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रॉबर्ट वाड्रा: सियासी विरासत पर नजर

सत्ता की कांग्रेसी चौसर पर सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के फेंके पासे ने कांग्रेस परिवार के भीतर हलचल पैदा कर दी है.

रॉबर्ट वाड्रा
रॉबर्ट वाड्रा
अपडेटेड 7 अक्टूबर , 2012

भारत के सबसे पुराने सियासी खानदान में नया उत्तराधिकारी आ गया है. बीती 6 फरवरी को 42 वर्षीय रॉबर्ट वाड्रा ने उसी जमीन पर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा का दांव खेल दिया जो बरसों से कांग्रेसी खानदान का मुख्यालय और इंदिरा गांधी तथा सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र रहा है, यानी रायबरेली.

मोटरसाइकिल पर सवार वाड्रा ने ऐलान किया, ''अगर लोग चाहेंगे तो मैं राजनीति में उतर सकता हूं.'' लोगों ने इसका जवाब नहीं दिया; और कांग्रेस पार्टी इस पर प्रतिक्रिया देने में कुछ हिचकिचाई. अधिकतर कांग्रेसी स्तब्ध थे. वफादारी की लकीरें धुंधली पड़ रही थीं क्योंकि उन्होंने राहुल गांधी को अपना नेता माना था और प्रियंका गांधी को उनका सहयोगी, न कि कोई खतरा.
फरवरी 

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1 फरवरी 2012: तस्‍वीरों में इंडिया टुडे

रॉबर्ट वाड्रा आखिर किस हैसियत से बीच में आ गए? लोगों की नजर में रायबरेली प्रियंका की बपौती है क्योंकि इस खानदानी सीट पर स्वाभाविक उत्तराधिकार उन्हीं का बनता है. लेकिन वाड्रा ने यह बयान देकर सारा गणित बिगाड़ दिया. कहा तो यहां तक जा रहा है कि वाड्रा की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है और इस महत्वाकांक्षा को वे स्वर देने लगे हैं.प्रियंका से शादी

रायबरेली से 60 किमी दूर अमेठी में चुनाव प्रचार कर रहीं प्रियंका ने मीडिया पर वाड्रा से 'गोलमटोल' सवाल पूछने का आरोप मढ़ डाला. वे जानती थीं कि इसका क्या नतीजा होने वाला है, क्योंकि किसी भी खानदान के दो उत्तराधिकारी नहीं हो सकते और ऐसा होने की स्थिति में मुगलों की तरह गद्दी की जंग का छिड़ना तय है.
जनवरी

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प्रियंका ने कहा, ''वे कामयाब कारोबारी हैं और उनके पास राजनीति के लिए बिल्कुल वक्त नहीं है.'' यह एक अलग बात है कि उनके कामयाब कारोबारी ने अपने दांव से कदम वापस नहीं खींचे. उसी शाम एक समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपना बयान दोहराया, ''मुझे लगता है कि हर चीज के लिए सही वक्त और जगह होती है. जिस दिन मुझे महसूस होगा कि मैं लोगों की जिंदगी में कोई फ र्क ला सकता हूं, और लोगों को भी लगेगा कि वे मुझे अपना प्रतिनिधि देखना चाहते हैं... मुझे लगता है कि किसी न किसी दिन ऐसा होगा.''
दिसंबर
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यह सामान्य बयान नहीं था, उनकी महत्वाकांक्षा बोल रही थी. पिछले 15 साल से परदे के पीछे रह रहे और कभी-कभार परछाईं की तरह दिख जाने वाले वाड्रा ने खुले में आने से कोई संकोच नहीं किया. वाड्रा 1999 से परिवार के साथ चुनाव प्रचार पर निकलते रहे हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि रायबरेली के इस वन मैन शो में वे अपने दोनों बच्चों, 11 वर्षीय रेहान और 9 वर्षीय मिराया को लेकर आए थे. जो शख्स कभी अपने साले राहुल की कार की ड्राइविंग सीट पर नजर आता था. लगता है कि वह अब सचमुच कमान संभालना चाहता है.तरक्‍की की रफ्तार

कांग्रेसी नेता वाड्रा के अखबारों के पेज थ्री से पहले पन्ने पर आने को लेकर सशंकित हैं. उन्हें मनमौजी और अनियंत्रित व्यक्ति करार दिया जा रहा है, जो कभी उनके और मरहूम बेन.जीर भुट्टो के पति व पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ  अली जरदारी के बीच की जाने वाली तुलना की दोबारा याद दिलाता है.

रायबरेली के स्थानीय कांग्रेसी नेताओं ने वाड्रा में आए फर्क को महसूस भी किया है. पिछले दो दशक से गांधी परिवार के लिए काम कर रहे कांग्रेसी नेता, 42 वर्षीय कल्याण सिंह गांधी ने बताया कि वाड्रा इस चुनाव में कुछ असरदार करना चाहते थे और उन्होंने किसी ऐसे आयोजन की मांग की थी जो उनकी शख्सियत से मेल खाता हो.

