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बीजेपी में मुझे संतोष से भरे चेहरे ही दिखाई दिए: किरण बेदी

मोदी लहर के बाद किरण बेदी पहली व्यक्ति हैं जिन्हें मोदी की जगह पार्टी का चेहरा बनने का मौका मिला है. इंडिया टुडे से किरण बेदी की खास बातचीत.

अपडेटेड 27 जनवरी , 2015
दिल्ली विधानसभा चुनावों का प्रचार खत्म होने से दो हफ्ते पहले दक्षिण दिल्ली के उदय पार्क में किरण बेदी के घर पर आश्चर्यजनक रूप से पार्टी झ्ंडों, कार्यकर्ताओं और पिछलग्गुओं की गहमागहमी नदारद है. राजनीति में सीधे मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उन्होंने प्रवेश किया है.

पार्टी के नेताओं की शुरुआती नानुकुर और उन्हें थानेदार तक बताने के बाद चीजें हाइकमान के नियंत्रण में दिखाई जा रही हैं. मोदी लहर के बाद वे पहली व्यक्ति हैं जिन्हें मोदी की जगह पार्टी का चेहरा बनने का मौका मिला है. बीजेपी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार ने एसोसिएट एडिटर  रवीश तिवारी से बात की. बातचीत के अंशः

आपने बीजेपी को चुना या बीजेपी ने आपको चुना?
मैं यह बात कभी सार्वजनिक नहीं करूंगी.

पहले आप सक्रिय राजनीति में आने के खिलाफ थीं. आपका मन कब बदला?
प्रेरणा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से मिली. इन आठ महीनों में एक भी घोटाला नहीं हुआ. अगर आप पहले की सरकार के बारे में सोचें, तो आठ महीनों में आठ घोटाले हो सकते थे. हम कर कुछ नहीं रहे थे, बस रोज घोटालों पर बहस करते थे.

घर वापसी और लव जेहाद के बारे में आप क्या सोचती हैं?
मुझे तो पता भी नहीं कि इसका (लव जेहाद का) मतलब क्या है. जहां तक घर वापसी की बात है, मैं मानती हूं आप धर्मांतरण को रोक नहीं सकते. अपनी पसंद का धर्म चुनना, या अपनी पसंद से धर्म को छोड़ देना, या अपनी पसंद से उसमें लौट आना, यह हरेक नागरिक का बुनियादी हक है. गैर-कानूनी केवल तब होता है, जब प्रलोभन से धर्म बदला जाता है. यह सब बातें पहले से ही स्पष्ट हैं.

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और दिल्ली पुलिस को राज्य सरकार के दायरे में लाने के बारे में आपकी क्या राय है?
जब पुल आएगा मैं तभी पार करूंगी. मैं आपको केवल यह बता सकती हूं, दिल्ली के पास बहुत संसाधन हैं और हमारे पास जो है हम उसी से शुरुआत करेंगे. (लेकिन) कौन कहता है पुलिस दिल्ली सरकार के साथ काम नहीं करती. जब साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री थे और तेजिंदर खन्ना लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) थे, मैंने बतौर स्पेशल सेक्रेटरी एलजी के साथ काम किया है. और मैंने देखा कि वह (पुलिस) मिलकर काम कर रही थी.

(पूर्ण राज्य के दर्जे पर) मुझे अभी अपनी राय बनानी है. अगर पार्टी फैसला करती है, तो यह उनके फैसले का हिस्सा हो सकता है. बस इतना ही. मुझे इसे समझने के लिए और वक्त चाहिए.

अरविंद केजरीवाल पानी और बिजली पर भारी सब्सिडी देने के हक में. आपका क्या विचार है?
उन पर छोड़ देते तो उन्होंने तो खजाना ही खाली कर दिया होता, पैसा उधार लेते, उसे खर्च करते और फिर केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन करते, कि “मुझे और नहीं दे रहे हैं.” क्या आप इस तरीके से काम करना चाहते हैं? क्या आप ऊधौ को लूटकर माधौ को देना चाहते हैं? हम चाहेंगे दोनों को मिले और गरीब-गुरबों के हकों की भी रखवाली करेंगे.

दिल्ली बीजेपी में असंतोष के बारे में क्या कहेंगी?
असंतोष? मुझे तो संतोष से भरे चेहरे ही दिखाई दिए. यह बहुत बड़ा परिवार है और जब एक बार नेतृत्व फैसला कर लेता है, तो सब (उस फैसले की) इज्जत करते हैं.
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