी में मौजूद थे. मोदी ने 6 जून को विस्ताजेट से दो प्लेन किराए पर लिए और मीनल का जन्मदिन मनाने के लिए 50 मेहमानों को उसमें लादकर हवाना ले गए. उस वक्त हवाई जहाज के इमोटिकॉन के साथ उन्होंने एक ट्वीट किया था.

इस दौरान मोदी ने एक और विवाद में जाने कैसे अपनी टांग फंसा ली थी. यह करोड़ों डॉलर के कारोबार वाली कंपनी अमन रिजॉर्ट्स पर नियंत्रण का विवाद था जो दुनिया में 28 जगहों पर आलीशान होटल चलाती है. रूस के अरबपति व्लादीमिर दोरोनिन, अमेरिकी कारोबारी उमर अमानत और स्वीडिश उद्यमी जोहान एलियाश के बीच एक लंबी कानूनी जंग में मोदी को एक मामले में “चौथा पक्ष” बताया गया है. इस मामले की सुनवाई ब्रिटेन हाइकोर्ट की चांसरी डिवीजन में चल रही है. मोदी को अमानत का करीबी बताया जाता है लेकिन अमन रिजॉर्ट्स में न तो उनके वित्तीय हित जुड़े हैं और न ही उनको कोई आधिकारिक पद हासिल है. कुछ गवाहों का आरोप है कि मोदी ने अमन रिजॉर्ट्स के प्रधान शेयरधारक और चेयरमैन एलियाश को 2014 विंबलडन के दौरान आइएमजी हॉस्पिटालिटी टेंट में धमकी दी थी और सार्वजनिक तौर पर कहा था कि वे मुकदमे में पीछे हट जाएं.

फिलहाल चर्चा यह है कि आइपीएल की तर्ज पर मोदी चीन में एक फुटबॉल लीग स्थापित करने के जुगाड़ में जुटे हैं, जिसमें वे मेसी और नेमार जैसे शीर्ष खिलाडिय़ों के साथ अल्पकालिक अनुबंध करने के प्रयास में हैं. सूत्रों का दावा है कि उनके इस उद्यम में चीन के बड़े कारोबारी, थाइलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनवात्रा और क्यूबा के नेता राउल कास्त्रो भी जुड़े हुए हैं. कास्त्रो और शिनवात्रा से उनके नए संपर्क बने हैं.

नाकारा लड़का
बचपन से ही ललित मोदी पर नाकारा होने की मुहर लगी हुई थी, जब वे सिर्फ  बीना और के.के. मोदी के बेटे के रूप में जाने जाते थे जिनका कारोबार लगातार फैल रहा था और जिनकी फर्म गॉडफ्रे फिलिप्स भारत की दूसरे नंबर की तंबाकू कंपनी बन गई थी. मोदी जब 1985 में अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे, तब नशे में मार करने के एक मामले का उन्हें दोषी पाया गया था. मोदी को इस शर्त पर वापस बुलाया गया कि वे दोबारा अमेरिका लौटकर नहीं जाएंगे. इस काम में उनके पिता के कुछ मित्रों ने मदद की थी-अग्रणी कारोबारी जेन्स होवाल्ट, अलेक्जेंडर्स डिपार्टमेंट स्टोर रॉबिन फारकास के मालिक वी.एल. ग्रेगरी और अरबपति ल्योनार्द लाउदर, जो हाल तक कॉस्मेटिक कंपनी एस्ती लाउदर के मुखिया थे.

देश लौटने के बाद उनके ए-1, महारानी बाग, दिल्ली के घर पर अक्सर उनकी मां की दोस्त मीनल आया करती थीं जो नाइजीरिया के उद्योगपति पेस्सु आसवानी की बेटी थीं. ललित मोदी से करीब दस साल बड़ी मीनल की शादी सउदी अरब के एक प्रोफेशनल जैक सगरानी से हुई थी लेकिन सगरानी के एक कथित घोटाले में पकड़े जाने के बाद दोनों अलग हो गए. यहीं ललित और मीनल की मुलाकात हुई और दोनों का मिलना-जुलना बढ़ गया. कुछ महीने बाद दोनों ने अपनी शादी की घोषणा करके हलचल मचा दी. मीनल की बहन कविता उद्योगपति सुरेश चेल्लाराम से ब्याही है जो आइपीएल की राजस्थान रॉयल्स फ्रेंचाइजी मंब आंशिक हिस्सेदारी रखते हैं. मीनल की पहली शादी से हुई बेटी करिमा की शादी डाबर परिवार के गौरव बर्मन से हुई है. गौरव के भाई मोहित किंग्स इलेवन पंजाब के आंशिक हिस्सेदार हैं.

