अरुणाचल प्रदेश में अमेरिकी 'दखल' के कारण चीन की पेशानी पर पड़े बल की वजह से ओबामा प्रशासन को दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इस इलाके में लापता अपने सैनिकों के शवों को खोजने का अभियान बंद कर देना पड़ा है. ऐसा लगता है कि 2010 और 2011 के लिए निर्धारित दो खोजी अभियानों को चीन के उस दावे के चलते निरस्त किया गया, जिसमें वह अरुणाचल प्रदेश को विवादास्पद क्षेत्र बताता आ रहा है.
चीन पूरे अरुणाचल को ''दक्षिणी तिब्बत'' मानता है. उसने उन 400 अमेरिकी वायु सैनिकों के शवों को खोजने के भारत और अमेरिका के अभियानों का विरोध किया था, जो युद्ध में असम और चीन के कनमिंग के बीच पुनःआपूर्ति अभियानों के दौरान हवाई दुर्घटनाओं में मारे गए थे. अमेरिकी रक्षा महकमे का कहना है कि दूसरव् विश्वयुद्ध में सक्रिय सैन्य अभियानों का गढ़ रहे चीन-भारत-बर्मा क्षेत्र में 500 लापता वायुयानों का आज तक कुछ पता नहीं चल सका है.
अमेरिका के एक निजी खोजकर्ता क्लेयटन कुहेल्स को 2006 में इटानगर के उत्तर में, वेलांग के दक्षिण में, ऊपरी सियांग और कुछ अन्य स्थानों पर लगभग 19 विमानों के अवशेष मिले थे. मृत अमेरिकी सैनिकों के परिवारों के दबाव के चलते उनके अवशेषों को खोजने के लिए भारत और अमेरिका ने 2008 के अंत में संयुक्त तलाशी अभियान शुरू किया.
हालांकि 2010 और 2011 में दोनों सरकारों ने इस अभियान को बगैर कोई स्पष्टीकरण दिए बंद कर दिया. अमेरिका ने अरुणाचल प्रदेश में संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण को भी फिलहाल टाल दिया है. भारत, जापान और अमेरिका के बीच तितरफा प्रशिक्षण को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. पांच देशों के बीच मालाबार सरीखा सैन्य प्रशिक्षण, जिसमें सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका को शामिल होना था, भी हाशिए पर डाल दिया गया है.
कूटनीतिक विश्लेषक ब्रह्म चेलानी कहते हैं, ''अमेरिका अरुणाचल प्रदेश में ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता है, जिससे चीन की त्यौरियां चढ़ें.'' वे आगे जोड़ते हैं, ''वे उन सीमा-विवादों पर तटस्थ बने रहना चाहते हैं, जो उनके लिए परव्शानी का कारण नहीं हैं.'' हालांकि जिन विवादों में अमेरिका की दिलचस्पी है, उनमें वह अतिसक्रियता का रवैया अख्तियार करता है.
दक्षिण चीन सागर, जिस पर चीन अपने 'निर्विवादित प्रभुत्व' का दावा करता है और जिस पर फिलीपींस और वियतनाम के साथ उसका विवाद चल रहा है, पर अमेरिका ने नौपरिवहन की स्वतंत्रता मांगी है और दो दक्षिणपूर्वी एशियायी देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभियान भी किया है.
दूसरे विश्वयुद्ध में मारव् गए अमेरिकी सैनिकों के संबंधी अमेरिका की इस दोगली नीति के कारण गुस्से से तमतमाए हैं, जिसके कारण उनके प्रियजनों के अवशेषों को खोजने का, उनकी नजर में, पूर्णतः मानवीय काम प्रभावित हुआ है.
1944 में अरुणाचल प्रदेश में हवाई दुर्घटना में मारे गए फर्स्ट लेफ्टिनेंट इरविन जेट्ज के संबंधी गेरी जेट्ज कहते हैं, ''संभवतः यह संयोग नहीं है कि जब चीन ने इन अभियानों को खुद की संप्रभुता काउल्लंघन बताते हुए सार्वजनिक रूप से इनकी आलोचना शुरू की, तो उसके थोड़े समय बाद ही ये अभियान बंद कर दिए गए.''
इस मुद्दे पर चीन की सरकार सतर्कता भरी चुप्पी साधे हुए है जबकि वहां का मीडिया भारत-अमेरिकी संयुक्त अभियान की लगातार कड़ी आलोचना करता आ रहा है. चीन के एक रव्डियो ने मार्च 2008 में अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वह ''चीन के इलाके में भारत द्वारा जोर-जबरदस्ती और अनैतिक रूप से स्थापित कथित प्रांत अरुणाचल प्रदेश में दखल दे रहा है.'' इस टिप्पणी में दावा किया गया कि अमेरिका का इरादा नई दिल्ली के साथ सैन्य संबंधों को और गहरा करना और अरुणाचल प्रदेश विवाद को चीन पर नजर रखने का जरिए बनाना है.
अमेरिकी सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है. हालांकि रिपब्लिकन सीनेटर रिचर्ड बर के वरिष्ठ नीति सलाहकार ने मृत सैनिकों के संबंधियों को ''विवादास्पद क्षेत्र में काम करने की जटिलताएं'' बताई हैं और इस मुद्दे पर जोर दिया है कि यह क्षेत्र ''अविकसित, कम जनसंख्या वाला और अनेक भारतीय उग्रवादी समूहों और म्यांमार के आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगार है.'' विचित्र बात है, 2008 और 2009 में अरुणाचल प्रदेश में हुए खोजी अभियानों में ऐसी एक भी बाधा पेश नहीं आई थी.