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एनजीओ से डरी मोदी सरकार!

गैर-सरकारी संगठनों को मिलने वाले विदेशी पैसों पर सरकारी अंकुश सिविल सोसाइटी का मुंह बंद करने की कोशिश का संकेत.

अगस्त 2012 में नई दिल्ली में कोयला घोटाले के खिलाफ प्रदर्शन करते ग्रीनपीस के कार्यकर्ता
अगस्त 2012 में नई दिल्ली में कोयला घोटाले के खिलाफ प्रदर्शन करते ग्रीनपीस के कार्यकर्ता
अपडेटेड 11 सितंबर , 2015

नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को मिलने वाले विदेशी पैसों पर रोक लगाने का फैसला किया है, उसे चुनौती देने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है कि उसका मजाक उड़ाया जाए. इसलिए हाल ही में जब ग्रीनपीस इंडिया पर विदेशी पैसा लेने से रोक लगा दी गई, तो इस एनजीओ ने बिल्कुल वही तरीका अपनाया. सरकार की नजर में वह 'राष्ट्रीय हित' के खिलाफ काम कर रहा है. 1 सितंबर को ग्रीनपीस ने एक बॉलीवुड पोस्टर डिजाइन की प्रतियोगिता की घोषणा की, जिसमें कुछ मशहूर फिल्मों को मजेदार ढंग से पेश किया गया था. उदाहरण के लिए कभी खुशी कभी गम के पोस्टर में ग्रीनपीस के कर्मचारी एक-दूसरे की बगल में ठीक उसी तरह खड़े हुए थे, जिस तरह यशराज फिल्म के कलाकारों को पोस्टर में खड़े दिखाया गया था. इसी तरह ए वेन्जडे फिल्म के पोस्टर के नीचे लिखा था, ''ग्रीनपीस इंडिया-एमएचए फिल्मवर्क्स ऐंड आइबी प्रोडक्शंस पेश करता है... '' इन पोस्टरों के जरिए फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन ऐक्ट (एफसीआरए) को रद्द करने वाले गृह मंत्रालय और जून 2014 की अपनी रिपोर्ट में हजारों एनजीओ पर विदेशी पैसों का दुरुपयोग का आरोप लगाने वाले इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) को निशाना बनाया गया था.

दरअसल, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद 13,700 भारतीय और विदेशी एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंसों को रद्द किया गया है. इनमें ग्रीनपीस इंडिया और फोर्ड फाउंडेशन शामिल हैं. फोर्ड फाउंडेशन 1952 से काम कर रहा है और करीब 50 करोड़ डॉलर दान कर चुका है. इनके अलावा कुछ भारतीय संगठन, जैसे कि दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का एनजीओ कबीर, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट और नेहरू युवा केंद्र संस्थान भी इनमें शामिल हैं.

जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण का कहना है कि कई अंतरराष्ट्रीय एनजीओ को 'खास तौर पर निशाना' बनाया जा रहा है, ''क्योंकि सरकार उन्हें अपने लिए या कॉर्पोरेट विकास के मॉडल के लिए खतरे के तौर पर देखती है. '' उदाहरण के लिए ग्रीनपीस इंडिया ने आरटीआइ के जरिए इस तथ्य को उजागर कर दिया कि पिछली सरकार के बाद प्रतिबंधित सूची में दर्ज 233 कोयला खदानों में से इसी सूची में अब सिर्फ 35 खदान ही रह गई हैं. जहां तक 12.5 अरब डॉलर वाले फोर्ड फाउंडेशन का मामला है, सरकार ने अप्रैल में इस पर तब नजर रखना शुरू किया जब सीबीआइ ने तीस्ता सीतलवाड के एनजीओ सबरंग कम्युनिकेशंस ऐंड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड (एससीपीपीएल) पर छापा मारा.

एनजीओ के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया अलग-अलग होती है. यह इस पर निर्भर करता है कि वे ट्रस्ट होना चाहते हैं, सोसाइटी या नॉन-प्रॉफिट कंपनी. चैरिटेबल सोसाइटी या वे जो विज्ञान, साहित्य या फाइन आर्ट्स, निर्देश, उपयोगी ज्ञान या राजनैतिक शिक्षा के प्रसार के लिए स्थापित होते हैं, उन्हें 1860 के सोसाइटीज ऐक्ट के तहत रजिस्टर्ड होना अनिवार्य होता है. अगर कोई अंतरराष्ट्रीय एनजीओ भारत में अपनी शाखा खोलना चाहता है तो उसे विदेशी फंड हासिल करने के लिए एफसीआरए ऐन्न्ट से अनुबंधित होना अनिवार्य होता है. हर साल के अंत में यह दिखाना जरूरी होता है कि जिस काम के लिए फंड देश में हासिल किया गया, उसमें उसका इस्तेमाल हुआ और बैंक का ब्यौरा देना होता है.

ग्रीनपीस इंडिया के मामले में लगता है कि स्थिति बिगड़ती जा रही है. इस पर पिछले पूरा साल हुआ सरकारी 'उत्पीडऩ' किसी से छिपा नहीं है. इसमें काम करने वाली प्रिया पिल्लै को ब्रिटेन जाने से रोका गया क्योंकि वे एक ब्रिटिश संसदीय समिति से बात करने जा रही थीं. इसके मातृ संगठन से मिलने वाले पैसों को इसकी भारतीय शाखा में फ्रीज कर दिया गया और बाद में इसके सात खातों को भी फ्रीज कर दिया गया.

