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बिन पानी दम तोड़तीं उम्मीदें

पानी की कमी से पैदा हो रहा रोजगार का संकट. लोगों को मजबूरन करना पड़ रहा पलायन.

अपडेटेड 12 जून , 2012

पानी के बिना जीवन की नाव मझधार में फंस कर रह जाती है. ऐसा ही कुछ इन दिनों बिहार में भी हो रहा है. नवादा जिले के विसियाइत के सुधीर यादव हर रोज 20 लीटर दूध की बिक्री करते थे, जिससे उन्हें 600 रु. की आमदनी हो जाती थी और उनके 17 सदस्यीय परिवार का चूल्हा जलता था.

झुलसा देने वाली गर्मी में सुधीर के घर के चूल्हे की आंच भी मद्धिम पड़ गई है. इसकी वजह गांव में पेयजल संकट के कारण आमदनी का जरिया रही चारों भैंसों को बेचना है. इस समस्या से निपटने के लिए सुधीर ने 20,000 रु. खर्च कर 175 फुट की बोरिंग भी करवाई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी. नतीजा, अब सुधीर के तीन भाइयों को मजदूरी के लिए परदेस जाना पड़ा है.

यही नहीं, उन्हें अपनी प्यास बुझने के लिए करीब एक किमी की दूरी पर स्थित कुएं से पानी लाना पड़ता है, जहां लंबी कतार लगी रहती है. सुधीर बताते हैं, ''गांव में दूध से ज्‍यादा पानी की कीमत है. गांव के लोग आपस में दूध तो ले-दे सकते हैं, लेकिन पानी नहीं.'' सुधीर अकेले शख्स नहीं हैं, जो ऐसे हालात में फंसे हुए हैं.

बिहार के नवादा जिले के मेसकौर ब्लॉक के विसियाइत के बालेश्वर महतो को भी पानी के अभाव में हर रोज 1,200 रु. का नुकसान हो रहा है. बालेश्वर रोजाना 40 लीटर दूध बेचते थे, लेकिन दो महीने से इस कमाई पर गाज गिर गई है. उनके तीन बेटे रोजगार की तलाश में घर से दूर चले गए हैं.

एक ग्रामीण मिथिलेश चक्रवर्ती बताते हैं, ''गांव से रोजाना तकरीबन 250 लीटर दूध की बिक्री होती थी. लेकिन पानी की कमी के कारण यह कारोबार ठप-सा हो गया है. पानी की कमी की भयावहता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पहले ही कैलाश महतो के घर में आग लग गई थी, पानी के अभाव में ग्रामीण मूक-दर्शक बने देखते रहे और घर जल कर राख हो गया. दरअसल, यह हालात भू-जल में तेजी से गिरावट से बने हैं. गांव के अधिकांश जल स्त्रोत, कुएं और हैंडपंप सूख चुके हैं.

विसियाइत अकव्ला गांव नहीं है, जहां पानी के लिए हाहाकार मचा है. मेसकौर ब्लॉक में दो दर्जन से ज्‍यादा ऐसे गांव हैं, जहां पानी की गंभीर समस्या है. मेसकौर ब्लॉक हेडक्वार्टर भी पानी की समस्या से अछूता नहीं है. मेसकौर पुलिस को एक किमी दूर से पानी लाना पड़ता है. वैसे तो थाने में पांच हैंडपंप हैं, लेकिन भू-जल स्तर में गिरावट से सभी बेकार हो गए हैं. पुलिस अधिकारी जगनारायण राम के मुताबिक, ''हाल बुरा है. पानी की कमी ने बेहाल कर रखा है.''

