8 अगस्त को उत्तराखंड की महान वीरांगना तीलू रौतेली का जन्मदिवस है. इस अवसर पर दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक कई कार्यक्रम हो रहे हैं. इसी कड़ी में तीलू की जन्मभूमि तल्ला गुराड, परगना चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल में तीलू रौतेली का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. चौंदकोट गढ़वाल के गोर्ला रौत थोकदार और गढ़वाल रियासत के राजा फतेहशाह के सेनापति भूप्पू रावत की बेटी थी तीलू. तीलू का जन्म सन 1661 में हुआ था. तीलू के दो बड़े भाई थे पत्वा और भक्तू. तीलू की सगाई बाल्यकाल में ही ईड़ गांव के सिपाही नेगी भवानी सिंह के साथ कर दी गई थी. बेला और देवकी की शादी तीलू के गांव गुराड में हुई थी. जो तीलू की हमउम्र थी.
इस बार तीलू की जयंती मनाने में अरण्य रिट्रीट बड़ी भूमिका निभा रहा है. उत्तराखंड में अरण्य रिट्रीट पहला रिजॉर्ट है. अरण्य रिट्रीट के संस्थापक उदय रावत बताते हैं 8 से 18 अगस्त तक तीलू रौतेली का जन्म समारोह मनाया जायेगा. इसके तहत गुराड और मलेथा गांव में बांज, हैडा-बहेड़ा और आंवले के 2000 पेड़ लगाए जायेंगे. आखिरी दिन 18 अगस्त को मशहूर रंगकर्मी और लेखिका वसुंधरा नेगी का नाटक 'तीलू रौतेली' नाटक खेला जायेगा.
कौन थी तीलू
चौंदकोट गढ़वाल के गोर्ला रौत थोकदार और गढ़वाल रियासत के राजा फतेहशाह के सेनापति भूप्पू रावत की बेटी थी तीलू. तीलू के दो बड़े भाई थे पत्वा और भक्तू. तीलू की सगाई बाल्यकाल में ही ईड़ गांव के सिपाही नेगी भवानी सिंह के साथ कर दी गई थी. बेला और देवकी की शादी तीलू के गांव गुराड में हुई थी. जो तीलू की हमउम्र थी. चौंदकोट में पति की बड़ी बहिन को 'रौतेली' संबोधित किया जाता है. बेला और देवकी भी तीलू को 'तीलू रौतेली' कहकर बुलाती थी. वीर भाईओं की छोटी बहिन तीलू बचपन से तलवार-ढाल के साथ खेलकर बड़ी हो रही थी. बचपन में ही तीलू ने अपने लिए सबसे सुंदर घोड़ी 'बिंदुली' का चयन कर लिया था. 15 वर्ष की होते-होते गुरु शिबू पोखरियाल ने तीलू को घुड़सवारी और तलवारबाजी के सारे गुर सिखा दिए थे.
कत्यूरों का आक्रमण
जब भी गढ़वाल में फसल काटी जाती थी वैसे ही कुमाऊं से कत्यूर सैनिक लूटपाट करने आ जाते थे. फसल के साथ-साथ ये अन्य सामान और बकरियां तक उठाकर ले जाते थे. ऐसे ही एक आक्रमण में तीलू के पिता, दोनों भाई और मंगेतर शहीद हो गए थे. इस भारी क्षति से तीलू की मां मैणा देवी को बहुत दुख हुआ और उन्होंने तीलू को आदेश दिया कि वह नई सेना गठित करके कत्यूरों पर चढ़ाई करे. इसके बाद तीलू ने फौज गठित की, तब उनकी उम्र महज 15 साल की थी. लगातार 7 वर्षों तक बड़ी चतुराई से तीलू ने रणनीति बनाकर कत्यूरों का सर्वनाश कर दिया. बेला और देवकी ने भी तीलू के साथ लड़ाई लड़ी. कुमाऊं में जहां बेला शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और देवकी के शहीद स्थल को देघाट कहते हैं. अंत में जब तीलू लड़ाई जीतकर अपने गांव गुराड वापस आ रही थी तो रात को पूर्वी नयार में स्नान करते समय कत्यूर सैनिक रामू रजवाड़ ने धोखे से उनकी हत्या कर दी.
'तीलू रौतेली' नाटक का मंचन
शनिवार 18 अगस्त को तीलू की जन्मस्थली तल्ला गुराड के नंदा देवी के ख्यात में 'तीलू रौतेली' नाटक का मंचन किया जाएगा. इस नाटक का निर्देशन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और लेखिका वसुंधरा नेगी कर रही हैं. इससे पूर्व इस नाटक का मंचन देहरादून के टाउन हॉल में हो चुका है. अब खेले जा रहे इस नाटक की खासियत ये है कि निर्देशक ने इसके सभी कलाकारों का चयन गांव से ही किया है.
हेरिटेज विलेज की मांग
गुराड गांव में जन्मी और व्यवसायी रंजना रावत कहती हैं, "सरकार को शीघ्र गुराड गांव को हेरिटेज विलेज घोषित करना चाहिए. देखरेख के अभाव में तीलू रौतेली की हवेली क्षतिग्रष्त हो रही है." इससे पूर्व भी ग्रामीण सरकार का ध्यान इस ओर खींच चुके हैं. तीलू रौतेली की 15 किलो की ऐतिहासिक तलवार पहले ही चोरी हो चुकी है. संस्कृति और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के समक्ष ग्रामीण अपनी मांग रख चुके हैं.
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