आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा के पुट्टपर्थी में प्रशांति निलयम स्थित निजी क्वार्टर-यजुर मंदिर के पट खुलने पर हुए चौंकाने वाले खुलासे और इसके बाद इस पवित्र नगरी से चोरी-छुपे ले जाए जा रहे 35 लाख रु. पकड़े जाने से संकेत मिलते हैं कि 40,000 करोड़ रु. के बाबा के साम्राज्य की देख-रव्ख करने वाले श्री सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट (एसएसएससीटी) में काफी कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
18 जून को कर्नाटक सीमा के पास कोड़िकोंडा में 35 लाख रु. ले जा रहे एक चार पहिया वाहन को जांच के दौरान जब्त किया गया. यह वाहन ट्रस्ट का बताया जाता है.
पुट्टपर्थी से पैसा बाहर ले जाने की कवायद ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पैसों को बाहर ले जाने की घटना से एक बात सामने आई है, वह यह कि इसमें से कुछ पैसा पांच सदस्यीय न्यास के लंबे समय से सदस्य वी.श्रीनिवासन के कहने पर प्रशांति निलयम से निकाला गया था.
वृद्धावस्था की ओर बढ़ते ये उद्योगपति अब चैन्ने में 1961 में साझा तौर पर बनी इंजीनियरिंग फर्म डब्ल्यू.एस.इंडस्ट्रीज के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष हैं. श्रीनिवासन का कहना है कि साईं बाबा के शैक्षणिक संस्थानों के एक पूर्व छात्र ने काफी सारा धन दान दिया था और जब्त किया गया पैसा उसी का हिस्सा है जिससे बाबा की समाधि पर स्मारक बनाया जाना है. बाबा को दफनाए जाने की जगह पर अगले माह तक स्वर्ण चढ़ी समाधि-साईं महासमाधि बनाई जानी है.
एक और न्यासी और बाबा के भतीजे, आर.जे. राजशेखर, जिन्होंने बाबा की अंतिम क्रिया की थी, कहते हैं, ''यह पैसा 12 दानदाताओं से आया जो इसे लेकर आए थे और विशेष तौर पर बाबा की समाधि पर स्मारक के निर्माण के लिए इसे दान देना चाहते थे.'' वित्तीय गड़बड़ी के चलते दोनों ही न्यासी संदेह के घेरे में हैं और न्यास से इन दोनों को हटाए जाने की श्रद्धालुओं की मांग भी जोर पकड़ती जा रही है. पुलिस दोनों को ही पूछताछ के लिए नोटिस भेज चुकी है.
पुलिस को अंदेशा है कि दो मंजिला यजुर मंदिर में काफी सारा खजाना छिपा हुआ है. एक दशक पहले बने यजुर मंदिर में उच्च पदाधिकारियों और न्यासियों, दोनों के लिए ही प्रवेश प्रतिबंधित था. 16 और 17 जून को यहां मौजूद चीजों की सूची बनाने के लगातार 36 घंटों तक चले काम के दौरान न्यासी पहली बार एलिवेटर के जरिए पहली मंजिल पर पहुंचे जहां उनके दिवंगत आध्यात्मिक गुरु रहा करते थे. यहां उन्हें नगद 11.36 करोड़ रु., 98 किलो सोना और 307 किलो चांदी मिली.
मुमकिन है कि यहां और भी खजाना मौजूद हो, जिसे खोजा जाना बाकी है. यह भी साफ नहीं है कि खजाने को अघोषित क्यों रखा गया और धार्मिक तथा धमार्थ न्यासों को नियंत्रित करने वाले नियम-कायदों के तहत इसे सामने क्यों नहीं लाया गया. इसके अलावा, यदि साईं बाबा की पूरी संपत्ति का लेखा-जोखा रखा गया था तो फिर बाहर ले जाए जा रहे 35.50 लाख रु. आखिर कहां से आए?
अभी महज छह माह पहले की ही बात है, जब करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी के धर्मशाला मठ से सात करोड़ रु.-भारतीय मुद्रा में 34 लाख रु., दस लाख डॉलर और 11 लाख युआन मिलने पर करमापा पर चीन का एजेंट होने का आरोप लगा था.
न्यास की पारदर्शिता और प्रबंधन के सवालों के घेरे में आने के बावजूद न्यासी मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं. वे बोलते भी हैं तो बस इतना कि साईं बाबा जब तक जीवित थे, अध्यक्ष थे और आगे भी बाबा की आत्मा उनका मार्गदर्शन करती रहेगी. लेकिन साईं बाबा का पूरा साम्राज्य जिस जाल में फंस चुका है, उसमें से बाहर निकलने के लिए केवल यही काफी नहीं होगा.
