गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनावी वर्ष में मानसून से अब तक की सबसे कठिन चुनौती मिल रही है. यह बात 17 जुलाई को बहुत साफ हो गई. इस दिन पुलिस और सुरक्षा कर्मियों ने सुरेंद्रनगर के धानकी से राजकोट जिले के मालिया तक सरदार सरोवर बांध के 130 किमी लंबे हिस्से पर गश्त लगाई ताकि किसानों को पानी चुराने से रोका जा सके.
वैसे तो नर्मदा का जल मुख्यतः सिंचाई के लिए ही है, लेकिन राज्य सरकार इसे उत्तर गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र्र के लोगों के लिए पेयजल के रूप में रखने को मजबूर हुई है. यह वह इलाका है जहां इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में मोदी को तगड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं.
हालांकि, अब काफी देर हो चुकी है. जैसा कि गुजरात के जल संसाधन मंत्री नितिन पटेल कहते हैं, ''करीब एक चौथाई मानसून गुजर चुका है और राज्य में अब तक सिर्फ 150 मिमी बारिश हुई है. अब तक 800 मिमी बारिश हो जानी चाहिए थी. यदि मानसून जल्दी बेहतर नहीं हुआ तो फसलों पर इसका बुरा असर पड़ेगा. हालांकि, हम किसी भी संकट से निबटने के लिए तैयार हैं, चाहे पेयजल की दिक्कत ही क्यों न हो.''
इन दिनों राज्य के करीब 270 गांवों को ही टैंकर से पेयजल आपूर्ति की जरूरत पड़ती है. 1990 के दशक में जब नर्मदा नहर और रोक बांध नहीं बने थे, टैंकर पर निर्भर गांवों की संख्या हजारों में थी. राज्य में 210 मध्यम और छोटे बांध हैं जो इस साल केवल 33 फीसदी ही भर पाए हैं. यह 50 फीसदी के अनुमान से काफी कम है. राज्य में 70 फीसदी बुवाई हो चुकी है और यदि अगस्त के पहले हफ्ते तक मानसून गैरहाजिर रहा तो 30 फीसदी फसल सूख जाएगी. काफी बड़े इलाके में धान की रोपाई नहीं हो पाई है क्योंकि इसके लिए पर्याप्त पानी नहीं है.
नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बांध गुजरात के लिए मुक्तिदाता साबित हो सकता है. पिछले साल के मुकाबले 35 फीसदी पानी कम जमा होने के बावजूद इससे संभावित पेयजल संकट से निबटने में मदद मिलेगी. सिंचाई के मोर्चे पर समस्या ज्यादा गंभीर है क्योंकि राज्य के बड़े बांधों-सरदार सरोवर से लेकर माही पर बने कडाणा और तापी पर बने उकाई-का जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) क्रमशः मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र्र और राजस्थान में है और इन राज्यों में भी बारिश बहुत कम हुई है. हालांकि, पिछले हफ्ते इसमें कुछ सुधार हुआ है.
मानसून यदि विफल रहता है तो इससे चुनाव के पहले शहरी-ग्रामीण टकराव जन्म ले सकता है. सौराष्ट्र के कुछ किसानों में असंतोष की सुगबुगाहट है, जिनको नर्मदा से सिंचाई के लिए पानी लेने से रोक दिया गया था. यह विपक्षी कांग्रेस और मोदी के पार्टी में ही विरोधी पूर्व मुख्यमंत्री कव्शुभाई पटेल के लिए हथियार बन गया है. वे पहले से ही मोदी सरकार को किसान और कॉर्पोरेट समर्थक बताते रहे हैं.
मोदी के ज्यादातर प्रमुख मंत्री-वजुभाई वाला, आनंदीबेन पटेल, नितिन पटेल और सौरभ पटेल-शहरी इलाकों से हैं. क्षत्रपों को नाराज किए बिना सरकार को थोड़े संसाधनों का शहरी और ग्रामीण इलाकों में संतुलित वितरण करना होगा.
केशुभाई पटेल पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता और पूर्व केंद्रीय मंत्री काशीराम राणा के साथ मिलकर राज्य में 'परिवर्तन' के बैनर तले रैलियां कर रहे हैं. 22 जुलाई को उन्होंने मोदी को लोगों की समस्याओं से निबटने के मामले में ''गैंडे जैसी मोटी चमड़ी का बताया.'' राजकोट की रैली में उन्होंने मुख्यमंत्री को एक 'सड़ा हुआ फल' बताया जिसे फेंक देना चाहिए.
उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी विकास के गलत दावे कर रहे हैं और 'झूठे' हैं. मोदी और उनके समर्थकों ने अभी तक गरिमापूर्ण चुप्पी बनाए रखी है. लेकिन यह तिकड़ी मुख्यमंत्री पर हमले का कोई मौका नहीं चूकना चाहती और सूखा उन्हें इसका आसान रास्ता देगा.
लेकिन नितिन पटेल कहते हैं, ''हमें उम्मीद है कि सूखा नहीं आएगा. ऐसा हुआ तो भी यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे प्रभावी तरीके से निबट कर हम जनता की तारीफ हासिल कर सकते हैं. हम किसी भी स्थिति से निबटने के लिए तैयार हैं.''