नरेंद्र मोदी ने आखिरकार 24 मई को चैन की सांस ली होगी क्योंकि उस रोज उनके सबसे कट्टर प्रतिद्वंद्वी संजय जोशी ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया. जोशी के दोबारा प्रवेश पर महीनों माथापच्ची चली थी, उसके बाद मोदी उन्हें पार्टी से बाहर निकलवाने पर अड़ गए थे. लेकिन जब उनका दांव नहीं चला और संघ की ओर से नितिन गडकरी को फिर से अध्यक्ष बनाने का फैसला हो गया, तो मोदी ने भी आखिरी पासा फेंक दिया.
सूत्रों के मुताबिक, मोदी ने जोशी को नहीं हटाने पर कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद से इस्तीफे की धमकी दे दी. मजबूरन गतिरोध तोड़ने को पार्टी कोर ग्रुप की बैठक और संघ से विचार-विमर्श के बाद बीच का रास्ता निकाला गया. इस प्रक्रिया में संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने अहम भूमिका निभाई और गडकरी ने खुद जोशी से बातचीत की, जिसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मोदी का आना सुनिश्चित हुआ.
मोदी ने गडकरी को दूसरा कार्यकाल दिए जाने के संविधान संशोधन पर भी विरोध जता दिया था, लेकिन जोशी के इस्तीफे की एवज में वे संशोधन के लिए सहमत हो गए. यह घटना गडकरी समेत संघ के भीतर मोदी विरोधी धड़े के लिए बड़ा झ्टका है, जिसने गुजरात के मुख्यमंत्री की दलीलों को ठुकराया और पिछले साल अगस्त में जोशी को पार्टी में लाकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की कमान सौंप दी थी.
इस प्रकरण से गडकरी और मोदी के रिश्तों में तल्खी पैदा हो गई थी और नौबत यहां तक आ पहुंची कि दोनों नेताओं के बीच औपचारिक आपसी संवाद भी बंद हो गया था. जोशी ने पार्टी अध्यक्ष गडकरी को भेजे इस्तीफे में उस दर्द को उड़ेलते हुए लिखा है, ''मैं संगठन का अनुशासित सिपाही हूं, जिसने सदैव व्यक्तिगत हित से ऊपर उठ सत्य निष्ठा और ध्येय निष्ठा रखना सीखा है.
उसी परंपरा के अनुरूप संगठन में सहज और सुगम व्यवस्था संचालन हेतु तथा गतिरोध समाप्ति को सुनिश्चित करने के लिए मैं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की आमंत्रित सदस्यता से इस्तीफे की पेशकश करता हूं.''
जोशी 2005 में एक सेक्स सीडी के चलते पार्टी से बाहर कर दिए गए थे. सीडी का खुलासा मुंबई में हुए पार्टी अधिवेशन के वक्त हुआ था और इस बार भी मुंबई उनके लिए भाग्यशाली साबित नहीं हुई.
हालांकि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''जोशी का इस्तीफा अस्थायी तौर पर ही संघर्ष विराम का काम करेगा क्योंकि उन्होंने सिर्फ राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दिया है, पार्टी से नहीं तथा संघ परिवार के भीतर मोदी विरोधी धड़ा उन्हें पार्टी से पूरी तरह निकाले जाने का विरोध कर सकता है.'' संघ-भाजपा ने भी मौके की नजाकत को देख मोदी के आगे घुटने टेके हैं. संघ के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''गुजरात चुनाव में हार संघ की विचारधारा की हार होगी. इसलिए फिलहाल न चाहते हुए भी कठोर फैसला लेना पड़ा है.''
जोशी की भाजपा में वापसी पर मोदी ने तलवार निकाल ली थी. रणनीतिक तौर पर उन्होंने सबसे पहले संघ के एक निचले पदाधिकारी के जरिए संघ के ही वरिष्ठ नेताओं तक अपनी शिकायत दर्ज कराई और फिर गडकरी और उनके समर्थकों के फोन उठाने बंद कर दिए. जोशी के मसले पर गडकरी और मोदी के बीच पहली दरार तब दिखी जब गडकरी, मोदी के सद्भावना कार्यक्रम में सितंबर में अहमदाबाद नहीं पहुंचे.
उस कार्यक्रम में भाजपा का तकरीबन समूचा नेतृत्व गुजरात की राजधानी पहुंचा था और राजग के भी नेता आए थे. गडकरी उस वक्त मुंबई में अपना वजन कम करने वाली सर्जरी की बात करके उसमें शामिल नहीं हुए.
इसके बाद मोदी ने भी पलटवार किया. उन्होंने नवरात्र के उपवास को अक्तूबर में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जाने से इनकार का बहाना बनाया था. लेकिन मोदी को जानने वाले राज्य भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, ''मोदी अपनी बड़ी हिस्सेदारी के लिए खेलते हैं और इसका आधार मजबूत रखते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि लंबी दौड़ में इसके नतीजे अच्छे आएंगे. जोशी वाले प्रकरण में इस रणनीति ने काम किया है.'' बहरहाल, मोदी ने जोशी विरोधी अपने पक्ष को कैसे मजबूत किया, इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है.
