पलंग पर बगैर कपड़ों के लेटी है पिंकी और कैमरा उसके जननांगों पर केंद्रित होता है. एशियाई खेलों में रिले रेस में स्वर्ण पदक विजेता पिंकी प्रमाणिक की 2 जुलाई को लिंग निर्धारण जांच हुई. इसी जांच का 29 सेकंड का यह वीडियो जैसे ही गूगल पर आया, महज एक दिन में इसे 20,000 बार सर्च किया गया.
बारासात की जिला अदालत ने 29 जून को पिंकी की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी और पिंकी के क्रोमोजोम्स को जांच के लिए हैदराबाद या बंगलुरूमें जमा कराने के निर्देश दिए थे. खेलों में मिली उपलब्धियों और सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ अभियान चलाने के कारण कभी 'पुरुलिया का गौरव' कही जाने वाली 27 साल की यह रिले धावक अब कोलकाता की दमदम जेल में बैठकर अपने पर लगे बलात्कार और लिंग संबंधी गलत जानकारी देने के आरोपों पर अदालत के फैसले का इंतजार कर रही है.
पुरुलिया के पूर्व विधायक फॉरवर्ड ब्लॉक के निशिकांत मेहता कहते हैं, ''जब तक अदालत कोई फैसला नहीं सुना देती, कोई भी उसकी आलोचना कैसे कर सकता है? पिंकी एक सीधी-सादी लड़की है, मैंने उसे बचपन से देखा है. खेल तो उसका जीवन है. यह उसके माता-पिता के लिए एक दुस्वप्न और उस लड़की के लिए बहुत बड़ी त्रासदी है. कानूनन हर व्यक्ति का कुछ सम्मान होता है जिसका खयाल रखा जाना चाहिए, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा.''
पिंकी के साथ रहने वाली एक महिला अनामिका आचार्य ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया था. इसके बाद 14 जून को पिंकी को गिरफ्तार किया गया. पिंकी और अनामिका कोलकाता में भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआइ) के हॉस्टल में साथ रहती थीं. पुलिस ने पिंकी को पुरुष माना और उसे महिला सेल में रहने की इजाजत नहीं दी, न ही उसकी सुरक्षा में महिला पुलिस तैनात की गई.
14 जून को पिंकी की मर्जी के खिलाफ उसकी लिंग निर्धारण जांच की गई और उसे पुरुष पुलिसकर्मियों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने उसके साथ दुर्व्यवहार किया. पश्चिम बंगाल के मानवाधिकार आयोग ने गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और पुलिस विभाग से पिंकी को दी गई कथित 'अमानवीय यंत्रणा' की जांच करने को कहा है. 3 जुलाई को तीनों विभागों को भेजे गए पत्र में आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कहा है, ''शिकायत मिली है कि जेल और पुलिस हिरासत में पिंकी के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ है.''
पिछले 23 साल से एसएआइ, कोलकाता में स्पोर्ट्स मेडिसिन की साइंटिफिक ऑफिसर डॉ. लैला दास कहती हैं कि इस मामले में संवेदनशीलता का ख्याल रखा जाना चाहिए. वे कहती हैं, ''कोई भी डॉक्टर या अस्पताल मरीज की मर्जी के बगैर इस तरह की जांच नहीं कर सकता. और किसी भी व्यक्ति का कोई भी जांच संबंधी वीडियो सार्वजनिक करना दंडनीय अपराध होना चाहिए. कम-से-कम इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए कि इस मामले से एक इनसान भी जुड़ा हुआ है.''
फिटनेस और सेहत की जांच जहां नियमित होती है वहीं लिंग निर्धारण जांच खेल प्राधिकरण के एजेंडे में भी शामिल नहीं है. एसएसकेएम अस्पताल के मेडिकल सुपरवाइजर तमाल कांति घोष कहते हैं, ''आम तौर पर लिंग का निर्धारण क्रोमोजोम और हार्मोनल जांच से होता है. यह बहुत ही संवेदनशील और गुप्त प्रक्रिया होती है. आखिर आप किसी व्यक्ति की पहचान और वह क्या है, यह पूछ रहे हैं.'' इसी अस्पताल में प्रमाणिक की जांच हुई थी.