कल्याण ने इंडिया टुडे को बताया, ''इसीलिए मैंने उनके लिए रायबरेली की सुरक्षित सीट सलोन में बाइक रैली का आयोजन किया. बाइक पर चढ़ने से पहले वाड्रा जी ने दो रैलियों को संबोधित किया.'' ये रैली स्थानीय कांग्रेसी उम्मीदवार शिव बालक पासी के समर्थन में थी जो वाड्रा के पीछे बाइक पर बैठे नजर आए, हालांकि सच्चाई यह थी कि यह आयोजन वाड्रा को परदे के पीछे से आगे लाने के लिए रखा गया था.ठाठ की जिंदगी

इस दौरान वाड्रा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर विवादों में भी घिरे जब जिला निर्वाचन अधिकारी पवन सेन ने उनके काफिले को रोका. इसके तुरंत बाद 2005 बैच के इस आइएएस अधिकारी के ट्रांसफर का आदेश जारी कर दिया गया, हालांकि चुनाव आयोग का दावा है कि यह आदेश कई दिन पहले ही जारी किया जा चुका था. आयोग ने बाद में कहा कि चुनाव खत्म होने तक सेन पद पर बने रहेंगे.

वाड्रा को गांधी परिवार के साथ रिश्ता बनाने का लाभ तो मिला ही है. कुछ फायदे मामूली हो सकते हैं, लेकिन लोगों की आंखों में गड़ते हैं. मसलन, देश के सभी हवाई अड्डों पर सुरक्षा जांच से उन्हें छूट मिली हुई है. सुरक्षा जांच से छूट की 31 श्रेणियां होती हैं और वाड्रा अपनी श्रेणी में इकलौते हैं. बाकी 30 श्रेणियां पद और प्रतिष्ठा के हिसाब से बनाई गई हैं.

शादी के बाद से ही वाड्रा के कारोबार में बेतहाशा वृद्धि हुई है. उनके पिता राजिंदर वाड्रा मुरादाबाद में पीतल के सामान के निर्यात का धंधा चलाते थे. रॉबर्ट वाड्रा ने 1997 में हस्तशिल्प और फैशन सामग्री का कारोबार आर्टेक्स के नाम से शुरू किया. उसी साल उनकी शादी हुई थी.रॉबर्ट वाड्रा

उन्होंने 2010 में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया था कि कैसे वे अपना सामान बेचने के लिए भटका करते थे, ''कारोबार खड़ा करना इतना आसान नहीं होता. मैं अपने सप्लायर खोजने के लिए पुरानी दिल्ली की गलियों और चावड़ी बाजार में भटका करता था. अपने सैंपल के साथ मैं दुनिया भर में घूमा और खरीदारों की तलाश में दर-दर गया. कई बार मुझे निराशा हाथ लगी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. और आज हम काफी कामयाब हैं. तब से लेकर आज तक हम काफी लंबी दूरी तय कर चुके हैं.'

पीतल से शुरू हुई वाड्रा की सुनहरी बन चुकी यह दास्तान अब कोई छुपी हुई बात नहीं रही. मार्च, 2011 में एक बिजनेस अखबार ने रियल एस्टेट के कारोबार में उनके ''चुपचाप और अबाधित प्रवेश'' पर विस्तार से लिखा था, जिसमें एक साझेदारी और देश की सबसे बड़ी रियल्टी फर्म डीएलएफ के साथ उनकी साझेदारी और लेन-देन की भी बात थी. अखबार के मुताबिक, वाड्रा ने 2007 में दूसरे कारोबार में हाथ आजमाना शुरू किया और हरियाणा तथा राजस्थान में काफी जमीन खरीद डाली. इसके अलावा दिल्ली के एक होटल में आधी हिस्सेदारी खरीद ली और चार्टर्ड विमानों के धंधे में भी हाथ आजमाया. उनकी कई कंपनियों ने लोन लिया है और इनमें से कई कर्ज डीएलएफ ने बगैर गिरवी के दिए हैं.

