बात कुछ दिन पहले की है. सीवान जिले के लखनौरा के ग्रामीणों ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रमाशंकर सिंह की पत्नी उर्मिला कुंवर को बच्चा चोर होने के संदेह में पकड़ लिया. उसे मदारपुर इंटर कॉलेज के कमरे में बंद कर दिया गया. जब पुलिस उसे छुड़ाने आई तो ग्रामीण उससे उलझ गए.
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भीड़ इतनी बेकाबू हो गई कि महाराजगंज के एसडीपीओ अशोक कुमार सिंह, थानाध्यक्ष रवींद्र कुमार, तीन सब इंस्पेक्टर, दो हवलदार और दो सिपाही घायल हो गए. यही नहीं, इस उपद्रव में 3 ग्रामीणों की मौत हो गई और चार घायल हुए. अब 19 अक्तूबर की इस घटना का जवाब न तो स्थानीय लोगों के पास है और न ही पुलिस के पास.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
बिहार में पुलिस के खिलाफ गुस्से का यह कोई पहला मामला नहीं है. दुर्भाग्य से यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. पिछले तीन महीनों में नवादा, बेगूसराय, भभुआ, गया, पूर्णिया जैसे कई जिलों में ऐसी दो दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं.
अब 14 नवंबर को औरंगाबाद के रमेश चौक के पास एक बच्चे की पिटाई का मामला ही देखें. लोग इस कदर गुस्साए कि पुलिस तक को नहीं बख्शा. उसी दिन एक श्रमिक की मौत से आक्रोशित भीड़ ने दाऊदनगर थाने में तोड़-फोड़ कर डाली. अगर थोड़ा पीछे जाएं तो 21 अक्तूबर को सासाराम रेलवे ओवरब्रिज के निकट ट्रक की चपेट में आने से 4 लोग जान से हाथ धो बैठे.
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
फिर क्या था, गुस्साई भीड़ ने 17 वाहन फूंक डाले. फायर ब्रिगेड की गाड़ी वहीं थी, लेकिन लोगों का गुस्सा देख वे कुछ खास नहीं कर सके. माहौल पर काबू पाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े तो जवाब में भीड़ पथराव पर उतर आई. लिहाजा, पांच घंटे तक अफरातफरी मची रही. इसी तरह जब अगले दिन नालंदा के बिहारशरीफ में ट्रैक्टर की चपेट में आने से एक छात्रा की मौत हो गई तो उग्र छात्रों ने दो पुलिसकर्मियों की पिटाई कर डाली. उनकी बाइक फूंक दी.
इस पर सामाजिक संस्था मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य नवेंदु झ कहते हैं, ''आक्रोश की वजह पुलिस प्रशासन की 'कार्यशैली' रही है, जो लोगों का भरोसा हासिल नहीं कर पा रही है.'' इसी वजह से मामूली घटनाओं में भी लोग पुलिस कार्रवाई का विरोध करने लगे हैं. जहानाबाद शहर में वाहनों की चेकिंग के दौरान एक टेंपो चालक की पिटाई की गई तो गुस्साए लोगों ने उस पुलिसकर्मी की भी पिटाई कर दी. बीच-बचाव करने आए थानाध्यक्ष दिलीप कुमार और डीटीओ जितेंद्र कुमार के साथ भी बदसलूकी की गई.
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे2 नवंबर 201: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
यही नहीं, भीड़ की 'एकजुटता' आरोपियों की ढाल भी बनने लगी है. पूर्वी चंपारण के तुरकौलिया के माधोपुर में मारपीट के आरोपी पूर्व मुखिया शब्बीर अहमद को ग्रामीणों ने पुलिस के कब्जे से छुड़ा लिया. इसी तरह मुजफ्फरपुर के भेड़ गरहा में जुआरियों को पकड़ने गई सकरा पुलिस और सारण के भुआलपुर में अवैध कारोबारियों को दबोचने गई मढ़ौरा पुलिस को वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा.
नालंदा कॉलेज के एसोसिएट प्रो. डॉ. राजीव रंजन कहते हैं, ''यह रुख समाज और व्यवस्था दोनों के लिए खतरनाक है. इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस और पारदर्शी कदम उठाने की जरूरत है. पुलिस को उन कारणों का हल ढूंढ़ना चाहिए जिनके चलते जनता का भरोसा उन पर से उठा है.''
आक्रोश की वजह तात्कालिक नहीं है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस का आइपीसी के तहत मामले निष्पादित करने का राष्ट्रीय औसत 72.3 फीसदी है, जबकि बिहार में यह 50.5 फीसदी है. आरोपपत्र दाखिल करने में राष्ट्रीय औसत 79.1 के उलट 77.2 फीसदी है. कोर्ट में मामलों के निपटारे में भी बिहार राष्ट्रीय औसत से पांच फीसदी पीछे है.
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
सजा दिलाने का राष्ट्रीय औसत 40.7 फीसदी है जबकि बिहार में यह 16.2 फीसदी है. एक तरफ पुलिस की चुनौतियां बढ़ रही हैं वहीं बिहार में पुलिस की संख्या पर्याप्त नहीं है. राज्य की 10.38 करोड़ की आबादी के लिए 85,167 पुलिसकर्मी हैं. इस अनुपात को ठीक करने के लिए राज्य सरकार ने 2015 तक 5,000 सब-इंस्पेक्टर समेत 50,000 पुलिस बल नियुक्त करने का फैसला लिया है.
पूरे माहौल को देखते हुए पुलिस महानिदेशक अभयानंद को सोनपुर में अपराध अनुसंधान विभाग की प्रदर्शनी के उद्घाटन मौके पर नागरिकों से पुलिस को सहयोग की अपील करनी पड़ी. अभयानंद ने कहा, ''जनता के सहयोग से ही अपराध पर काबू पाया जा सकता है. लेकिन कुछ घटनाओं में लोग उग्र हो जाते हैं और पुलिस पर पथराव करने लगते हैं, जो खतरनाक प्रवृत्ति है.''
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
बहरहाल, पुलिस मुख्यालय ने जनता का भरोसा हासिल करने के लिए दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के लिए स्पीडी ट्रायल का फैसला किया है. दूसरी ओर, नालंदा के चंडासी की घटना के बाद उपद्रवियों पर नजर रखने के लिए वीडियो शूटिंग का निर्देश दिया है. पुलिस पर ये हमले वाकई राज्य प्रशासन और पुलिस के लिए चिंतनीय विषय हैं.