याद कीजिए. एक दशक पहले तक फिरौती और अपहरण के डर से बड़े उद्योग बिहार की ओर आने का नाम ही नहीं लिया करते थे. बड़े उद्योग घरानों की सुरक्षा की दुहाई के चलते ही बिहार देश के औद्योगिक मानचित्र से पूरी तरह बाहर हो गया था. लेकिन अब फिजाओं से खौफ का रंग मिट चुका है. बेशक देर से ही सही, बिहार औद्योगिक क्रांति के द्वार पर दस्तक दे रहा है. यहां 14.8 फीसदी की वृद्धि दर, स्थिर कानून-व्यवस्था और सक्रिय सरकार ने मिल कर पासा पलटा है. राज्य में कृषि की उत्पादकता और सस्ते श्रम की लागत ने उद्योगपतियों के लिए एक नया आकर्षण पैदा करने का काम किया है.
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) के अध्यक्ष और गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज ने 20 मई को अपने बिहार दौरे पर 60 करोड़ रु. की लागत से हाजीपुर में पशु चारा प्लांट लगाने की घोषणा कर बिहार की बदलती तस्वीर पर मुहर लगा दी. यह प्लांट गोदरेज समूह की कंपनी गोदरेज एग्रोवेट लगाएगी. उन्होंने बिजली की कमी जैसी दिक्कतों की ओर इशारा किया और वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान सबसे तेज वृद्धि करने वाले राज्य के रूप में बिहार की खूब सराहना भी की.
गोदरेज ने कहा, ''बिहार सही दिशा में कदम बढ़ा रहा है. देश में तीसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य बिहार अपने विशाल बाजार की संभावनाओं के चलते सीआइआइ की प्राथमिकता सूची में है.''
उद्योग जगत के दिग्गजों के बिहार आने का सिलसिला यहीं नहीं थमता. रेमंड लिमिटेड के चेयरमैन गौतम हरि सिंघानिया 15 मई को पटना आए थे. उन्होंने भी 'कदम-दर-कदम' अपनी कारोबार विस्तार योजनाओं का खुलासा किया. सिंघानिया ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार में कपड़ा फैक्टरी लगाने के लिए जमीन देने की पेशकश भी की है.
नीतीश कुमार ने उन्हें आश्वस्त किया, ''हमने कपड़ा, परिधान और आइटी उद्योग की स्थापना के लिए पटना में पहले ही एक जगह की पहचान कर ली है.'' एसोचैम के मुताबिक, 16 फीसदी सालाना की अनुमानित वृद्धि दर के साथ इस साल के अंत तक भारतीय कपड़ा उद्योग का कुल कारोबार 115 अरब डॉलर का हो जाएगा और अपने विस्तार के लिए एक उभरते हुए बाजार के तौर पर बिहार पर इस उद्योग की नजर है.
बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इंडिया टुडे को बताया, ''स्टेट इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड द्वारा स्वीकृत किए गए 755 कारोबारी प्रस्तावों में से 59 पहले ही परिचालन की अवस्था में हैं जिन पर 3,712 करोड़ रु. से ज्यादा का निवेश किया गया है. इसके अलावा 154 औद्योगिक इकाइयां पूरा होने के विभिन्न चरणों में हैं.''
मोदी मानते हैं कि बिहार में अब भी बड़े निवेशकों का आना बाकी है, हालांकि यह भी सच है कि उद्योग जगत के कुछ बड़े नाम राज्य में दस्तक दे चुके हैं. इसी साल फरवरी में आदित्य बिरला समूह के अध्यक्ष कुमार मंगलम बिरला ने पटना में हुए बदलते बिहार पर शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए राज्य में एक सीमेंट फैक्टरी लगाने की अपनी योजना से रू-ब-रू कराया था.
फरवरी में बीयर कंपनी मोलसन कूर्स कोबरा इंडिया ने भी बिहार की अपनी इकाई से अपना उत्पादन शुरू कर दिया. उसने यहां एक ब्रुअरी (शराब बनाने की जगह) लगाई है. इसके अलावा, विजय माल्या की यूनाइटेड ब्रुअरी.ज भी राज्य में कुछ ही माह के भीतर एक ब्रूअरी लगाने वाली है.