इसके न्यासी व्यक्तिगत तौर पर भी, प्रभावशाली पृष्ठभूमि के लोग हैं. पी.एन.भगवती भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं और इंदुलाल शाह चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं. न्यासियों में एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं एस.वी.गिरि, जिन्होंने केंद्रीय सर्तकता आयुक्त के पद से 1998 में इस्तीफा दे दिया था. अन्य दो में से एक श्रीनिवासन डब्ल्यू.एस. इंडस्ट्रीज में पूर्णकालिक प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष का पद पहले ही छोड़ चुके हैं जबकि रत्नाकर न्यास में नई पीढ़ी का इकलौते चेहरा हैं.
ट्रस्टी साईं बाबा की मौत के बाद के अपने पहले अहम काम यानी उनकी संपत्ति का जल्द से जल्द हिसाब-किताब करने में नाकाम रहे. इसका लेखा-जोखा उन्होंने बाबा की मृत्यु के छह हफ्तों बाद जाकर बनाया. उनकी मौत के हफ्ते भर पहले तक न्यास ने दावा किया था कि वे दान सिर्फ चेक के जरिए ही स्वीकार करते हैं. लेकिन यजुर मंदिर में जो कुछ मिला, वह इन दावों को झूठलाता है.
न्यास के खिलाफ हो रहे विरोध में अब बाबा के रिश्तेदार भी शामिल हो गए हैं. साईं बाबा की पड़-नातिन चेतना राजू कहती हैं, ''हम कोई बाहरी लोग नहीं हैं, न्यास से सवाल पूछने का हमें पूरा अधिकार है, जिसने किसी को भी भरोसे में लिए बगैर ये काम किए हैं.'' राजू और परिवार के दूसरे सदस्य न्यासियों पर संदेहास्पद समझैतों का आरोप लगाते हैं और चाहते हैं कि प्रभावशाली श्रद्धालु न्यास के गलत कामों का पर्दाफाश करव्ं.
कुछ संबंधी साईं बाबा की विरासत पर कब्जा पाने की कोशिश में हैं. इन प्रमुख दावेदारों में सबसे आगे हैं 39 वर्षीय रत्नाकर, जो पुट्टपर्थी में केबल टेलीविजन नेटवर्क चलाते हैं और एक पेट्रोल पंप के मालिक भी हैं. उन्हें चुनौती दे रहे हैं 2002 से बाबा की देखभाल कर रहे उनके व्यक्तिगत सेवक 33 वर्षीय सत्यजीत.
संभावित न्यासियों में सत्यजीत का नाम भी उछाला गया है. सत्यजीत पांच साल की उम्र में मंगलौर छोड़ सत्य साईं स्कूल में आ गए थे. सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर लर्निंग से उन्होंने एमबीए किया है. सत्यजीत ने अपना जीवन साईं बाबा को समर्पित कर रखा था और यजुर मंदिर में उनकी इजाजत के बगैर कोई प्रवेश नहीं कर सकता था. केवल सत्यजीत ही थे जो अपने गुरु के पहली मंजिल स्थित निजी क्वॉटर में नियमित रूप से आया-जाया करते थे. रत्नाकर न्यास में सत्यजीत को शामिल किए जाने का विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि सत्यजीत के आगे उनकी चमक फीकी पड़ जाएगी. बाबा का यह भतीजा इसमें अपना राजनैतिक भविष्य भी बनता देख रहा है, जिसमें पुट्टपर्थी और न्यास की कई गतिविधियां खासी फायदेमंद साबित होंगी. उनके पिता आर.वी.जानकीराम, जो बाबा के छोटे भाई हैं, पिछले 11 साल से अनंतपुर जिला कांग्रेस समिति के अध्यक्ष हैं. हालांकि सत्यजीत बड़ी भूमिकाओं से दूर ही रहना चाहते हैं. इसके बदले उनका पूरा ध्यान नई शैक्षणिक पहल-विद्या वाहिनी पर केंद्रित है.
यह सारा परिदृश्य तब और जटिल हो गया जब सत्य साईं बाबा के एक मशहूर अनुयायी, हार्ड रॉक कैफे से जाने जाते इसहाक टिग्रेट ने दावा किया कि वे दिवंगत साईं बाबा की ''जिंदा वसीयत'' हैं और बाबा के ''निर्देश'' गुप्त रूप से उन्हें मिल रहे हैं, जिसमें बाबा के संभावित वारिस का वर्णन भी शामिल है.
1991 में 30 करोड़ रु. देने से लेकर पुट्टपथी में श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल इंस्टीट्यूट बनाने तक टिग्रेट ने उल्लेखनीय योगदान दिए हैं. हालांकि न्यास ने यह कहते हुए उनके दावों को खारिज कर दिया है कि साईं बाबा कई श्रद्धालुओं से व्यक्तिगत तौर पर चर्चा किया करते थे लेकिन उस बातचीत का न्यास के प्रशासन से कोई लेना-देना नहीं है.