मोदी का पेशेवर करियर अस्सी और नब्बे के दशक में हिचकोले खाता रहा. उन्होंने मुंबई के बांद्रा बैंडस्टैंड स्थित एक विशाल दक्रतर से मोदी एंटरटेनमेंट नामक कंपनी की शुरुआत की. भारत में ईएसपीएन को लाने में इसकी भूमिका निर्णायक रही. इसने टीवी पर एक नेशनल लॉटरी कार्यक्रम चलाया और डिज्नी के साथ मिलकर भारत में हिंदी में अलादीन (1992) का प्रदर्शन किया. ये सारे उद्यम हालांकि अपने किस्म के नए थे लेकिन कोई भी चल नहीं पाया. इसी दौरान मोदी के दिमाग में 50 से ज्यादा शहरों में एक क्रिकेट लीग का विचार पनपा जिसमें खिलाडिय़ों को अच्छा भुगतान किया जाना था और टीवी अधिकारों की बिक्री से इसका पैसा आना था. उन्होंने विज्ञापन गुरु पीयूष पांडे और क्रिकेटर अरुण लाल के सहयोग से 1993 में बीसीसीआइ के समक्ष यह प्रस्ताव रखा लेकिन इसे खारिज कर दिया गया, क्योंकि बोर्ड का मानना था कि ऐसी लीग मुनाफा नहीं दे सकती.

मोदी की किस्मत तब पलटी मारने लगी जब वसुंधरा राजे 2003 में राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं. मोदी अपने स्कूल के दौर की मित्र बीना किलाचंद के माध्यम से राजे को जानते थे, जो राजे के साथ ही जयपुर चली आई थीं. मोदी भी पीछे-पीछे इस उम्मीद में पहुंच गए कि मुख्यमंत्री से निकटता उन्हें राज्य में एक मुनाफाकारी धंधा खोलने में मदद कर सकेगी. मोदी धीरे-धीरे राजे के करीबी लोगों में शामिल हो गए और कथित दलाल के रूप में उनकी साख बढऩे लगी. जयपुर में उन्होंने क्रिकेट प्रशासन पर पूरी तरह कब्जा जमा लिया. इसके लिए एक कानून का इस्तेमाल किया गया जिसके तहत क्रिकेट एसोसिएशन को सरकार के अंतर्गत ला दिया गया. इसके अलावा दो “हेरिटेज” हवेलियों की खरीद में उनकी कथित संलिप्तता पर भी काफी बवाल हुआ.

अर्श से फर्श पर
राजस्थान का नुमाइंदा बनकर बीसीसीआइ में घुसते ही मोदी की किस्मत ने उछाल मारी-उनका सबसे पहला दांव 2006 में एक दलाल की भूमिका निभाते हुए जगमोहन डालमिया को हराने में शरद पवार के धड़े की मदद करना रहा तो दूसरा दांव बीसीसीआइ के लिए पैसे लाने वाले शख्स के रूप में अपनी भूमिका को स्थापित करना रहा. उनके पास पैसे बनाने के नुस्खे थे और जाहिर तौर पर बीसीसीआइ में मौजूद ताकतवर राजनीतिक लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. उस साल बोर्ड का राजस्व एक अरब डॉलर के पार जा पहुंचा और मोदी उसके सभी बड़े व्यावसायिक सौदों की देखरेख करने लगे. दो साल बाद उनकी अपनी पैदाइश आइपीएल ने क्रिकेट के अर्थशास्त्र को नए चरण में पहुंचा दिया. यह 1993 की उनकी मूल योजना का 20-20 संस्करण था. बीसीसीआइ अगर आज एक विशाल कॉरपोरेट संस्था बना हुआ है जिसे खेल से ज्यादा पैसे की चिंता है, तो उसे ऐसा बनाने में मोदी की अहम भूमिका है.