प्रमाणिक कोलकाता से 400 किमी दूर तिलाकाडी गांव के आदिवासी परिवार से हैं. पिंकी को लेकर भले ही कैसी भी खबरें आ रही हों लेकिन उनके पड़ोसियों को उनके चरित्र पर पूरा विश्वास है, तिलाकाडी के एक श्रमिक 45 साल के श्रीधरन टुटू कहते हैं, ''यहां हर कोई पिंकी और उसके परिवार का सम्मान करता है. हम गरीब लोग हैं, चिकित्सा की भाषा और कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में ज्यादा नहीं जानते. उसके माता-पिता कितनी दुविधा में होंगे. हम उसे बचपन से जानते हैं, यह उसकी गलती तो नहीं है ना?''
इस सफल खिलाड़ी का करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. पिंकी पर अवैध रूप से बंदूक रखने और एसएआइ हॉस्टल में चोरी के आरोप लग चुके हैं. हालांकि पहले के सभी आरोप, बंदूक रखने का आरोप और चोरी के दो अन्य आरोप रद्द कर दिए गए थे. लेकिन वर्तमान आरोप ने उसके करियर को इतना नुकसान पहुंचाया है जिसकी भरपाई शायद ही कभी हो पाएगी.
कुछ इसी तरह का मामला 1999 में सामने आया था, जिसमें पश्चिम बंगाल के लिए खेलने वाली फुटबॉल खिलाड़ी बंदना पाल पुरुष निकली थी. यह खुलासा तब हुआ था जब 1998 में बैंकॉक में होने वाले एशियाई खेलों की टीम में पाल को शामिल नहीं किया गया. हालांकि उस पर कभी कोई आरोप औपचारिक रूप से नहीं लगाया गया. छह माह तक बेइज्जती झेलने के बाद उसके नेपाल चले जाने की खबर आई.
खेल जगत में पिंकी के साथ हो रहे व्यवहार की काफी आलोचना हो रही है. बुसान एशियाई खेलों में 200 मीटर दौड़ की स्वर्ण पदक विजेता और दो बार ओलंपिक में हिस्सा ले चुकी सरस्वती साहा-डे कहती हैं, ''यह बड़ी शर्मनाक बात है. मुझे पिंकी के लिए दुख है. उन्होंने भारत को इतना सम्मान दिलाया है. यह तो यौन शोषण का मामला है.'' अर्जुन पुरस्कार विजेता शांति मलिक पूछती हैं, ''उस पर भले ही कोई अपराध करने का आरोप हो लेकिन उसका उत्पीड़न क्यों किया जाए?''
तो इसका कोई व्यावहारिक हल है? भारतीय फुटबॉल संघ के उपाध्यक्ष सुब्रत दत्ता कहते हैं, ''जहां तक मेडिकल विवादों का संबंध है, हमें एक पारदर्शी ट्रैकिंग प्रणाली की जरूरत है. हर खिलाड़ी को एक विशिष्ट पहचान नंबर दिया जाना चाहिए. जिस पर उसकी उम्र, लिंग, सेहत जैसी पूरी जानकारी होनी चाहिए. खिलाड़ियों की नियमित जांच की जानी चाहिए. इस तरह किसी भी फर्जीवाड़े से बचा जा सकता है. खिलाड़ी भी ऐसे विवाद से बच सकेंगे.'' दत्ता के मुताबिक, करियर के शीर्ष पर पहुंचकर उसे गर्त में जाते देखना बहुत दुखदायी होता है. इसे पिंकी प्रमाणिक से बेहतर कौन समझ रहा होगा.