यदि साईं के प्रभावशाली भक्तों की चली तो न्यास की विकास और कल्याण संबंधी कई पहलों को प्रभावी रूप से जारी रखने के लिए और भी न्यासी सामने आ सकते हैं. न्यासियों को यह अंदाजा तो है कि बाबा के जीवित रहते हुए जितना दान मिला करता था शायद उतना धन-प्रवाह अब नहीं रहेगा, हालांकि 25 किलो सोने से बनने वाली साईं की महासमाधि के लिए भरपूर दान मिलने की संभावना है.
15 जुलाई को गुरु पूर्णिमा आने से पहले इसे तैयार कर लेने के लिए जापान, मलेशिया, चीन, नेपाल और राजस्थान के कुछ वास्तुकार दिन-रात काम में जुटे हैं. इसे उसी स्थान पर बनाया जाएगा जहां साईं बाबा अपने अनुयायियों को दर्शन दिया करते थे.
पांच सदस्यीय न्यास की सहायक है चार सदस्यीय प्रबंध परिषद जिसमें हैं बंगलुरू के वकील एस.एस. नागानंद, कनारा बैंक के पूर्व अध्यक्ष जी.वी. शेट्टी, इंडियन ओवरसीज बैंक के पूर्व अध्यक्ष टी.के.के. भागवत और न्यास के सचिव के.चकवर्ती, जो अनंतपुर के पूर्व जिलाधिकारी हैं और जिन्होंने साईं बाबा की सेवा करने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी.
वैसे असल कर्ताधर्ता तो श्रीनिवासन, गिरि और चक्रवर्ती की तिकड़ी है. अपने अफसरशाही अनुभवों के चलते गिरि और चक्रवर्ती ने शिक्षा और विकास की पहलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया जबकि श्रीनिवासन, जो सत्य साईं सेवा दल के भी प्रमुख हैं, ने पुट्टपर्थी में विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत सेवा देने के लिए स्वयंसेवकों को इकठ्ठा किया.
जमा करो और माल उड़ाओ का यह खेल जारी रहा तो आंध्र प्रदेश सरकार के दखल से इनकार नहीं किया जा सकता. सरकार ने न्यास के सदस्यों पर लगे वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों और साईं बाबा की मृत्यु के बाद से इसमें चल रहे विवादों पर उससे रिपोर्ट मांगी है. न्यास के 40 साल के इतिहास में यह पहली बार है जब राज्य सरकार ने इसके अंदरूनी मामलों में दखल दिया है.
हिंदू धर्मार्थ एवं धार्मिक दान अधिनियम, 1959 के चलते राज्य के लिए न्यास का प्रभार लेना कहीं अधिक आसान होगा. वैसे भी सरकार को तिरुपति मंदिर की प्रबंधन समिति तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की देखरेख का सफल अनुभव है.
धर्मादा मंत्री पोन्नला लक्ष्मैय्या कहते हैं, ''न्यास के सदस्यों के बीच मतभेदों के चलते सरकार का दखल बेहद जरूरी हो गया है. न्यास के वित्त, गतिविधियों और योजनाओं पर विस्तृत रिपोर्ट मिलने के बाद ही हम तय करेंगे कि आगे क्या करना है.''
हालांकि सरकार जानती है कि खुद-ब-खुद हस्तक्षेप करने की स्थिति में उसे कई तरह के कानूनी झंझटों का सामना करना पड़ सकता है. फिलहाल उसने पुट्टपर्थी में जारी गड़बड़झाले से निबटने का जिम्मा साईं बाबा के अनुयायियों पर छोड़ा हुआ है जिन्हें सरकार के दखल की नौबत को टालना है.
इन सवालों का कोई जवाब नहीं
सत्य साईं न्यास के नियंत्रण में जो संसाधन हैं उनकी सूची और उनकी कीमत को सार्वजनिक करने से वह क्यों इनकार कर रहा है?
यजुर मंदिर में छिपा कर रखी धन-दौलत का लेखा-जोखा बनाने में आखिर इतना समय क्यों लगा?
राज्य सरकार के राजस्व विभाग के अधिकारियों, जिनकी मौजूदगी अनिवार्य होती है, की अनुपस्थिति में न्यास ने सामान की सूची क्यों बनाई.
यदि न्यास में पैसों का सारा लेन-देन चेकों के जरिए होता था और यजुर मंदिर में मिली सारी धन-दौलत का लेखा-जोखा है, तो पुलिस द्वारा जब्त किए 35 लाख रु. आखिर कहां से आए?