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सैफई में फिर लौट आई पुरानी रौनक

अखिलेश के दौरे के बाद सैफई में मुलायम राज की परियोजनाओं में पांच साल बाद अचानक आई तेजी.

अखिलेश यादव
अखिलेश यादव
अपडेटेड 5 जून , 2012

मई की तपती दोपहर में जब बाकी लोग बच्चों के साथ पहाड़ों पर सैर-सपाटा करने के लिए निकल रहे हैं, सैफई के अफसरों को पांच साल से लटके कामों को रात-दिन एक कर निबटाने की जल्दी है. हो भी क्यों न, आखिर मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव जब 12 मई को पहली बार अपने गांव पहुंचे तो उन्होंने एक-एक कर सारी अटकी परियोजनाओं का मुआयना किया.

सैफई की करीब 600 करोड़ रु. की परियोजनाओं का पिछली सरकार में क्या हाल हुआ, यह अखिलेश से बेहतर शायद ही कोई जानता हो. खुद उनकी हवेली के सामने बना कृत्रिम तालाब सूख चुका है. आज बच्चे उसमें क्रिकेट खेलते हैं और फील्डिंग कर जब थक जाते हैं तो वहां पड़े प्लास्टिक के घड़ियाल की पीठ पर सुस्ता लेते हैं. अब यह नहीं चलेगा. नया निजाम सवाए के साथ पुरानी रौनक लौटाने पर आमादा है.Saifai Devlopment

दरअसल, मुलायम सिंह ने अपने गांव में इतना काम करवाया है कि गांव अपनी पुरानी सरहदों को कब का पार कर चुका है. अब तो वह एक आधुनिक टाउनशिप जैसा दिखता है. पांच स्टेडियम हैं यहां. भव्य ऑडिटोरियम और स्वीमिंग पूल है. जंबो जेट उतारने में सक्षम हवाईपट्टी है. अमिताभ बच्चन और चौधरी चरण सिंह के नाम पर डिग्री कॉलेज हैं. दो बड़े अस्पताल हैं. अंग्रेजी जमाने को मात करते कई खूबसूरत गेस्ट हाउस यहां हैं. सैफई को तहसील बनाना तो उनके उस सपने की पहली सीढ़ी थी, जो सैफई को मंडल मुख्यालय बनाने पर ही परवान चढ़ता. लेकिन मायावती के शासन में मुलायम के सपनों का परिंदा धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा. जो काम जहां था, वहीं रुक गया.

नौकरशाही सब जानती है. 'यस सर' करने के आदी अफसर नहीं चाहते कि साहब की भौंहें टेढ़ी हों. इसीलिए अखिलेश सैफई पहुंचे तो यहां के अंतरराष्ट्रीय क्रीड़ा संकुल में बने क्रिकेट स्टेडियम की सड़क रातोरात दुरुस्त कर दी गई. स्टेडियम के दरवाजों और पवेलियन के टूटे शीशों की जगह चमचमाते हरे शीशे लग गए.

इटावा के जिला क्रीड़ा अधिकारी योगेंद्र पाल सिंह बताते हैं, ''क्रीड़ा संकुल के अधूरे इंडोर स्टेडियम को बिजली की सप्लाई मिल गई है और एथलेटिक्स स्टेडियम की इमारत में झडूं-पोछा होने लगा. पहले तो पैसे के अभाव में परिसर का रखरखाव करना तक मुश्किल था.

करोड़ों रुपए की परियोजनाओं की हिफाजत के लिए अदना-सा चौकीदार भी नहीं था.'' प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की मौजूदगी में अखिलेश ने क्रीड़ा संकुल की दशा बदलने के निर्देश के साथ ही यहां छात्रों और छात्राओं के लिए अलग-अलग खेल महाविद्यालय बनाने की भी घोषणा की.

