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दर-दर दस्तक देते बैंक

किसान, स्कूल टीचर, औरतें और ग्रामीण क्लर्क सुदूर इलाकों में लोगों के घरों तक पहुंचा रहे बैंकिंग सेवाएं. दूर-दराज के गांवों में इस सेवा से मिल रही राहत. साथ ही हो रही कमाई भी.

अपडेटेड 17 दिसंबर , 2013
महाराष्ट्र के एक गांव की 55 वर्षीया दादी मां मलुबाई मारुति तकड़े गन्ने के खेत से गुजर रही हैं, उनसे कुछ दूर पहाड़ी की दूसरी ओर सूरज डूब रहा है. वे पुआल के ढेर के पास रुकती हैं, जहां बैंक प्रतिनिधि दीपाली सरदार पाटील उनका इंतजार कर रही हैं. दीपाली अपने बैग से मोबाइल फोन और बायोमीट्रिक स्कैनर निकालती हैं, कुछ नंबर दबाती हैं और तकड़े को कुछ पैसा देकर चली जाती हैं. यह आम बात है और आम तौर पर हर हफ्ते एक बार ऐसा होता है. तकड़े या तो पैसे जमा करती हैं या साड़ी, अपने पोते-पोतियों के लिए कुछ उपहार खरीदने या कभी मेले में जाने के लिए पाटील से कुछ नकदी लेती हैं.

करीब 20 वर्ष की पाटील के दो बच्चे हैं और उनके पति वाम्टे ग्राम पंचायत में चपरासी हैं. वे टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलती हैं और भारत के शहरों की हाई-टेक दुनिया से बहुत दूर खेत के पास बने परंपरागत मकान में रहती हैं. लेकिन वे अपने गैजेट्स इतने करीने से इस्तेमाल करती हैं मानो बरसों से उनका इस्तेमाल कर रही हों. वे कहती हैं कि इन गैजेट्स ने उनके जीवन को कई मायनों में बदला है. इनसे उनमें आत्मविश्वास आया है और वे बाहर जाकर ज्यादा लोगों से मिल-जुल पाती हैं. वे किसी प्रोफेशनल की तरह कहती हैं, “”यह ब्लूटूथ से कनेक्ट होता है.”

गांव में रहने के बावजूद टेक्नोलॉजी की उनकी अच्छी समझ और प्रोफेशनल अंदाज थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह कोई असामान्य बात नहीं है. पाटील देश के उन हजारों तथाकथित बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स या स्थानीय बैंक प्रतिनिधियों में से हैं, जो बैंकिंग को घर-घर तक पहुंचा रहे हैं. बैंकों की पहुंच से बाहर रहने वाली बड़ी आबादी तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने के भारतीय रिजर्व बैंक के 2009 के दिशा-निर्देशों के मुताबिक वे ज्यादातर अनपढ़ ग्रामीणों को बैंकिंग की बुनियादी समझ सिखा रहे हैं. रिजर्व बैंक ने कहा है कि वित्तीय समावेश के तहत लोगों को बैंकिंग और कर्ज तक पहुंच के साथ ही वित्तीय जानकारी भी देनी चाहिए. वैसे तो अभी यह नया कॉनसेप्ट है, फिर भी देश में दो लाख से ज्यादा बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स हो चुके हैं जिनमें उतनी ही विविधता है जितनी उनके ग्रामीण ग्राहकों में: वे कारपेंटर, स्कूल टीचर, क्लर्क, किसान या अशिक्षित ग्रामीण औरत कुछ भी हो सकते हैं.

महावाड़े गांव के 28 वर्षीय बढ़ई दगड़ू किसन सूतार का ही उदाहरण लें. शहर में निर्माण उद्योग में कुछ समय तक काम करने के बाद सूतार गांव लौट आए और करीब सात महीने पहले ही वे एक बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट बने हैं. उनका यह फैसला समझदारी भरा साबित हुआ हैः झोपडिय़ों और रंगीन चित्रकारी वाले परंपरागत ग्रामीण मकानों के बीच स्थित महादेव के घर से नजदीकी बैंक शाखा करीब 10 किलोमीटर दूर है. सूतार के पास 70 ग्राहक हैं और जब वे अपने घर के पास बनी अपनी वर्क शॉप में कारपेंटर का काम नहीं कर रहे होते, उस समय इन ग्राहकों की बैंकिंग जरूरतों को पूरा करते हैं.

कई बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट दो या उससे अधिक काम में लगे रहते हैं, लेकिन कुछ तो इसी से जीविका चला रहे हैं. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के 40 वर्षीय रामकिशोर यादव को ही लें. वे पहले कुछ साल तक केसला कस्बे के प्राइवेट स्कूल में नॉन-मेडिकल स्टाफ थे. इसके बाद उन्होंने स्थानीय युवाओं को कंप्यूटर की शिक्षा देने के लिए कंप्यूटर सेंटर खोला. करीब दो साल पहले उन्होंने अपने आदिवासी बहुल जिले में बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट की जरूरत के लिए स्थानीय अखबार में भारतीय स्टेट बैंक का विज्ञापन देखा.

इसके बाद कई बार उनकी फोन पर बात हुई और यादव ट्रेनिंग कैंप में पहुंच गए जहां उन्होंने यह सीखा कि आखिर किस तरह से खाता खोला जाए और फिंगरप्रिंट पहचानने वाली बायोमीट्रिक मशीन को चलाया जाए. होशंगाबाद में उन्होंने स्थानीय आबादी के बीच काम शुरू कियाः पहले वे जागरूकता अभियान चलाने वाले भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारियों के साथ गांव जाते थे. बाद में वे खुद ही ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को डील करने लगे. यादव की कोशिश रंग ला रही हैः आज वे करीब 7,200 ग्राहकों को बैंकिंग सेवा दे रहे हैं.

