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सुषमा स्वराज: बाहर की फांस, भीतर का दर्द

सरकार के उनके पीछे एकजुट होने के बावजूद ललित मोदी को सुषमा स्वराज की “दोस्ताना मदद” से उनकी साख को धक्का लगेगा, सरकार के लिए भी इससे निबटना खासा मुश्किल होगा.

अपडेटेड 22 जून , 2015

अपने दोस्त और इंडियन प्रीमियर लीग के दागदार पूर्व कमिश्नर ललित मोदी को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की मदद सुर्खियों में उछली ही थी कि उन्होंने फोन उठाया और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी में अपने भरोसेमंद साथी तथा मित्र गृह मंत्री राजनाथ सिंह से बात की. राजनाथ ने वादा किया कि वह “मानवीय आधार पर” ललित मोदी के बचाव की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचा देंगे, जो 2010 में देश छोड़कर भाग गए थे. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 425 करोड़ रुपए के घोटाले में उनकी भूमिका को लेकर उनसे पूछताछ करनी चाही थी. प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात पहले ही तय हो चुकी थी, इसलिए मौका ताड़कर राजनाथ ने पीएम से जोर देकर यह बात कही कि सरकार को “अपनों में से एक” का समर्थन जरूर करना चाहिए. इसका मतलब था कि टीवी पर लगातार तेज होती तीखी आलोचनाओं का जवाब देने के लिए नियमित प्रवक्ताओं से काम नहीं चलेगा. इसमें बड़ी तोपों को लगाना होगा.

मोदी ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बुलाया और कहा कि उनकी पूर्व राजनैतिक विरोधी का सार्वजनिक तौर पर बचाव किया जाना चाहिए. बीजेपी के भीतर सब जानते हैं कि मोदी और स्वराज के बीच कोई खास मधुरता नहीं है, यह भी कि दोनों के बीच विरोध का यह रिश्ता चुनाव की पूर्व वेला में तब और पुख्ता हो गया, जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए नरेंद्र मोदी के चयन पर स्वराज ने खुलेआम असहमति जाहिर की थी.

वह लड़ाई हारने के बाद स्वराज पिछले साल चकाचौंध से पूरी तरह दूर रहीं और परदे के पीछे रहकर दुनिया के साथ राजनयिक रिश्ते बढ़ाने के लिए कमरतोड़ काम करती रहीं, तब भी जब प्रधानमंत्री ने अपनी यात्राओं के सभी 18 देशों में खूब धूमधाम के साथ झंडे गाड़े. लेकिन पिछले हफ्ते सुषमा अचानक एक तूफान में घिर गईं, जो लंदन के अखबार द संडे टाइम्स की एक रिपोर्ट से शुरू हुआ. इस रिपोर्ट में उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने जुलाई 2014 में ललित मोदी को यात्रा के कागजात दिलवाने के लिए भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज और अन्य ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था. रिपोर्ट में कई ईमेल का हवाला दिया गया, जिनसे वाज, ललित मोदी और स्वराज के बीच खासी नजदीकी और सांठगांठ की झलक मिलती थी. कहानी में दूसरे किरदार भी थे, जैसे सुषमा के पति स्वराज कौशल, जिन्होंने ससेक्स कॉलेज में अपने भतीजे के दाखिले के लिए ललित मोदी से कहा और उन्होंने बदले में वाज से कहा. पता यह चला कि कौशल, जो वकील हैं, 22 साल से ललित मोदी के सलाहकार रहे हैं और उनकी बेटी बांसुरी उनका बचाव करने वाली कानूनी टीम का हिस्सा हैं.

सुषमा स्वराज निश्चित तौर पर अपने पारिवारिक दोस्त पर मेहरबानी करना चाहती थीं. लेकिन इस बात का फैसला अभी होना है कि उन्होंने उस शख्स के हक में जान-बूझकर नियमों को तोड़ा-मरोड़ा, जो कई लोगों की निगाह में आर्थिक अपराधी है, या वे एक जरूरतमंद आदमी की मदद करना चाहती थीं. स्वराज के एक नजदीकी सूत्र कहते हैं, “वे मानती थीं कि वे एक दोस्त की मदद कर रही हैं, जिसकी बीवी बीमार थी. उन्होंने ब्रिटिश सरकार से यह कभी नहीं कहा कि उन्हें वापस भारत न भेजा जाए. इतना ही नहीं, उनका फैसला 27 जुलाई, 2014 को तब सही साबित हो गया, जब दिल्ली हाइकोर्ट ने ललित मोदी पर लगे यात्रा प्रतिबंधों को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि उनका पासपोर्ट लौटा दिया जाए, जो 2011 में भारत सरकार ने जब्त कर लिया था.”