वाड्रा ने इस अखबारी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि डीएलएफ के साथ उनका रिश्ता उसके मालिक के साथ पुराने पारिवारिक संबंध के चलते है. उन्होंने कहा, ''मैं डीएलएफ के लोगों को लंबे समय से जानता हूं और वे मेरे मित्र हैं. मैं रियल एस्टेट में निवेश करना चाहता था और इस संबंध ने मेरी मदद की.'' हालांकि यह साबित करने में पूरा जोर लगाया कि अपना कारोबार वे खुद अपने दम पर चला रहे हैं.रॉबट वाड्रा

डीएलएफ ने दावा किया था कि ''डीएलएफ समूह का वाड्रा के साथ कारोबारी संबंध उनके एक स्वतंत्र उद्यमी होने की हैसियत से ही हैं और ये पूरी तरह पारदर्शी हैं.'' अब तक वाड्रा का फैलता साम्राज्‍य सार्वजनिक जांच-पड़ताल से इसलिए बचा रहा है क्योंकि उन्होंने यह सब कुछ निजी स्तर पर किया है. यदि वे विधायिका में किसी पद के लिए दावा करते हैं, तो उन्हें यह सुविधा छोड़नी पड़ेगी.

बहरहाल, रायबरेली में सनसनीखेज दौरे के बाद वाड्रा 6 फरवरी की शाम प्रियंका के साथ दिल्ली लौट आए. प्रियंका 9 फ रवरी को दोबारा प्रचार पर निकल गईं, लेकिन वाड्रा की योजनाओं के बारे में कोई खबर नहीं है. सूत्रों की मानें तो  कांग्रेस दामाद पर लगाम कसने के तरीके खोजने में लगी है. कांग्रेस के एक नेता कहते हैं, ''उन्होंने राहुल को लाइमलाइट से बाहर कर दिया. यदि इस नुकसान की भरपाई नहीं की गई, तो राहुल के प्रयासों से कांग्रेस को जो भी फ ायदा हुआ है, सब मिट्टी में मिल जाएगा.''

उत्तर प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस में राहुल गांधी ने कुछ जान फूंकी थी, लेकिन वाड्रा के कारनामे  ने पार्टी को बैकफुट पर ला दिया है. कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व भी तय नहीं कर पा रहा कि वाड्रा से कैसे निबटा जाए; जाहिर है शादी-ब्याह के रिश्ते होते ही नाजुक हैं. सवाल कई हैं, मसलन क्या वाड्रा को सोनिया गांधी से इजाजत मिली हुई है? क्या वे अपनी पत्नी पर दबाव डाल रहे हैं?

इस मसले पर पार्टी की आधिकारिक लाइन महासचिव जनार्दन द्विवेदी और प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सामने रखी. सिंघवी ने कहा, ''लोगों ने वाड्रा के बयान को अलग संदर्भ में ले लिया है. अपने पति की राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर प्रियंका गांधी के बयान के बाद मुझे कुछ नहीं कहना है.'' प्रियंका की सफाई के बाद वाड्रा के बयान पर उन्होंने कुछ नहीं कहा.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान वाड्रा के बयानों से पता चलता है कि राजनीति हमेशा उनके लिए आकर्षण की चीज रही है, भले ही वे दावा करते रहें कि उनका सारा ध्यान अपने उस कारोबार पर है जिसे वे दक्षिणी दिल्ली के सुखदेव विहार स्थित 268 नंबर के पुराने मकान से चलाते हैं. हो सकता है कि उनके हिसाब से अगले कदम का सही वक्त आ चुका हो.

बहरहाल, उनका कारोबार फल-फूल रहा है और मीडिया में उनकी शख्सियत अब परिचय की मोहताज नहीं रही. उन्हें पार्टी करना पसंद है, चाहे वह लैप नाइट क्लब में हो या अशोका होटल का एफ -बार. उन्हें काले चमड़े के चुस्त कपड़ों में खुद की तस्वीरें खिंचवाने से भी कोई परहेज नहीं, जिसके चलते उन्हें दिसंबर, 2011 में दिल्ली के एक अखबार ने सर्वश्रेष्ठ ड्रेस वाले पुरुष के पुरस्कार से नवाजा था.

फिटनेस के कायल वाड्रा को अपनी देह का प्रदर्शन करने में भी कोई संकोच नहीं-चाहे वह फिटनेस की चमकदार पत्रिकाएं हों या उनकी फेसबुक प्रोफाइल. उनके पास लग्जरी कारों की कतार है, जिसमें काली 500 एसईएल मर्सिडीज, बेशकीमती बीएमडब्ल्यू और हाल ही में खरीदी रेंज रोवर भी शामिल है.

प्रियंका से शादी के कारण स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप की सुरक्षा उन्हें मिली हुई है, लिहाजा वे अपने ही अंदाज में चलते हैं-उनकी कार के आगे एक पायलट जिप्सी चलती है जिसमें दिल्ली पुलिस के पांच कमांडो होते हैं. उसके पीछे एक और जिप्सी चलती है. वाड्रा ने 2011 में पांच टॉप ऐंड बाइक खरीदीं-हयाबुसा, हार्ले-डेविडसन और डुकाटी-हालांकि अपने साले राहुल गांधी के साथ इन पर घूमने के दोस्ताना दिन अब लद चुके हैं.

