हफ्ते भर से गोरखपुर में शिक्षा विभाग के अधिकारी मंडल भर के विद्यालयों की मान्यता के कागजात पढ़ रहे हैं. 23 अप्रैल को बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन दिल्ली की फर्जी मान्यता पर धड़ल्ले से बोर्ड परीक्षा कराने और मनमाना अंक पत्र देने के फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद वहां हड़कंप मचा है. मगर देवरिया जिले के आरटीआइ कार्यकर्ता शमीम इकबाल को अफसोस है कि छह माह पूर्व उनके खुलासे पर यही अधिकारी चेत गए होते तो लाखों की ठगी रोकी जा सकती थी.
दरअसल शमीम ने 31 अगस्त, 2010 को गोरखपुर के एक अखबार में 'बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन दिल्ली से मान्यता प्राप्त भारत सरकार एवं प्रदेश सरकारों द्वारा संचालित हाइस्कूल और इंटरमीडिएट स्तर की मान्यता हेतु संपर्क और आवेदन करें' वाले एक संदिग्ध विज्ञापन पर आरटीआइ के जरिए लिखा-पढ़ी शुरू की थी.
तत्कालीन संयुक्त निदेशक शिक्षा सतीशचंद्र श्रीवास्तव ने 20 नवंबर को गोरखपुर के जिला विद्यालय निरीक्षक को पत्र लिखकर ‘तत्काल स्थलीय जांच' का निर्देश दिया था. मगर उक्त निरीक्षक ने न जाने क्यों इस निर्देश पर कार्रवाई करना उचित नहीं समझा. छह माह बाद उनकी इस संदिग्ध सुस्ती के चलते सैकड़ों लोग इस ठगी का शिकार बनकर भटक रहे हैं.
मगर शमीम को पूरा यकीन है कि ''कुछ दिनों की अफरातफरी के बाद फिर प्रशासनिक कुंभकर्ण सो जाएंगे और ठगों की फौज फिर से सक्रिय हो जाएगी.'' दरअसल ऐसा मानने के पीछे उनके पास ठोस वजहें भी हैं. अखबारों में फर्जी विज्ञापनों के जरिए ठगी करने वालों के खिलाफ कई कामयाब लड़ाइयां लड़ चुके शमीम आधा दर्जन से अधिक ऐसे मामलों का हवाला देते हैं जिसमें ठग अखबारों में विज्ञापन छपवाकर, शहर के सीने पर दफ्तर खोलकर अपनी कारगुजारियां करते रहे और बार-बार आगाह करने और चेतावनियां देने के बावजूद पुलिस और प्रशासन ने कोई निरोधात्मक कार्रवाई नहीं की.
इन दिनों वे फिर एक अन्य मामले में ऐसी ही निष्क्रियता देख रहे हैं. देवरिया के कुछ अखबारों में उन्होंने एक विज्ञापन देखा जिसमें राजधानी वाइन लि. नामक कंपनी बता रही थी कि उसने कुशीनगर के फाजिलनगर इलाके में डिस्टिलरी निर्माण का लाइसेंस लिया है. कुछ दिन बाद उनके सहयोगी अनिल राय ने पूर्वांचल कृषि विपणन निगम लि. का एक बड़ा विज्ञापन देखा जिसे 'कृषि पर आधारित व भारत सरकार द्वारा अनुमोदित' बताया गया था.
दिलचस्प है कि इसके अध्यक्ष/सभापति के रूप में उन्हीं काशीनाथ तिवारी का नाम छपा था जो राजधानी वाइन लि. के अध्यक्ष/प्रबंधक निदेशक के रूप में दूसरे विज्ञापन में मौजूद थे. चौंकाने वाली बात यह थी कि यहां उनके नाम के आगे 'राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त' भी लिखा था.
सक्रिय पत्रकार और एक्टिविस्ट होने के कारण शमीम और राय को इस नाम के राज्यमंत्री होने पर शक हुआ तो उन्होंने लिखा-पढ़ी की और आरटीआइ के जरिए जो सूचनाएं मिलीं वे चौंकाने वाली हैं-उ.प्र. के आबकारी आयुक्त कार्यालय से मिले जवाब के मुताबिक, ''राजधानी वाइन के नाम से प्रदेश में कोई अनुज्ञापन स्वीकृत नहीं है और शराब उत्पादन में ऐसी कोई इकाई कार्यरत नहीं है.