अब लगता है, तमिलनाडु पंजीकरण विभाग, जहां ग्रीनपीस इंडिया पंजीकृत है, कुछ ज्यादा मुश्किल सवाल पूछ रहा है. इनमें कई निरर्थक सवाल भी हैं. उदाहरण के लिए, इसकी सालाना आम बैठक में उपस्थिति के दस्तखत पन्ने को अधिकारियों को क्यों नहीं दिया गया? ग्रीनपीस इंटरनेशनल किस प्रकार ग्रीनपीस इंडिया को नियंत्रित करता है? एफसीआरए के तहत घोषित विदेशी आय पंजीकरण विभाग में दिखाई गई भारतीय आय से मेल क्यों नहीं खाती है? इस आखिरी सवाल के जवाब में ग्रीनपीस इंडिया की अंतरिम सह-कार्यकारी निदेशक विनुता गोपाल का कहना है कि इसकी वजह साफ है, दोनों आय क्रमश: दो अलग-अलग स्रोतों, विदेशी और भारतीय से हासिल हुई हैं. वे कहती हैं, ''यह साफ है कि गृह मंत्रालय हमारा मुंह बंद करने की कोशिश कर रहा है. इससे पता चलता है कि भारत में विरोध के लिए जगह सिकुड़ती जा रही है. ''

लेकिन विनुता जोर देकर कहती हैं कि भारतीय न्यायपालिका में उनकी गहरी आस्था है. अपना खाता फ्रीज किए जाने के बाद जब ग्रीनपीस ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो दिल्ली हाइकोर्ट ने न सिर्फ एनजीओ को उसके भारतीय खाते को चालू रखने की इजाजत दी बल्कि यह टिप्पणी भी की कि विरोध किसी भी लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है. ग्रीनपीस इंडिया अब एफसीआरए के निरस्तीकरण को अदालत में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है. 

गृह मंत्रालय की नजर में खटकने वाले अन्य बड़े संगठनों में पर्यावरण से जुड़े एनजीओ जैसे कि क्लाइमेटवर्क्स फाउंडेशन, 350.ओआरजी और सियरा क्लब, और भारत में गरीबी उन्मूलन को लेकर 1972 से काम कर रहा एनजीओ ऐक्शनएड, डैनिश इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी (डेनिडा), हॉलैंड का एनजीओ हिवोस और अमेरिका का एनजीओ मर्सी कोर शामिल हैं. हिवोस और 350.ओआरजी के नाम सबसे पहले जून 2014 में आइबी की रिपोर्ट में दर्ज किए गए थे. उसकी रिपोर्ट में बताया गया था कि भारतीय जीडीपी वृद्धि का कम से कम 2-3 फीसदी इन एनजीओ की गतिविधियों से प्रभावित हो रहा था. वे पर्यावरण के मुद्दे पर औद्योगिक गतिविधियों में रुकावट पैदा कर रहे थे. ग्रीनपीस इंडिया को 'राष्ट्रीय आर्थिक सुरक्षा' के लिए खतरा बताया गया था. इसी तरह हिवोस और 350.ओआरजी को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया गया था. गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता कुलदीप धतवालिया कहते हैं, ''सरकार एफसीआरए के मुताबिक एनजीओ के कामकाज को दुरुस्त कर रही है. कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. ''

सरकार की ओर से फोर्ड फाउंडेशन के 'उत्पीडऩ' की वजह से इसकी भारतीय निदेशक कविता रामदास को न्यूयॉर्क चले जाना पड़ा है. फाउंडेशन को 'पूर्व अनुमति' की निगरानी सूची में रखे जाने से, जिसका मतलब है कि भारतीय बैंक गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना फोर्ड के पैसों को वितरित नहीं कर सकते, 40 लाख डॉलर के दान को फ्रीज कर दिया गया है.
न्यूयॉर्क में फाउंडेशन से अनुदान पाने वालों के लिए जारी किए गए एक पत्र में रामदास ने बताया कि हाल के महीनों में भारत में सिविल सोसाइटी को 'तेजी से बदलती चुनौतियों' का सामना करना पड़ा था. सरकार में फाउंडेशन के पंजीकरण के लिए उसका आवेदन अभी लंबित है. इन कुछ वर्षों में यह पंजीकृत नहीं हुआ था.

यह स्पष्ट नहीं है कि विदेशी एनजीओ पर कसा जा रहा यह शिकंजा क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बीच तनाव का नतीजा है. खासकर तब से जब भारत में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा ने इसे लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी और उसके बाद पीएमओ ने इस पर पुनर्विचार करने का फैसला किया था.

प्रशांत भूषण ने सरकार के इन कदमों के खिलाफ लडऩे का फैसला किया है. उनका कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस जैसी राजनैतिक पार्टियां वेदांता की सहायक कंपनियों से पैसा ले चुकी हैं, और इस तरह उन्होंने एफसीआरए का उल्लंघन किया है. भूषण के मुताबिक, पिछले साल गृह मंत्रालय ने ही स्वीकार किया था कि दोनों पार्टियों ने वेदांता की सहायक कंपनियों से चंदा लिया था. वेदांता के बही खाते में 21 लाख डॉलर के दान का उल्लेख है.

सरकार को एनजीओ को मिले फंड और घोषणा के मुताबिक उसके इस्तेमाल की सूचना मांगने का पूरा हक है. वे इसे और उचित तरीके से भी मांग सकते हैं. लेकिन सरकार जिस तरह से कुछ विदेशी गैर-सरकारी संगठनों पर 'राष्ट्रीय सुरक्षा' की दफा जोड़ रही है और इसकी वजह बताने से मना कर रही है, इससे और कुछ नहीं, भ्रम की स्थिति ही बन गई है.