क्या उनके ग्राहक डिपॉजिट और विड्रॉल (निकासी) या ब्याज को समझते हैं? यादव बताते हैं कि पहले वे समझ नहीं पाते थे, लेकिन अब समझ जाते हैं. कार्ड से नकदी निकालने या जमा करना सीखने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगता. वे बताते हैं कि उनके पास आने वाले ज्यादातर लोग मजदूर होते हैं जो पैसा निकालना चाहते हैं. करीब एक-चौथाई लोग ही पैसा जमा करते हैं, अक्सर 100 से 200 रु. जैसी मामूली राशि. मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट मलखान सिंह कहते हैं कि बैंकिंग के फायदों की बात ग्राहकों के मन में बैठाने में कम से कम साल भर लग जाता है. किसान परिवार से आने वाले मलखान ने बताया कि वे पन्ना की 20 पंचायतों के हर गांव में जाते हैं और लोगों को बैंकिंग के फायदे समझते हैं.

लेकिन बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट होना कोई बहुत फायदेमंद कारोबार नहीं हैः उन्हें एक लेन-देन पर कभी-कभी 50 पैसे की मामूली कमाई होती है और ग्रामीण क्षेत्रों में कम आमदनी की वजह से लेन-देन बहुत बढ़ाने की भी गुंजाइश नहीं रहती. लेकिन लोग कई अन्य वजहों से इस काम के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. महावड़े गांव की अर्चना युवराज रोहिले कम लेन-देन से परेशान नहीं हैं. वे कोल्हापुर में काम करती थीं, लेकिन उन्हें अपने पति और दो बच्चों के साथ बिताने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता था. वे गांव लौट आईं और अब वे दोपहर में देर तक घर के कामकाज और पशुओं की देखभाल में लगी रहती हैं. उनके पति स्थानीय कताई मिल में काम करते हैं. इसके बाद एक ग्रामीण बैंकर के रूप में उनके अपने काम का समय शुरू होता है. वे कहती हैं, “मैं बच्चों से टीवी देखने को कहती हूं और काम के लिए निकल जाती हूं. गांव के लोग मुझे मैडम कहते हैं, क्योंकि मैं उन्हें बताती हूं कि उन्हें क्या करना चाहिए. सरकार ने लोगों के फायदे के लिए ही हमें नियुक्त किया है, इसलिए मैं यह करती हूं.”

ग्रामीणों का कहना है कि बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट ने उनका जीवन बदल दिया है. दूर-दराज के बहुत से इलाकों में कोई बैंक नहीं है और आबादी के छोटे से हिस्से के ही बैंक खाते हैं. इससे पहले गांव-गांव घूमने वाले पिग्मी एजेंट या बैंकों की छोटी शाखाओं के एजेंट ही बैंकों के लिए संपर्क साधने के एकमात्र सूत्र थे. अगर गांव के कुछ लोग एजेंट से नहीं मिल पाते तो उनके पास इस बात के अलावा और कोई चारा नहीं होता था कि अगली बार एजेंट के आने का इंतजार करें. हलवा और मोबाइल रिचार्ज के कूपन बेचने वाले रविंद्र लोहार कहते हैं, “अब वे (बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट) हमेशा आसपास ही मिल जाते हैं.”

आंकड़े खुद कहानी बयान करते हैं. बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट ने देश भर में 8.12 करोड़ बचत खाते खोले हैं जिनमें करीब 1,822 करोड़ रु. की राशि जमा की गई है. खाता खोलने वाले बहुत से लोगों में किसान, छोटे दुकानदार, मजदूर और ग्रामीण औरतें शामिल हैं जो इसके पहले कभी भी किसी बैंक से नहीं जुड़ी थीं. बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट का कहना है कि उनके ग्राहकों में ज्यादातर महिलाएं हैं जो 10-20, 50 रु. जैसी छोटी-छोटी रकम जमा करती हैं. जोहैर मुश्ताक कुरैशी कहते हैं कि उनके पास पैसा जमा करने वालों में बड़ी संख्या ऐसे छात्रों की है जो पार्ट टाइम काम भी करते हैं और एक दिन में कभी-कभी तो एक रु. जैसी मामूली रकम भी जमा करते हैं. महाराष्ट्र के गांव में लकड़ी के दोमंजिला मकान में बैठे हुए दो बच्चों के पिता 32 वर्षीय शाहजी तुकाराम पाटील कहते हैं, “हमारे गांव में कोई बैंक नहीं है, सबसे नजदीकी बैंक भी कई किलोमीटर दूर है.”

बैंकों का कहना है कि बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट नियुक्त करने में वे आम तौर पर ऐसे लोगों की तलाश करते हैं जिनके अंदर उद्यमिता की प्रवृत्ति हो. लेन-देन की बहुत छोटी राशियों को देखते हुए ऐसे ग्रामीण बैंकिंग से बहुत पैसा कमाना आसान नहीं है. फिर भी, बैंकिंग सेक्टर के अनुमानों के मुताबिक कई प्रतिनिधि महीने में 50,000 रु. तक कमा लेते हैं. बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स को ट्रेनिंग देने वाले एनजीओ एआइएसईसीटी में बिजनेस सर्विसेज के डायरेक्टर अभिषेक पंडित कहते हैं, “किसी को भी चुनने की सबसे बड़ी वजहों में से एक उस व्यक्ति में उद्यमिता की प्रवृत्ति होती है. यह कोई सुबह से शाम की नौकरी नहीं है. हम चाहते हैं कि वे ग्रामीणों की सेवा करें, इसलिए उद्यमिता की भावना रखने वाले लोग ही इसमें सफल हो सकते हैं.”