राष्ट्रपति पद के स्वयंभू उम्मीदवार 64 वर्षीय पूर्णो अजीतोक संगमा का विचार है कि देश का सर्वोच्च पद समय की बर्बादी है और उसे कागजात पर दस्तखत करने के सिवाय कुछ नहीं करना होता. उनके अनुसार प्रणब मुखर्जी की क्षमता को देखते हुए यह पद उनके लायक नहीं है. लेकिन उसके प्रतीकात्मक महत्व की वजह से यह उनके अपने लिए उपयुक्त है. वे कहते हैं, ''आदिवासियों को उच्चतम स्तर पर प्रतिनिधित्व की जरूरत है.'' उनकी बेटी और केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री अगाथा संगमा भी इस सुर में सुर मिलाती हैं.
उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''आदिवासियों को लगता है कि उन्हें किनारे कर दिया गया है और कोई आदिवासी राष्ट्रपति राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया के लिए वरदान होगा.'' बाप-बेटी की जोड़ी को बखूबी पता है कि गारो जनजाति से आने वाले इस ईसाई नेता का विरोध करना किसी के लिए भी राजनैतिक रूप से गलत होगा.
संगमा मित्रों से समर्थन का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. 15 मई को वे तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता से मिले. 17 मई को अन्ना द्रमुक सुप्रीमो और ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने संगमा के लिए अपने समर्थन की घोषणा की. लेकिन उनकी अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) उन्हें लेकर बहुत उत्सुक नहीं है. पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा, ''राकांपा के पास अपने उम्मीदवार के लिए संख्या बल नहीं है. हम यूपीए के फैसले का पालन करेंगे.''
यूपीए के समर्थन की संभावना 22 मई को समाप्त हो गई जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया. वे यह बात भूली नहीं हैं कि 13 साल पहले संगमा ने उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था. यहां तक कि ममता बनर्जी भी संगमा को माफ करने के मूड में नहीं हैं, जिन्होंने 2004 में थोड़े समय के लिए उनकी पार्टी में शामिल होने के बाद उन्हें अंगूठा दिखा दिया था. अगले राष्ट्रपति के रूप में ममता की पसंद या तो लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार अथवा पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी हैं.
संगमा को पता है कि भाजपा के समर्थन के बिना उनकी दाल नहीं गलेगी. अब वे जयललिता से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती निकटता पर अपनी उम्मीदें लगाए हैं. वे 17 मई को भाजपा के दो अन्य दिग्गजों, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज से मिले. वे दक्षिण-वाम गठबंधन बनाने के लिए भी प्रयासरत हैं.
22 मई को उन्होंने माकपा महासचिव प्रकाश करात और भाकपा नेता डी. राजा से मुलाकात की. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जद (यू) नेता शरद यादव तथा मुलायम सिंह यादव से भी बातचीत की. संगमा ने कहा, ''मैं जयललिता और नवीन पटनायक को निराश नहीं करूंगा. यदि जरूरत पड़ी तो मैं निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़च्ंगा.''
मेघालय के तुरा से आठ बार सांसद रहे संगमा राजीव गांधी और नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री थे. 1996 में लोकसभा अध्यक्ष बनना उनके करियर का उच्चतम बिंदु था.
लोकसभा की कार्यवाहियों के सीधे प्रसारण की नई-नई शुरू हुई व्यवस्था के चलते सांसदों को अनुशासित करने की उनकी प्रधान अध्यापकीय शैली ने उन्हें घर-घर में जाना जाने वाला नाम बना दिया. लेकिन 1999 में सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर उन्होंने मानो अपने सियासी करियर पर ग्रहण लगा लिया क्योंकि उसके बाद से ही वे राष्ट्रीय राजनीति के मंच से ओझ्ल होने लगे.
महात्वाकांक्षा संगमा के लिए कोई नया शब्द नहीं है. एक बार उन्होंने कहा था, ''गारो की पहाड़ियों में मैं वह चांद हूं जिसे ग्रहण नहीं लगेगा.'' अध्यापक से वकील, और फिर नेता बने इस शख्स के लिए क्या राष्ट्रपति भवन में एक कार्यकाल यह साबित करेगा.