मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 11 अगस्त को राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की अध्यक्षता में हुई. बैठक में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना में बनने वाले डोढन बांध के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व के 30 फीसदी हिस्से के डूबने का मुद्दा छाया रहा. कुछ पर्यावरणविदों ने गुस्से में आकर बैठक में कहा, ''अगर सरकार को नदी जोड़ो परियोजना लागू करनी ही है, तो पन्ना टाइगर रिजर्व को बंद कर दे. आखिर होगा तो वही जो आप चाहेंगे.'' बोर्ड के सदस्य पर्यावरणविद् भले ही यह बात तंज के लहजे में कह रहे हों, लेकिन सरकार वाकई ऐसा करने का इरादा रखती है. इंडिया टुडे को प्राप्त दस्तावेज के मुताबिक, मध्य प्रदेश सरकार, केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी, तीनों इस बात पर सिद्धांत रूप में सहमत हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की जो रिहाइश डूबेगी, उसकी एवज में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चार वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित कर दिया जाए. जैसे, टाइगर रिजर्व न हुआ गुड्डड्ढा-गुडिय़ों का खेल हो गया, कि जब चाहे बना लो और जब चाहे मिटा दो.
भोपाल के पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे की 30 मार्च, 2015 की आरटीआइ अर्जी के जवाब में मध्य प्रदेश सरकार ने 21 अगस्त, 2014 को जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक का ब्योरा दिया है. मध्य प्रदेश की ओर से बैठक में प्रमुख सचिव, जल संसाधन राधेश्याम जुलानिया शामिल हुए थे. बैठक में हुई कार्रवाई के बारे में प्रमुख सचिव ने शासन को बताया, ''केन नदी पर प्रस्तावित डोढन बांध के डूब क्षेत्र में मध्य प्रदेश के 10 ग्रामों की 9,000 हेक्टेअर भूमि आएगी. इसमें से 5,258 हेक्टेअर भूमि पन्ना टाइगर रिजर्व की है. पन्ना टाइगर रिजर्व में डूब के संबंध में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने दि. 18/12/2013 को एक चार सदस्यीय दल गठित किया था. दल ने यह अनुशंसा की है कि डोढन बांध की डूब में आने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व की एवज में मध्य प्रदेश स्थित नौरादेही और रानी दुर्गावती वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी और उत्तर प्रदेश स्थित रानीपुर एवं महावीर स्वामी वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी को टाइगर रिजर्व बनाया जाए. उक्त संबंध में मध्य प्रदेश पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ ने प्रमुख सचिव (वन) से चर्चा के उपरांत सैद्धांतिक सहमति देने के लिए सहमति व्यक्त की बशर्ते टाइगर रिजर्व बनाने में होने वाला व्यय केन-बेतवा लिंक परियोजना से दिया जाए.''यानी अगर अंटी से पैसा ढीला न करना पड़े तो मध्य प्रदेश सरकार को पन्ना टाइगर रिजर्व के डूबने और उसकी जगह चार नए टाइगर रिजर्व बनाने के फॉर्मूले पर कोई एतराज नहीं है. तत्कालीन पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) और वर्तमान में पीसीसीएफ (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) नरेंद्र कुमार ने इंडिया टुडे को बताया, ''हां, उस समय सैद्धांतिक सहमति दी गई थी. लेकिन कोई अंतिम फैसला अभी तक नहीं हुआ है.'' वहीं वर्तमान पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) और राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य सचिव रवि श्रीवास्तव ने इस विषय में कोई बात करने से मना कर दिया.