कौआकोल के ग्रामीण पशुओं को बेचते नहीं हैं. अकसर ऐसी समस्या से जूझ रहे ग्रामीण गर्मी शुरू होते ही बाढ़, बरहिया, बख्तियारपुर, मोकामा, और नेपाल के तराई के इलाकों में चले जाते हैं और बारिश होने के बाद लौटते हैं. कौआकोल के विश्वास विश्वकर्मा बताते हैं कि इस इलाके से हर साल करीब 20,000 पशुओं का पलायन होता है, जमुई जिले के खैरा को जोड़ दें तो यह संख्या 30,000 पहुंच जाएगी.

परेशानी यहीं खत्म नहीं होती. एक गांव है दुधपनिया. ग्रामीण मानते हैं कि यहां पानी का रंग दूध जैसा था, जिसके चलते गांव का नाम दुधपनिया है. लेकिन अब कुएं का गंदा पानी भी मुश्किल से मिल रहा है. नारदीगंज के आदमपुर में बरसात के दिनों में भी लोग नदी का पानी पीने को मजबूर हैं. हालांकि 1966-67 में देशव्यापी अकाल के समय लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 4,000 कुओं की खुदाई कराई थी, अब उनका अस्तित्व भी नहीं बचा है.

नवादा की समस्या बिहार में पेयजल की संकट की बानगी भर है, जहां मई में भू-जल स्तर 10.11 फुट नीचे चला गया है. लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, कैमूर में भू-जल का स्तर 21.3 फुट नीचे चला गया है. बाढ़ प्रभावित उत्तर बिहार के पूर्णिया, वैशाली, किशनगंज, सीतामढ़ी, सारण, गोपालगंज, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार, समस्तीपुर, मधुबनी, पूर्वी चंपारण, सहरसा, सुपौल और मधेपुरा में भी भूजल का स्तर काफी गिरा है.

राजधानी पटना में भी पानी की गंभीर समस्या है. पूर्वी पटना के भू-जल का लेवल 19.6 फुट नीचे चला गया है. पिछले ही दिनों पटना हाइकोर्ट के जस्टिस शिवकीर्ति सिंह और जस्टिस विकास जैन ने पटना में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए बिहार राज्‍य जल परिषद को आदेश दिया है.

बिहार सरकार ने पानी की समस्या से राहत देने के लिए बंद हैंडपंपों की मरम्मत और नए हैंडपंप लगाने का निर्देश दिया है. पीएचईडी मंत्री चंद्रमोहन राय बताते हैं, ''पेयजल समस्या से निपटने के लिए प्रत्येक ब्लॉक में ओवरसियर के नेतृत्व में टीम बनाई गई है. खराब स्थिति वाले इलाकों के लिए टैंकर से पानी की व्यवस्था की गई है.'' समस्या यहीं खत्म नहीं होती. अब ग्राउंड वाटर का विकास और बचाव बड़ी चुनौती है. सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड मिड-ईस्टर्न रिजन की अक्तूबर 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक, दो दशक में भू-जल का स्तर साढ़े सात फुट नीचे गिरा है.

राय कहते हैं कि भू-जल स्तर की स्थिति का अध्ययन करने के लिए हैदराबाद की एजेंसी को अधिकृत किया गया है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर इस दिशा में कदम उठाना आसान होगा. फिलहाल, भू-जल के रिचार्ज के लिए राज्‍य के 19 जिलों की पांच-पांच पंचायतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का काम शुरू किया गया है.

बहरहाल, राष्ट्रीय औसत का 17 फीसदी पानी बिहार में है. राष्ट्रीय मानक के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रति दिन कम-से-कम 40 लीटर पानी की उपलब्धता के लिए 250 लोगों पर पेयजल प्वांइट स्थापित किया जाना है. लेकिन इससे भी ज्‍यादा परेशानी भू-जल के तेजी से नीचे खिसकने से पैदा हो रही है. चिंता की बात यह है कि अभी पानी के अभाव में मवेशियों की बिक्री और पलायन शुरू हुआ है.

अगर यह उदासीनता कायम रही तो वह दिन दूर नहीं जब पानी के लिए बड़े स्तर पर इनसान भी पलायन करेंगे.