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नक्‍सली हमला: बदला लेने पर उतारू

झारखंड में सुरक्षा बलों के नक्सल विरोधी अभियान में तेजी आने से नक्सली बुरी तरह से बौखलाए हुए हैं. संगठन के बड़े नेताओं की मौत और धरपकड़ का बदला वे जवानों से ले रहे हैं.

नक्‍सली हमला
नक्‍सली हमला
अपडेटेड 30 जनवरी , 2012

झारखंड में सुरक्षा बलों के नक्सल विरोधी अभियान में तेजी आने से नक्सली बुरी तरह से बौखलाए हुए हैं. संगठन के बड़े नेताओं की मौत और धरपकड़ का बदला वे जवानों से ले रहे हैं. अपने नेता किशनजी की मौत की बदले की आग में जलते नक्सलियों ने 21 जनवरी को गढ़वा जिले के सालो के जंगल में भंडरिया-बरगर रोड पर बारूदी सुरंग विस्फोट कर 13 जवानों को मौत के घाट उतार दिया. इस हमले में भंडरिया थाने के थानेदार राजबली चौधरी की भी मौत हो गई.
1 फरवरी 2012: तस्‍वीरों में देखें इंडिया  टुडे


जनवरी
4 जनवरी 2012: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे
11 जनवरी 2012: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे
18 जनवरी 2012: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे
25 जनवरी 2012: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे

दरअसल पिछले साल 23 नवंबर को भाकपा (माओवादी) के जनमुक्ति छापामार सेना के प्रमुख नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी को सुरक्षाबलों ने झारखंड-बंगाल सीमा पर हुई मुठभेड़ में खत्म कर दिया था. इस घटना के बाद से नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर हमले तेज कर दिए. हाल के हमले में उन्होंने पुलिस के हथियार तो लूटे ही, गढ़वा जिला परिषद की अध्यक्ष सुषमा मेहता और भाकपा (माले) नेता अख्तर अंसारी सहित चार लोगों को अगवा भी कर लिया. जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया.

इससे पहले, किशनजी की मौत के 10 दिन के भीतर ही 3 दिसंबर को माओवादियों ने लातेहार के गारू इलाके में चतरा से सांसद इंदर सिंह नामधारी के सुरक्षा काफिले के 11 जवानों को बारूदी सुरंग विस्फोट में घायल कर दिया था. किशनजी के साथ हुई सुरक्षा बलों की मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए नक्सलियों ने 4 और 5 दिसंबर को भारत बंद की घोषणा की थी.

नक्सलियों का अभेद्य इलाका माने जाने वाले सारंडा के बीहड़ों तक सुरक्षा बलों की पहुंच और गिरीश महतो, नरसिम्हा रेड्डी, उदय जैसे शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी की वजह से लगभग नेतृत्वविहीन और कमजोर पड़ रहे नक्सली बिखरते कैडर का मनोबल बढ़ाने में आक्रामक हुए हैं.

हालांकि पुलिस के आला अधिकारी मानते हैं कि ताजे नक्सली हमले में पुलिस बल को  लापरवाही के कारण ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. एक अधिकारी बताते हैं, ''जवानों ने सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया. वे रोड ओपनिंग पार्टी के बगैर ही बीहड़ों में घुस गए और नक्सलियों का शिकार बन गए.'' दूसरी ओर झारखंड पुलिस के मुखिया गौरीशंकर रथ कहते हैं, ''नुकसान उठाना पड़ा है लेकिन यह लड़ाई हम जीतेंगे.''

नक्सली यह मानते हैं कि किशनजी की मौत से संगठन को झटका लगा है लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इससे संगठन या आंदोलन खत्म होने वाला नहीं. जबकि खुफिया विभाग के एक आला अधिकारी बताते हैं कि संगठन में किशनजी की अहम भूमिका थी. संगठन को एकजुट बनाए रखने की क्षमता और रणनीतिक कौशल की बराबरी करने वाला कोई दूसरा चेहरा फिलहाल दिखाई नहीं देता. ऐसे में नक्सली हमलों के जरिए भले ही अपना भय कायम करने की कोशिशें कर लें लेकिन उनका मनोबल गिरा जरूर है.

सारंडा और झुमरा के बाद सुरक्षाबलों ने पलामू प्रमंडल के लातेहार, गढ़वा जैसे इलाकों में भी दबिश तेज कर दी है. सरयू, कोने, ओरैया जैसे नक्सलियों की पैठ वाले इलाकों में घेरने की रणनीति उन्हें बौखलाने के लिए काफी है. ऐसे में जवानों को और सचेत रहना होगा.