अब जरा इन प्रस्तावित टाइगर रिजर्व की हालत पर नजर डालें. उत्तर प्रदेश के बांदा और इलाहाबाद जिलों के बीच दस्यु प्रभावित इलाके को अपनी गोद में समेटे रानीपुर सैंक्चुअरी के बारे में बांदा में वाइल्ड क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के विशेष अधिकारी आशीष सागर कहते हैं, ''यहां तो वैसे ही जंगल की हालत खराब है. जंगल से सटे गांवों में अगर तेंदुआ आ जाए तो गांव वाले आसमान सिर पर उठा लेते हैं. ऐसे में कहीं बाघ छोड़ दिए गए तो पता नहीं, क्या होगा. अगर गांववालों से बच गया तो उसे डकैत ही मार डालेंगे.'' वैसे भी यह अभयराण्य काले हिरण के संरक्षण के लिए बनाया गया था, ऐसे में बाघ लाने से काले हिरण और संकट में पड़ जाएंगे.
दूसरी तरफ, चार टाइगर रिजर्व बनाने की योजना के पक्ष में यह भी दलील दी गई कि बाघों के एक टाइगर रिजर्व से दूसरे में जाने के लिए गलियारे विकसित किए जाएंगे. लेकिन यह कितना संभव है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण पर वर्षों से काम कर रहे कर्मचारी इन चारों अभयारण्य का नाम तक नहीं जानते. पन्ना टाइगर रिजर्व के एक अधिकारी ने कहा, ''पता नहीं, ये गलियारा कहां बनाएंगे. मध्य प्रदेश वाले दोनों अभयारण्य ही आपस में इतनी दूर हैं कि यह सब मुमकिन नहीं लगता.'' पन्ना के मशहूर बाघ टी-3 के किस्से से इस बात की तस्दीक भी होती है. इस बाघ को प्रजनन के लिए पेंच रिजर्व से 2009 में यहां लाया गया लेकिन यह बाघ बार-बार दक्षिण दिशा की ओर मीलों दूर चला जाता था. आखिर यह दिशा उसके मूल घर पेंच की तरफ जो जाती थी. टी-3 को पन्नावासी बनाने में विशेषज्ञों को कई साल लग गए थे. टी-3 को यहां इसलिए बसाना पड़ा, क्योंकि पन्ना टाइगर रिजर्व में फरवरी 2009 में बाघ पूरी तरह खत्म हो गए थे. उसके बाद यहां बाघों का सफल पुनर्वास कराया गया. बीते 14 अगस्त को एक बाघिन की मौत के बाद भी यहां 31 बाघ हैं और टाइगर रिजर्व के आठ बाघ रिजर्व से लगे अन्य वन क्षेत्रों में घूम रहे हैं. लेकिन अगर बांध बना और नए टाइगर रिजर्व बनाने का तमाशा हुआ तो इन बाघों की जान पर बन आएगी. योजना का कार्यान्वयन कर रही नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर आर.के. जैन ने इंडिया टुडे को बताया, ''जन सुनवाई का काम पूरा हो चुका है. परियोजना पर बहुत तेजी से काम चल रहा है.'' सूत्रों की मानें तो सिर्फ पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी का मामला लटका है और यह मंजूरी बहुत जल्द मिलने वाली है.
यानी बाघों का घर पानी में डुबाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार और बाघों को बचाने के लिए बनी नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी राजी हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने जरूर अभी बहुत रुचि नहीं दिखाई है, लेकिन यहां तो इटावा में लायन सफारी बनाने का मनमाना प्रयोग हो चुका है. कहने भर की इस लायन सफारी में वनराज बाड़े में बंद हैं और उनकी हालत पस्त हो चुकी है. ऐसे में बेहतर होगा कि 9,000 करोड़ रु. की नदी जोड़ परियोजना में कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए कि बड़े जतन से सहेजे गए पन्ना के बाघ दोबारा खत्म न हो जाएं.
पन्ना टाइगर रिजर्व: बाघों के बसेरे पर आफत
बाघ पुनर्वास के लिए मशहूर पन्ना टाइगर रिजर्व के बड़े हिस्से को बांध में डुबोकर उसकी जगह चार नए टाइगर रिजर्व बनाने की तैयारी.

अपडेटेड 24 अगस्त , 2015
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