राज्य में पब्लिक सेक्टर कृषि उत्पाद आधारित उद्योगों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाता नजर आता है. फूड प्रोसेसिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसने साफ तौर पर बिहार में अपनी जगह बनाई है. यहां की उर्वर भूमि और पानी की पर्याप्त उपलब्धता कृषि-जलवायु परिस्थितियों के काफी अनुकूल है और विभिन्न मौसमों के हिसाब से कृषि उत्पादन में मदद करती है.
बिहार देश में सब्जियों के उत्पादन के मामले में दूसरे और फलों के उत्पादन में सातवें स्थान पर आता है. राज्य देश में लीची का सबसे बड़ा उत्पादक है. अनानास के मामले में यह तीसरे स्थान पर है और आम के उत्पादन में चौथे स्थान पर. बिहार देश का अग्रणी शहद उत्पादक है और देश का तकरीबन आधा शहद यानी 8,400 मीट्रिक टन यहीं पैदा होता है. निवेश के लिए राज्य ने जो नौ क्षेत्र चुने हैं, उनमें फूड प्रोसेसिंग शीर्ष पर है. अन्य आठ क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योग, पर्यटन, सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, शिक्षा, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर, कपड़ा और ऊर्जा शामिल हैं.
पिछले तीन साल के दौरान 52 फ्रूट (फल) प्रोसेसिंग उद्योगों ने बिहार में काम करना शुरू कर दिया है. एसआइपीबी ने 373 फूड प्रोसेसिंग इकाइयों को मंजूरी दी है जिनमें कुल निवेश 4,919 करोड़ रु. का है. इन इकाइयों में फल और सब्जी की प्रोसेसिंग इकाइयां, शहद प्रसंस्करण इकाइयां और मक्का के प्रोजेक्ट शामिल हैं. इनमें से कई इकाइयां टोमैटो केचअप, अचार, सॉस, जैम और जैली, सिरका, फलों के जूस आदि बना रही हैं. मक्का उत्पादन इकाइयां कुक्कुट आहार का उत्पादन करती हैं जबकि ग्रामीण कृषि औद्योगिक इकाइयों में आटा मिलें, मखाना प्रसंस्करण केंद्र, चावल मिल, कोल्ड स्टोरेज, दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र आदि शामिल हैं.
नीतीश ने बताया, ''हमने 1.5 लाख करोड़ रु. के नियोजित निवेश से अगले पांच साल में कृषि विकास के लिए एक कृषि रोडमैप बनाया है.'' संयोगवश बिहार देश का इकलौता राज्य है जहां कृषि कैबिनेट बनाई गई है जिसके तहत 17 विभाग आते हैं.
तेजी से उभरते उपभोक्ता बाजार और गेहूं की सहज उपलब्धता के चलते राज्य में 2010 के बाद से चार बड़े बिस्कुट निर्माताओं का पदार्पण हुआ है. इसके अलावा, सात और बिस्कुट निर्माण इकाइयां लगाई जानी हैं. ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज ने 2011 में 58.62 करोड़ रु. के निवेश से हाजीपुर में एक बिस्कुट निर्माण इकाई खोली थी.
इस इकाई ने उत्पादन शुरू कर दिया है. बिहार में ब्रिटानिया के पार्टनर सुनील अग्रवाल कहते हैं, ''बिहार में एक विशाल और उभरते बाजार की जबरदस्त संभावनाएं मौजूद हैं. इसलिए हमने यहां एक निर्माण इकाई लगाने का फैसला किया.'' अनमोल ब्रांड नाम से बिस्कुट बनाने वाली कंपनी बंसल बिस्कुट ने 48.70 करोड़ रु. के निवेश से बिहार में उत्पादन शुरू कर दिया है जिसकी उत्पादन क्षमता सालाना 48,000 मीट्रिक टन है.