मोदी ने आइपीएल को बिल्कुल अपने सांचे में गढ़ा, चमक-दमक, दिखावा, शराब, शबाब -और उसे मुंबई के फोर सीजंस होटल में बैठकर चलाते रहे. वे हर मैच में जेट से जाते थे जो उनका निजी परिवहन था. वे खेल के भी नियम बनाते थे और कारोबार के भी, कि दोनों को कैसे चलना चाहिए. उन्होंने इस तंत्र को इतना अनौपचारिक बना दिया कि कई कथित सिलसिलेवार अनियमितताएं पनपने लगीं, जिसके चलते सरकारी एजेंसियां उनके पीछे पड़ गईं. इसके अलावा जिस तरीके से उन्होंने खुद को क्रिकेट के नए मसीहा के रूप में प्रचारित किया, इसने बीसीसीआइ के अहंकारी अधिकारियों को बिदका दिया. फिर शुरू हुई आइपीएल पर कब्जे की लड़ाई, जिसमें पहला दांव खेला बोर्ड के तत्कालीन सचिव एन. श्रीनिवासन ने, जिन्होंने लीग से जुड़े कुछेक बड़े व्यावसायिक सौदों पर मोदी को फैसले लेने से रोक दिया.

मोदी अब भी हवा में उड़ रहे थे और नेताओं, उद्योगपतियों व सेलिब्रिटी शख्सियतों के साथ चोंच लड़ाने में इतने मशगूल थे कि वे अपनी जड़ों को ही भूल गए जहां से वे उठकर आए थे. भारतीय क्रिकेट पर लंबे समय से अपना नियंत्रण जमाए हुए बीसीसीआइ नाम के निजी क्लब के भीतर आप तब तक प्रधान नहीं बन सकते जब तक कि आपका वोट बैंक नहीं हो. राजस्थान में जैसे ही राजे की सरकार गई, मोदी राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का चुनाव हार गए, क्योंकि नई कांग्रेसी सरकार ने रातोरात तख्तापलट की साजिश रच दी. 2010 आते-आते आइपीएल अपनी गति से दौड़ने लगा था. ऐसे में जब वे दूसरी बार हारे तो महत्वहीन हो गए.

क्रिकेट जगत में मोदी के तमाम मित्रों ने कम से कम सार्वजनिक रूप से उनसे अपना हाथ खींच लिया. उनके राजनीतिक और सेलिब्रिटी संपर्क हो सकता है, अभी बचे हों, लेकिन उनके खिलाफ  लगे आरोप, मुंह खोल देने की उनकी आदत और उनके तेवरों के चलते लोग सार्वजनिक तौर पर उनका समर्थन करने से कतराने लगे. मोदी के सहयोगियों को तुरंत यह एहसास हो गया कि उनके साथ चोंच लड़ाना दरअसल मौत का बोसा लेने जैसा था. अरुण जेटली से लेकर राजीव शुक्ल और शरद पवार से लेकर प्रफुल्ल पटेल तक हर कोई अब उन्हें एक हाथ की दूरी पर ही रखता है. स्वराज और राजे को यह बात अब तक समझ में नहीं आई थी, लेकिन आज वे बड़ी मुश्किल से इस सच का कड़वा घूंट पी रही हैं.

बड़ा सवाल यह है कि मोदी ने अपने यात्रा दस्तावेज पाने के लिए जो कीमत चुकाई थी, क्या उससे भी बड़ी कीमत उन्हें ऐसा करने के तरीकों के एवज में चुकानी पड़ेगी? क्या सरकार को उन्हें भारत लाने के लिए महज इसलिए बाध्य होना पड़ेगा ताकि साबित कर सके कि वह उनकी अनावश्यक रूप से मदद नहीं कर रही थी? जाहिर है, इन सवालों के जवाब लंदन के स्लोन स्ट्रीट पर रहने वाले मोदी का जायका खराब करने वाले होंगे और वे ऐसा कतई नहीं चाहेंगे.