हकीकत यह है कि विदेश मंत्रालय के पासपोर्ट अनुभाग ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की. हालांकि विदेश मंत्रालय के बचाव में यह दलील दी जा सकती है कि ईडी को ऐसी सलाह देनी चाहिए थी. जाहिर है, दोनों मंत्रालयों ने एक दूसरे से कोई बात नहीं की.

तो, क्या सुषमा स्वराज महज एक प्रक्रियागत कदाचार की दोषी हैं या बात इससे ज्यादा गंभीर है? मई 2014 में सत्ता गंवाने से पहले लगातार चार साल तक यूपीए सरकार ने ललित मोदी के खिलाफ ईडी के आरोपों पर कदम क्यों नहीं उठाए? यही नहीं, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले साल इस मंत्रालय का काम संभालने के बाद मामले पर जोर क्यों नहीं दिया, खासकर तब जब काले धन के खिलाफ लड़ाई नरेंद्र मोदी सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर है?

और भी कई अहम सवाल हैं. मिसाल के लिए, जुलाई 2014 में स्वराज ने क्या प्रधानमंत्री को बताया था कि वे लंदन से ललित मोदी के हक में एक मेहरबानी करने के लिए कहने जा रही हैं, खासकर तब जब वे जानती थीं कि पूर्व आइपीएल कमिश्नर गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के प्रमुख के तौर पर नरेंद्र मोदी को जानते थे? वे और वसुंधरा राजे बीजेपी की भावी योजनाओं में या कम से कम नरेंद्र मोदी के सत्ता के दायरे में कहां खड़ी हैं, क्योंकि ललित मोदी ने दावा किया है कि राजस्थान की मुख्यमंत्री ने ब्रिटेन में उनके रेजिडेंसी स्टेटस का समर्थन करने वाले दस्तावेजों पर दस्तखत किए थे?

इसमें कोई शक नहीं कि देश का पसंदीदा राजनैतिक शह-मात का खेल इन दिनों पूरे जोशो-खरोश के साथ खेला जा रहा है. जयपुर में किस्से फैले हुए हैं कि 2003-2008 तक राजे के पहले मुख्यमंत्रित्व काल में पूर्व आइपीएल प्रमुख किस तरह “संविधानेतर सत्ता” बन गए थे. चर्चा यह भी है कि मोदी ने उस वक्त राजे के बेटे दुष्यंत सिंह को गैर-जमानती कर्ज दिया था. लेकिन 2013 के चुनाव होते-होते लगता है, मोदी नजरों से उतर गए और यहां तक ट्वीट करने लगे कि अरुण जेटली, राजे और भूपेंद्र यादव (जो जेटली के सहायक और तब गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी और आरएसएस के बीच मुख्य संदेशवाहक थे) विधानसभा के टिकट बेचने में शामिल थे.

बीजेपी के कई अंदरूनी नेता मानते हैं कि ललित मोदी विवाद ने सरकार को अच्छा-खासा नुक्सान पहुंचाया है. अगर ललित मोदी के दस्तावेजों पर राजे के दस्तखत सचमुच पाए जाते हैं, तो पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है; ऐसी हालत में राजे को बचाने का मतलब होगा प्रधानमंत्री के सामने आज की बनिस्बत और भी पूरी तरह नतमस्तक हो जाना.

यह भी कहा जा रहा है कि इंद्रेश कुमार के स्वराज को कमोबेश दोषमुक्त करने वाले बयान के बावजूद आरएसएस इस बात से खुश नहीं है कि बीजेपी के भीतर की पुरानी दरारें उजागर की जा रही हैं. राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी स्वराज और जेटली के बीच की दूरी एक बार फिर सामने आ गई. विदेश मंत्री ने विवाद से निबटने के तरीके के बारे में सलाह लेने के लिए वित्त मंत्री से बात तक करने से इनकार कर दिया, बावजूद इसके कि ईडी वित्त मंत्रालय के तहत ही आता है. शुरुआत में प्रधानमंत्री के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए राजनाथ सिंह का सहारा लेते हुए देखकर बीजेपी के अंदरूनी सूत्र हैरानी जाहिर करते हैं कि क्या नरेंद्र मोदी के साथ स्वराज की मनमुटाव अब पुख्ता हो चुका है.