सोबिस्को ब्रांड नाम से बिस्कुट बनाने वाली कोलकाता की कंपनी सोना बिस्कुट्स ने भी बिहार में कदम रख दिए हैं. मुंबई की 5,000 करोड़ रु. के कारोबार वाली पार्ले जी ने बिहार स्थित लावण्य फिनवेस्ट के साथ संयुक्त उपक्रम में मुजफ्फरपुर में सबसे बड़ी बिस्कुट उत्पादन इकाई लगाई है. उद्योग विभाग में डिप्टी डायरेक्टर बी.एन. ठाकुर कहते हैं, ''इसमें 35.68 करोड़ रु. का निवेश हुआ है और अगस्त से उत्पादन शुरू हो जाएगा.'' कुल 166.15 करोड़ रु. के निवेश से स्थापित इन चार बिस्कुट इकाइयों ने अब तक 1,581 लोगों को रोजगार मुहैया कराया है.
कारोबारियों की बढ़ती दिलचस्पी के कारण नीतीश सरकार ने 2011 में अपनी औद्योगिक नीति में कुछ बदलाव किए. नई निवेश नीति में परियोजना लागत का 35 फीसदी लौटाया जाएगा, इसके अलावा 80 फीसदी वैट का भी पुनर्भुगतान होगा और दस साल के लिए लगाई गई पूंजी पर 300 करोड़ रु. की सीलिंग होगी.
मोदी के मुताबिक कई वजहें हैं जिनसे निवेशक अब बिहार की ओर आ रहे हैं, ''सरकारी रियायत और अनुदान के अलावा सुरक्षित कारोबारी माहौल और उपभोक्ता बाजार के रूप में बिहार का आगे आना इसकी चाबी है.''
राज्यों के वित्त मंत्रियों की विशेषाधिकार कमेटी का जुलाई, 2011 में चेयरमैन बनाए जाने के बाद मोदी का उद्योग जगत के साथ संवाद बढ़ा है जिसने बदले में निवेशकों की दिलचस्पी को बिहार में और बढ़ाने का काम किया है. बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के चेयरमैन ओ.पी. शाह कहते हैं, ''बिहार में दस करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं और उनकी क्रयशक्ति बढ़ती ही जा रही है. यह तेजी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार है. यह राज्य हमेशा से ही उत्पादन इकाइयां लगाने के लिए आदर्श स्थान था, लेकिन पहले लचर कानून व्यवस्था और खराब सड़कों ने निवेशकों को हतोत्साहित किया हुआ था. अब चूंकि दोनों में ही कई गुना सुधार आया है, लिहाजा बिहार की किस्मत बदल रही है.''
यह औद्योगिक प्रक्रिया हालांकि सबके लिए अनकूल नहीं रही है. अररिया जिले के फारबिसगंज में लगने वाले ऑरो सुंदरम इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के संयंत्र के खिलाफ प्रदर्शनरत ग्रामीणों पर हुई पुलिस गोलीबारी ने 130 करोड़ रु. के निवेश वाली मक्का प्रसंस्करण, लिक्विड ग्लूकोज और कैप्टिव पॉवर प्लांट की इस परियोजना को खटाई में डाल दिया है.
मुजफ्फरपुर में सरकारी मंजूरी के बावजूद स्थानीय लोगों के विरोध के चलते 31 करोड़ रु. की एस्बेस्टस संयंत्र परियोजना अटकी पड़ी है. कोलकाता स्थित केवेंटर समूह द्वारा भागलपुर जिले में स्थित कहलगांव में 152.48 करोड़ रु. के निवेश से लगाए जाने वाले मेगा फूड पार्क के लिए जमीन अधिग्रहण में राज्य सरकार की नाकामी भी औद्योगीकरण की प्रक्रिया के लिए बड़ा धक्का है.
केवेंटर ने 2010 में बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा आवंटित जमीन के एवज में चार करोड़ रु. का भुगतान किया था, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण जमीन का अधिग्रहण अब तक नहीं हो सका है. राज्य सरकार ने इस स्थिति में अपना पल्ला झड़ लिया है.
सरकार के एक शीर्ष पदस्थ अफसर ने बताया, ''हम सिंगुर और नंदीग्राम में हुए संघर्ष के नतीजे देख चुके हैं. एकाध उद्योग चले भी जाएं तो हम उसके लिए तैयार हैं, लेकिन अपनी जनविरोधी छवि को बरदाश्त नहीं कर सकते.''
