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चीन पी गया हमारी नदी का पानी

अरुणाचल प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने सियांग नदी के जल प्रवाह में 40 फीसदी कमी आने की जिम्मेदारी चीन के बनाए जा रहे बांधों पर डाली, उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा. विशेषज्ञों की भविष्यवाणी है कि अगर चीन ने सियांग नदी पर तिब्बत के मोतुओ में 38,000 मेगावॉट का बांध बनाया तो जल प्रवाह में 60 फीसदी तक की कमी आ सकती है.

अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी
अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी
अपडेटेड 17 मार्च , 2012

अरुणाचल प्रदेश सरकार का दावा है कि असम में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाने वाली नदी सियांग राज्‍य के कुछ इलाकों में सूख गई है. इस दावे ने एक बार फिर इस नदी के पानी को अपने उत्तरी इलाकों की ओर मोड़ने की चीन की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर शुबहा पैदा कर दिया है. राज्‍य के प्रवक्ता ताको दाबी के अनुसार तिब्बत में बनाए जा रहे जांगमू बांध के कारण पूर्वी सियांग जिले के मुख्यालय पासीघाट में नदी के प्रवाह में 40 फीसदी तक कमी आ गई है. स्थानीय मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि असम के डुबरी और गुवाहाटी में भी जल-स्तर घट गया है. सियांग पर बयान देने के बाद दाबी की नौकरी चली गई. मुख्यमंत्री नबाम तुकी कहते हैं कि दाबी को जाने दिया गया क्योंकि वे इस पद पर रहना नहीं चाहते थे, लेकिन दाबी कहते हैं कि उन्हें इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने सच कहा था.

चीन ने दाबी के बयान को यह कहकर खारिज कर दिया है कि जांगमू के बांध का आगे की धारा पर कोई असर नहीं पड़ा है. लेकिन असम के पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस बात को लेकर चेतावनी की घंटी बजा दी है कि चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी के उस जगह पर एक और बांध बनाने की योजना बनाई है, जहां से यह नदी एक बड़ा मोड़ लेती है. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक चीन की तिब्बत के मोतुओ में ब्रह्मपुत्र नदी पर 38,000 मेगावॉट विद्युत क्षमता का बांध बनाने की योजना है. पर्यावरण विशेषज्ञों की भविष्यवाणी के मुताबिक यदि चीन ने अपनी योजना आगे बढ़ाई तो जल प्रवाह में 60 फीसदी तक की कमी आ सकती है. असम में बांध विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति के अखिल गोगोई कहते हैं, 'लोगों को हक है कि बांध के बारे में उन्हें पता चले. भारत सरकार को इसकी जांच जरूर करानी चाहिए.'

बताया जाता है कि चीन मोतुओ से पानी को अपने जिंगजियांग और गांसू जैसे रेगिस्तानी इलाकों की तरफ मोड़ना चाहता है. मई 2010 में चाइना सोसाइटी फॉर हाइड्रोपॉवर इंजीनियरिंग के उपमहासचिव झांग बोटिंग ने गार्जियन अखबार को बताया था कि यह परियोजना अभी परिकल्पना के स्तर पर है. चीनी कंपनी साइनोहाइड्रो ने तो इस योजना का विवरण अपनी वेबसाइट पर भी डाला है. गुवाहाटी के एक पर्यावरणविद् फिरोज अहमद कहते हैं, 'अब 2012 आ चुका है. भारत को हर हाल में यह पता लगाना चाहिए कि मोतुओ बांध की स्थिति क्या है.'

उत्तरी और पश्चिमी चीन में पानी की बढ़ती किल्लत के कारण चीन दक्षिण में तिब्बती नदियों का पानी इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित हुआ है. ब्रिटिश कोलंबिया में पर्यावरण नीति के तिब्बती विद्वान ताशी त्सेरिंग के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी पर 28 चीनी बांध या तो निर्माणाधीन हैं या उन पर सक्रियता से विचार चल रहा है.

लेकिन दाबी के दावों को सरकारी स्तर पर किसी ने स्वीकार नहीं किया है. भारत के केंद्रीय जल आयोग का कहना है कि जल स्तर में 'असामान्य' कमी आने की कोई सूचना नहीं है. यहां तक कि पूर्वी सियांग के जिला आयुक्त तालेम तापोक ने भी दाबी के दावों को खारिज कर दिया है. तापोक पासीघाट के ही रहने वाले हैं. वे कहते हैं कि इस वर्ष जल स्तर बढ़ गया है. तापोक कहते हैं, '2011 की जनवरी-फरवरी में औसत जल स्तर 148.10 मीटर था और इस वर्ष औसत 148.92 मीटर है. इसका अर्थ है कि 0.82 मीटर की वृद्धि हुई है.' तापोक कहते हैं, 'इस वक्त अमूमन जलस्तर थोड़ा घट ही जाता है.'

दाबी अपने दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं दे सके हैं, लेकिन वे अपनी बात से पीछे हटने के लिए भी तैयार नहीं हैं. इंडिया टुडे से उन्होंने कहा, 'मैं मानता हूं कि यह पानी कम रहने का समय है, लेकिन क्या सन्‌ 2000 में एक चीनी बांध के फूट जाने के कारण पासीघाट में बाढ़ नहीं आ गई थी? केंद्रीय जल आयोग को इस बारे में गहराई से अध्ययन कराना चाहिए कि बांध के कारण भारत में सियांग के जल प्रवाह पर कितना असर पड़ेगा.'

अरुणाचल प्रदेश सरकार ने 168 जलविद्युत परियोजनाओं के लिए सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन इस राज्‍य और पड़ोसी राज्य असम में चल रहे सशक्त बांध विरोधी आंदोलनों से इन योजनाओं पर पानी फिरने का खतरा पैदा हो गया है. आंदोलनकारियों ने पहले ही एनएचपीसी की 2000 मेगावॉट की लोअर सुबानसिरी जलविद्युत परियोजना पर 16 दिसंबर 2011 से काम रुकवा रखा है. आंदोलनकारियों ने अब सियांग पर प्रस्तावित दो जलविद्युत परियोजनाओं का विरोध तेज कर दिया है.