वाड्रा कभी भी सुर्खियों से ज्‍यादा दूर नहीं रहे. उनकी जिंदगी हमेशा किसी न किसी विवाद से घिरी रही है. उनके चाचा मुरादाबाद के फार्महाउस पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित स्कूल चलाते थे. वाड्रा ने जनवरी, 2002 में एक सार्वजनिक कानूनी नोटिस के माध्यम से खुद को अपने पिता राजिंदर और भाई रिचर्ड से अलग कर लिया. उनका आरोप था कि वे उनके नाम और गांधी परिवार से रिश्ते का सहारा लेकर लोगों को नौकरी देने के वादे कर रहे थे. इसके बाद उनके पिता ने मानहानि का मुकदमा भी किया था.

उनके पिता अप्रैल, 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में यूसुफ सराय के एक मोटेल में मृत पाए गए. पुलिस के मुताबिक, यह खुदकुशी का मामला दिखता था. कुछ भी साबित नहीं हुआ. उनके भाई रिचर्ड ने सितंबर, 2003 में मुरादाबाद के पुश्तैनी मकान में खुदकुशी कर ली. वाड्रा की बहन मिशेल अप्रैल, 2001 में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर कार दुर्घटना में दिवंगत 'ईं.

वाड्रा अपनी मां मौरीन के करीब हैं जो स्कॉटिश मूल की एंग्लो-इंडियन हैं. वे वाड्रा की 2007 के बाद बनाई पांच कंपनियों की निदेशक भी हैं. प्रियंका उनकी कंपनी ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग प्राइवेट लि. की संस्थापक निदेशक थीं जिसे चार्टर्ड विमान के कारोबार के लिए 2007 में बनाया गया था.

हालांकि बाद में उन्होंने इस कंपनी को छोड़ दिया और जुलाई, 2008 में निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया. वाड्रा अपना अधिकांश वक्त दुबई और इंग्लैंड की यात्राओं में बिताते हैं जिससे कु छ लोग अब दावा करने लगे हैं कि शायद उन्होंने एनआरआइ का दर्जा हासिल कर लिया हो. जब वे दिल्ली में रहते हैं, तो आधा वक्त गुड़गांव के डीएलएफ अरालियाज में अपने लक्.जरी अपार्टमेंट में और बाकी वक्त लोदी एस्टेट की कोठी में बिताते हैं.

चुनावी मौसम में बाहर निकलकर बरसाती मेंढक का तमगा हासिल कर चुकीं प्रियंका अपने दोनों बच्चों पर ध्यान देती हैं. वे चाहती हैं कि उनके बच्चों का बचपन सामान्य तरीके से बीते, और एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वे अपने बच्चों के लिए कप केक तक खुद तैयार करती हैं.

दिल्ली के श्रीराम स्कूल में पढ़ने वाले उनके बच्चे अच्छे हैं, अनुशासित हैं और ज्‍यादा नखरे नहीं करते. प्रियंका अभिभावकों और अध्यापकों की मीटिंग में नियमित जाती हैं और स्कूल के अभिभावक-अध्यापक संघ में भी सक्रिय हैं.

पिछले एक दशक से प्रियंका विपश्यना का अभ्यास कर रही हैं. उन्होंने बौद्ध दर्शन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर ली है. अपने पिता राजीव गांधी की हत्या करने वाली नलिनी से उन्होंने 2008 में वेल्लूर जेल में मुलाकात की थी. बाद में उन्होंने इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने ऐसा ''अपने दिमाग के भीतर चल रही हिंसक सोच को शांत करने के लिए किया था.'' उन्होंने कहा, ''मैं अपने ऊपर हिंसा को हावी नहीं होने देती.''

वाड्रा अब तक निजी और राजनैतिक जीवन को अलग-अलग रखने में कामयाब हैं, लेकिन इस बार उन्होंने खुद को कांग्रेस की दुलारी प्रियंका के खिलाफ न चाहते हुए भी खड़ा कर लिया है. यदि सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से यह सीट छोड़ती हैं, तो पार्टी चाहेगी कि प्रियंका यहां से उम्मीदवार हों.

उनके कारोबारी रिश्तों के बारे में छापने वाले अखबार को उन्होंने पिछले साल बताया था, ''मैं अपने परिवार से कोई भी फायदा उठाने की कोशिश नहीं करता. मैं किसी का कोई एहसान नहीं लेता क्योंकि यदि मैं ऐसा करूंगा तो वे मुझसे बदले में कुछ और बड़ा चाहेंगे... लोग मेरे बारे में जो चाहे सोच सकते हैं लेकिन मुझ्से सरोकार रखने वाले लोग मुझे जानते हैं कि मैं कैसा हूं.'' ऐसा लगता है कि अब वे पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि वे कैसे हैं.