50 एकड़ में फैले क्रीड़ा संकुल में पहले से ही क्रिकेट, एथलेक्टिस, बैडमिंटन, बॉस्केटबॉल, इंडोर स्टेडियम के साथ ही लड़के-लड़कियों के छात्रावास और अफसरों के दफ्तर हैं. वहीं मुलायम सिंह के पिछले कार्यकाल में तैयार हो चुके मास्टर चंदगीराम खेल परिसर में राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण का सेंटर चल रहा है, जहां कई तरह के ओलंपिक खेलों से जुड़े खिलाड़ी ट्रेनिंग ले रहे हैं. परिसर में हॉकी स्टेडियम, इंडोर स्टेडियम के साथ ही खूबसूरत स्वीमिंग पूल भी है. योगेंद्र ने बताया कि यादव परिवार का कोई भी सदस्य जब भी सैफई आता है तो खेल परिसर में जरूर आता है.

हवा का रुख खेल परिसरों में ही बदला हो, ऐसी बात नहीं. अखिलेश जिस हवाईपट्टी पर उतरे, वह भी मुलायम सिंह यादव के पिछले कार्यकाल में अधूरी ही बन पाई थी. जंबो जेट उतारने की मंशा से सारस पक्षियों के प्राकृतिक आवास को उजाड़ कर बनी 50 करोड़ रु. की यह हवाईपट्टी पिछले पांच साल में खुद भी काफी उजड़ गई थी. बहरहाल, अब इसकी चारदीवारी की मरम्मत के लिए एक करोड़ रु. का प्रस्ताव पीडब्ल्यूडी ने तैयार कर लिया है.

लेकिन सबसे ज्यादा तेजी आई है 2006 में 184 करोड़ रु. की अनुमानित लागत से शुरू की गई पैरामेडिकल कॉलेज परियोजना के काम में. अखिलेश का फरमान है कि देरी बहुत हो चुकी, अब 10 जून तक काम निबटा लें. सैफई के 23 साल के युवा ब्लॉक प्रमुख और मुलायम सिंह के बड़े भाई के पौत्र तेजपाल यादव ने कहा, ''चाचा (अखिलेश) चाहते हैं कि अगले शिक्षा सत्र से यहां पढ़ाई शुरू हो और प्रदेश में पैरामेडिकल स्टाफ की नर्ई फौज तैयार हो.''

प्रदेश में इस समय 29,000 नर्स, 2,000 फार्मासिस्ट, 17,500 एक्स-रे टेक्नीशियन और 16,300 लैब टेक्नीशियन के पद खाली हैं. इसीलिए सैकड़ों मजदूर रात-दिन काम में जुटे हैं. 24 घंटे बिजली की सुविधा होने के बावजूद सैफई के अफसरों के लिए एसी मुहाल है. यादव परिवार के करीबी सुगर सिंह यादव बताते हैं, ''सैफई में पहले से ही कई सौ एकड़ में बना ग्रामीण आयुर्विज्ञान और अनुसंधान संस्थान चंबल के इस पिछड़े इलाके के लिए एम्स साबित हो रहा है. मध्य प्रदेश और राजस्थान तक से लोग इलाज कराने के लिए यहां आते हैं.''

अस्पतालों के साथ ही 'लायन सफारी' योजना भी चल पड़ी है. मुलायम सिंह ने 2005 में इटावा के पास चंबल और यमुना के बीच के बीहड़ में एशियाई शेरों को बसाने की बात सोची थी. लेकिन 2007 में उनकी सरकार चली गई और तब तक इस परियोजना पर कुछ काम नहीं हो पाया. वन विभाग के मुताबिक, अब एक बार फिर से इस परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए अध्ययन शुरू हो गया है. इटावा के मुख्य विकास अधिकारी अशोक चंद्र ने कहा, '' लंबित परियोजनाओं को तेजी से निबटाना हमारी प्राथमिकता है.'' अखिलेश तमाम घोषणाओं के साथ ही मैनपुरी से सैफई आने वाली सड़क को चार लेन से आठ लेन बनाने की घोषणा भी कर चुके हैं.

अखिलेश की इकलौती सैफई यात्रा ने यहां विकास कार्यों का एक्सिलरेटर दबा दिया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या विकास की यह गाड़ी इटावा से सैफई के रास्ते में पड़ने वाली घास-फूस की झेपड़ियों को पक्के मकानों में बदल पाएगी? यहां के स्टेडियम क्या एकाध अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी पैदा कर सकेंगे?