जेटली, जिन्हें मौजूदा संकट से सबसे ज्यादा फायदा होता दिखाई दे रहा है, जानते हैं कि विवाद जैसे-जैसे तीव्र होता जा रहा है, उन्हें अपना सिर झुकाकर रखना होगा. लेकिन ऐसा मानने वाले भी कई लोग हैं कि यह राजनाथ सिंह ही हैं, जो इस पूरे विवाद की बदौलत अरुण जेटली को धकियाकर नरेंद्र मोदी के बाद देश के दूसरे प्रभावशाली शख्स बनकर उभरने के रास्ते पर हैं. 16 जून की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जेटली जब स्वराज के साथ अपनी कथित प्रतिद्वंद्विता सहित तमाम सवालों का सामना कर रहे थे, तब उत्तर प्रदेश के विनम्र और शांत ठाकुर नेता मंद-मंद मुस्कराते देख गए थे. दिलचस्प बात यह भी है कि स्वराज ने खुद अपने ही मंत्रालय के प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन किया, जिसकी तस्दीक किसी और ने नहीं, जुलाई 2014 में विदेश सचिव रही सुजाता सिंह ने की है. सुजाता सिंह ने इंडिया टुडे से कहा, “उन्होंने मोदी के लिए यात्रा दस्तावेजों के बारे में मुझसे कभी बात नहीं की.”

लेकिन लगता है, जनता की अदालत में स्वराज को इस बात के लिए भी दोषी ठहराया जा रहा है कि उन्होंने एक ऐसे शख्स की मदद की, जो पूरी बेशर्मी के साथ आलीशान जिंदगी बसर करता है. ललित मोदी अमीरों के साथ उठने-बैठने और खूबसूरत लोगों के साथ पार्टी करते नजर आते हैं और यह तब भी पूरी तरह जाहिर था, जब उन्हें लंदन से बाहर जाने की इजाजत तक नहीं थी. इसीलिए स्वराज की बदौलत अपने ब्रिटिश यात्रा कागजात हाथ में आते ही 1 अगस्त, 2014 को उन्होंने अन्य लोगों के अलावा एनसीपी प्रमुख शरद पवार, ज़ी के चेयरमैन सुभाष चंद्रा और अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रिटी नओमी कैंपबेल को ईमेल भेजकर साथ देने के लिए शुक्रिया कहा.

फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस विदेश मंत्री के पीछे एकजुट खड़े दिखाई देते हैं; दोनों सहमत हैं कि उन्हें इस वक्त तो हटाया नहीं जा सकता, क्योंकि इसे गलती कबूल करने और कमजोरी के तौर पर देखा जाएगा. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इस सारे हो-हल्ले ने स्वराज की मेहनत और सावधानी से बनाई गई प्रतिष्ठा को और साथ ही उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को खासी चोट पहुंचाई है. आरएसएस के नजदीकी एक बीजेपी नेता ने कहा, “अगर सुषमा जी जाती हैं, तो परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के पूर्ति समूह में कथित बेनामी लेनदेन विपक्ष के निशाने पर आ सकते हैं. इस सरकार से कुछ अलग होने की उम्मीद थी.”

लेकिन सचाई यही है कि यूपीए और अब बीजेपी भी ललित मोदी को प्रभावहीन करने या भारत वापस लाने में नाकाम रही है. जिस शख्स ने कभी भारत में खेल के नियम बदल डाले थे, वह निर्वासन में रहते हुए लोगों की और यहां तक कि सरकारों की तकदीरें बदल सकता है. बीजेपी के अंदरूनी सूत्र थोड़ी घबराहट के साथ हैरानी जाहिर कर रहे हैं कि क्या अच्छी, या बुरी, खबर तिकड़ी में आएगी? और सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के बाद धूल-धूसरित होने वालों में अगली बारी किसकी होगी?