बिहार में प्रस्तावित उद्योगीकरण के लिए जमीन की उपलब्धता सबसे बड़ा झ्ंझ्ट साबित हुई है. गुजरात जैसे राज्यों की तरह यहां बंजर भूमि प्रचुर मात्रा में नहीं है. इसके अलावा, 1,102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी के आबादी घनत्व के चलते बिहार को औद्योगिक इकाइयों के लिए जमीन खाली करवाने में भी दिक्कत आ रही है. केवेंटर समूह के सीईओ आशीष गुप्ता कहते हैं, ''इसके बावजूद बिहार में अब भी अवसर हैं. बिहार के शहरों में क्रय शक्ति पश्चिम बंगाल के मुकाबले कहीं ज्यादा है. हम अब भी बिहार में प्लांट लगाने को लेकर उम्मीद लगाए हुए हैं.''
बिजली की कमी भी औद्योगिक विस्तार में रोड़ा अटकाए हुए है. मोदी मानते हैं कि आने वाले सालों में हालात सुधरेंगे. वे कहते, ''स्टेट इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड ने 64 पॉवर प्लांट्स को मंजूरी दी है. दो परियोजनाओं के लिए हमारे पास कोल लिंकेज है. इसके अलावा, अगले दो साल में अपने संसाधनों से हम 700 मेगावाट बिजली पैदा कर लेंगे.''
सरकार को उम्मीद है कि बिजली की कमी के बरक्स वह 2016-17 तक राज्य को बिजली बहुल राज्य बना देगी और इसके लिए 8,200 मेगावाट बिजली पांच साल के भीतर पैदा कर ली जाएगी. इसके लिए मुजफ्फरपुर और बरौनी में राज्य की बिजली उत्पादन इकाइयों की क्षमता 2014-15 तक बढ़ाई जाएगी. इसके अलावा, 2016 तक एनटीपीसी के साथ एक संयुक्त ऊर्जा उपक्रम भी शुरू हो सकेगा.
अब तक राज्य भारी मात्रा में केंद्र की आपूर्ति पर निर्भर रहा है जो 2,500 मेगावाट बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए बिहार को 800-900 मेगावाट बिजली देता है. हालांकि इसके खाते में केंद्रीय आवंटन 1,772 मेगावाट का है. राज्य 500 मेगावाट खुले बाजार से खरीदता है. राज्य में कारोबार की बहाली का सबसे बड़ा संकेत यहां के चीनी उद्योग का वापस जिंदा होना है. आजादी के समय बिहार देश की कुल चीनी का 25 फीसदी उत्पादन करता था जो अब गिर कर 2 फीसदी रह गया है.
सरकार ने इसमें लंबी छलांग के लिए कुछ कदम उठाए हैं. राज्य में नौ निजी चीनी मिलों ने अपनी क्षमता बढ़ाई है जबकि सरकार भी 15 सरकारी चीनी मिलों में से छह को जिंदा करने की योजना कागज पर उतार चुकी है. एचपीसीएल बायोफ्यूल्स ने दो सरकारी चीनी मिलों का अधिग्रहण लंबी अवधि के पट्टे पर कर लिया है जबकि इंडियन पोटाश और तिरहुत इंडस्ट्रीज ने एक-एक चीनी मिल खरीद ली है.
प्रिस्टाइन लॉजिस्टिक्स एंड इंफ्राप्रोजेक्ट्स पटना जिले में स्थित बिहटा चीनी मिल के करीब 23 करोड़ रु. के निवेश से रेल संपर्क वाला एक लॉजिस्टिक्स पार्क लगा रहा है. दरभंगा की सकरी शुगर मिल को खाद्य प्रसंस्करण इकाई में तब्दील किया जा रहा है. यहां तिरहुत इंडस्ट्रीज 18.26 करोड़ रु. का निवेश कर रही है.
लगातार दूसरे साल देश के 46 हवाई अड्डों में पटना एयरपोर्ट के शीर्ष स्थान को मोदी यहां बढ़ रही निवेशकों की दिलचस्पी के पैमाने के रूप में देखते हैं. इस साल पहली बार पटना से जाने और यहां आने वाले घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या दस लाख पहुंच गई है.