एक मध्यस्थ के जरिए मोदी ने पहले संघ और फिर भाजपा नेतृत्व तक यह कड़ा संदेश पहुंचाया कि न सिर्फ जोशी की सेक्स सीडी सही है बल्कि वे अच्छे से जानते हैं कि कैसे कुछ वरिष्ठ पार्टी नेता जोशी को बचाने के लिए फॉरेंसिक लैबोरेटरी से 'फर्जी प्रमाणपत्र' जुगाड़ लाए, जिसमें सीडी को नकली बताया गया.
उनके मध्यस्थ ने कथित तौर पर मोदी की ओर से संघ और भाजपा नेताओं से सवाल कियाः ''अगर मोदी ऐसे किसी सीडी कांड में पकड़े गए होते तो क्या आप लोग उन्हें बख्श देते? क्या संघ और भाजपा नेतृत्व को संघ परिवार में सभी के लिए एक समान मापदंड का प्रयोग नहीं करना चाहिए?'' संघ और भाजपा को मोदी की ओर से अघोषित संकव्त बिल्कुल साफ था, ''क्या आप जोशी को इसलिए बचाने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वे गडकरी और संघ के अन्य नेताओं की तरह विदर्भ के हैं?''
संघ के कुछ नेता मोदी की इस दलील से सहमत थे कि अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मापदंड नहीं हो सकते. वैसे, मोदी के कड़े संदेश का जवाब, संघ के भीतर मोदी विरोधी धड़े से भी कड़ा ही आया था, जिसमें एम.जी. वैद्य, मनमोहन वैद्य, मधुभाई कुलकर्णी और विहिप सुप्रीमो डॉ. प्रवीण तोगड़िया शामिल हैं.
मोदी विरोधी समूह ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि सीडी नकली थी और यह जोशी के राजनैतिक भविष्य को खत्म करने की एक साजिश थी और ऐसी ''खुराफात करने वालों'' को कठोर संदेश देने के लिए ही जोशी को पूरी तरह से उनका खोया स्थान वापस दिलवाना होगा. हालांकि मोदी लगातार सीडी कांड में अपनी भूमिका को नकारते रहे और यही सबूत देने में लगे रहे कि सीडी नकली नहीं थी.
मोदी को अपना पक्ष मजबूत करने का एक और मौका तब मिला, जब उत्तर प्रदेश में भाजपा ने मुंह की खाई. इससे न सिर्फ जोशी बल्कि गडकरी की क्षमता पर भी सवाल खड़ा हुआ. हालांकि मोदी के प्रचार में नहीं जाने की वजह से उत्तर प्रदेश में हार की दलील कई नेताओं के गले नहीं उतरती. उनका मानना है कि मोदी तो पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में भी प्रचार करने नहीं गए.
सवाल यह भी उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश में जोशी वजह थे, तो मोदी बाकी राज्यों में क्यों नहीं गए? हालांकि उत्तर प्रदेश की हार के बाद राज्यसभा के लिए टिकट बांटने में मनमर्जी ने गडकरी के खिलाफ एक माहौल बना दिया. गडकरी की कार्यशैली पर आडवाणी और सुषमा स्वराज ने आपत्ति जताई. लेकिन इस पूरे विवाद में तीसरे पक्ष के रूप में संकट को टालने में अरुण जेटली की भूमिका अहम रही. जेटली को गडकरी और मोदी दोनों का करीबी माना जाता है और उन्होंने ही जोशी के मसले पर बार-बार गडकरी को कथित तौर पर राजी किया.
मोदी-जोशी की रंजिश नई नहीं है, इसकी शुरुआत नब्बे के दशक के मध्य में हुई थी जब जोशी को मोदी के तहत प्रशिक्षण के लिए लाया गया था. उस वक्त मोदी गुजरात भाजपा के संगठन सचिव थे. मोदी के समर्थकों की मानें तो जोशी के कथित दोहरेपन से मोदी आजिज आ चुके थे जो मोदी के सामने तो सीधे बने रहते थे लेकिन पीठ पीछे संघ के कुछ बड़े नेताओं से उनकी शिकायत करते थे. उधर, जोशी के समर्थक ठीक यही आरोप मोदी पर लगाते हैं.
बहरहाल, इस संकट का समाधान भाजपा के लिए बड़ी राहत लेकर आया है. गडकरी-मोदी के बीच पिछले करीब आठ महीने से बात तक नहीं हुई थी. जाहिर है, पार्र्टी के सामने यह संकट बड़ा था, जिस पर फौरी विराम जरूरी था. हालांकि इस विवाद का अंतिम समाधान अभी बाकी है और विधानसभा चुनाव के बाद ही इसका पटाक्षेप संभव है.
-साथ में किरण तारे मुंबई से