इसके अलावा फाजिलनगर में राजधानी वाइन लि. को डिस्टिलरी निर्माण हेतु कोई लाइसेंस नहीं दिया गया है.'' इसी तरह कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय के केंद्रीय सूचना अधिकारी संजय बोस द्वारा 24 मार्च, 2011 को प्रेषित जवाब के मुताबिक, पूर्वांचल कृषि विपणन निगम लि. नाम के किसी निगम का गठन या अनुमोदन नहीं किया गया है और इस नाम के किसी राज्यमंत्री को कोई सूचना उपलब्ध नहीं है. अलबत्ता इस जवाब में यह भी बताया गया कि इस कार्यालय द्वारा पूर्वांचल कृषि विपणन निगम लि. नाम से संचालित फर्जी कंपनी और संचालकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई है और कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 631 के तहत अभियोजन भीदाखिल किया गया है.
स्पष्ट है, उक्त दोनों संस्थाएं झूठ और फरेब की बुनियाद पर खड़ी हैं मगर मुख्यमंत्री कार्यालय या कृषि निर्देशक कार्यालय के स्तर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है और फर्जीवाड़ा धड़ल्ले से जारी है. कथित निगम की वेबसाइट पर किसानों को ऋण देने एवं जमा करने की तमाम स्कीमें चमक रही हैं और हजारों लोग ठगी के शिकार हो रहे हैं.
तिवारी पर इससे पहले भी नगर सहकारी बैंक के नाम पर गड़बड़ियों के गंभीर आरोप हैं मगर प्रशासनिक कुंभकर्णों की मेहरबानी के चलते यह कथित राज्यमंत्री अब भी लाल-नीली बत्ती वाली कार में घूम रहा है और कभी 'कांग्रेस का साथ देने' तो कभी 'ब्राह्मण महासम्मेलन' के आयोजन से अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की खेती कर रहा है. उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी अगुआई वाला 'विकास मंच' बसपा सरकार के विरुद्ध 110 प्रत्याशी खड़ा करेगा.
प्रशासनिक कुंभकर्णों का फायदा सिर्फ तिवारी जैसे लोग ही नहीं उठा रहे, भ्रष्ट नौकरशाहों को भी इससे राहत मिलती है. देवरिया में ही कांग्रेस के सूचनाधिकार टॉस्क फोर्स के चेयरमैन और जुझारू आरटीआइ कार्यकर्ता राघवेंद्र सिंह राकेश ने रुद्रपुर तहसील के भवन मरम्मत के नाम पर 200607 में हुए 6.93 लाख के घोटाले पर लिखापढ़ी शुरू की तो तत्कालीन आयुक्त पी.के. महंती ने उपनिदेशक अर्थ एवं संख्या ए.के. पांडेय से जांच करवाई. जांच में बगैर टेंडर के लाखों का कार्य कराने, बिना एमबी और बिना आगणन स्वीकृति के भुगतान करने जैसे अनेक गंभीर घपले साबित हुए.
रिपोर्ट आते ही दोनों आइएएस अफसरों ने दोबारा जांच कराने की मांग की. अपर आयुक्त बी.पी. श्रीवास्तव ने जांच शुरू की तो शिकायतकर्ता से ही शपथ पत्र मांगना शुरू कर दिया. राकेश ने इसके शासनादेश की मांग की तो उन्हें जवाब तो नहीं मिला अलबत्ता यह चिट्ठी जरूर मिल गई कि शपथ पत्र न मिलने के चलते यह मामला खत्म किया जाता है. मामले को लोकायुक्त और न्यायपालिका में ले गए राकेश सवाल करते हैं, ''क्या यह नहीं माना जाए कि सरकारी तंत्र को अपने ही अफसर द्वारा की गई जांच पर भी विश्वास नहीं है?''
ऐसे में जान जोखिम में डालकर भी सच उजागर करने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता हताश हो रहे हैं. विडंबना है कि मिशन 2012 पर काम कर रहे कांग्रेसी युवराज यूपी में एनआरएचएम के घपले के लिए अपनी मौजूदगी में आरटीआइ आवेदन कराते हैं मगर उनकी पार्टी की सरकार ऐसे आवेदनों से जाहिर सचाइयों पर हरकत की बजाए सुस्ती ही दिखाती है.