उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में अब एक साल से कुछ ही ज्यादा समय बाकी रह गया है. ऐसे में गन्ना के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसान राजनीति भी तेज होने की भूमिका बननी शुरू हो गई है. कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन से प्रदेश सरकार पर गन्ना मूल्य बढ़ाने का दबाव बनाने की रणनीति किसान संगठनों ने बनाई है.
उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य है. देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद एवं उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद उत्तर प्रदेश में होता है. देश में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं. करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं. यहां का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है. प्रदेश में गन्ना किसानों की बड़ी संख्या होने के नाते राजनीतिक रूप से यह बेहद संवेदनशील फसल है. वर्ष 2017 में यूपी में भाजपा सरकार बनने के बाद गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी. इसमें सामान्य प्रजाति के गन्ने का मूल्य 315 रुपये और अग्रिम प्रजाति का मूल्य 325 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था. इसके बाद से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है. अब जबकि अगला विधानसभा चुनाव नजदीक है किसान संगठनों ने प्रदेश सरकार पर गन्ना का दाम नहीं बढ़ाने पर आंदोलन को तेज करने का ऐलान किया है.
गन्ना पेराई सत्र शुरू हुए करीब एक माह हो चुका हैं लेकिन प्रदेश सरकार ने अभी तक गन्ना मूल्य घोषित नहीं किया है. पश्चिमी यूपी में 55 से ज्यादा चीनी मिलें हैं और गन्ना की सियासत का मुख्य आधार है. कृषि कानून और गन्ना भुगतान को लेकर भारतीय किसान यूनियन ने 25 सितंबर को प्रदेश भर में आंदोलन किया था. मेरठ मंडल में किसानों का करीब 1,500 करोड़ रुपए भुगतान बकाया है. पेराई सत्र से पहले से ही किसान पूर्ण गन्ना भुगतान की मांग कर रहे हैं. प्रदेश सरकार ने भुगतान को तेज करने के लिए चीनी मिलों से पूरी जानकारी मांगी है. गन्ने की सियासत पर पकड़ बनाने के लिए ही यूपी में भाजपा की सरकार बनने पर गन्ना बेल्ट के सुरेश राणा गन्ना विकास विभाग के मंत्री बनाए गए थे. वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में गन्ना किसानों का समर्थन पाने के लिए केंद्र सरकार ने भी राहत पैकेज का ऐलान किया था. योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी चीनी मिलों से 14 दिन के भीतर किसानों को भुगतान करने का वादा किया था लेकिन यह पूरी तरह से अमल में नहीं लाया जा सका. गन्ना विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, सपा सरकार ने पांच साल में 95 हजार करोड़ रुपए का भुगतान अर्थात 19 हजार करोड़ रुपए का भुगतान प्रतिवर्ष किसानों को किया था. दूसरी ओर किसानों को 1.12 लाख करोड़ रुपए यानी औसतन 37 हजार करोड़ प्रतिवर्ष दिए जा चुके हैं. लेकिन प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने वर्ष 2022 की विधानसभा चुनाव से पहले गन्ना किसानों को साधने की एक बड़ी चुनौती आ गई है. गन्ना मूल्य बढ़ोतरी के मुद्दे को हवा देकर विपक्षी पार्टियां यूपी में किसानों में नाराजगी भरना चाहती हैं.
गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) घोषित करने से पहले गन्ना आयुक्त और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक हो चुकी है. इन बैठकों में चीनी मिल और किसान प्रतिनिधि अपना पक्ष रख चुके हैं. मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी की अध्यता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 27 नवंबर को हुई राज्य परामर्शी मूल्य निर्धारण समिति की बैठक में किसानों ने 400 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना मूल्य घोषित करने की मांग की. मुख्य सचिव ने विभिन्न जिलों के एनआइसी कार्यालय में बैठे किसान प्रतिनिधियों से वार्ता की. बस्ती मंडल से अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि गन्ना उत्पादन लागत 352 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है, इसलिए गन्ना मूल्य 400 रुपये क्विंटल की जाए. उन्होंने चीनी मिलों का अंशदान उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) का तीन प्रतिशत देने की भी मांग की. यूपी शुगर मिल्स एसोसिएशन के महामंत्री दीपक गुप्तारा ने कहा कि पिछले दो साल की तुलना में चीनी परता कम है. चीनी के दाम भी नहीं बढ़ रहे हैं और उठान भी नहीं हो रहा है. इन हालातों के चलते शुगर इंडस्ट्री पूंजी के संकट से गुजर रही है. गुप्तारा ने गत वर्ष के गन्ना मूल्य में कोई वृद्धि नहीं करने का सुझाव देते हुए सरकार से 15 रुपये प्रति क्विंटल सब्सिडी देने की मांग की.
कृषि कानूनों के विरोध में हरियाणा और पंजाब के किसानों के समर्थन में पश्चिमी यूपी में गन्ना बेल्ट के किसान भी आ गए हैं. इसके चलते प्रदेश सरकार पर इस साल गन्ना रेट में बढ़ोतरी करने का दबाव भी बढ़ गया है. भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बताते हैं, “प्रदेश में पिछले दो साल से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है. किसान की लागत लगातार बढ़ रही है. कोरोना काल में किसानों ने ही देश की जीडीपी को बचाकर रखा है, लेकिन सरकार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने में लगी है. पिछले साल का गन्ना भुगतान भी नहीं हुआ है. इससे किसान परेशान है. अगर गन्ना रेट नहीं बढ़ा तो किसान सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे.” सूत्रों के मुताबिक, सरकार एसएपी में 10 से 15 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर सकती है. हालांकि प्रदेश सरकार अत्याधुनिक नई मिलें, पुरानी मिलों की बढ़ी क्षमता, खांडसारी इकाईयां और एथनाल उत्पादन के क्षेत्र में किसे जा रहे प्रयासों को तेज करके किसानों के बीच समर्थन पाने की रणनीति बनाई है. गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा कहते हैं, “उत्तर प्रदेश आज चीनी, एथनाल उत्पादन एवं गन्ना रकबा में महाराष्ट्र को पीछे छोड़ चुका है. किसानों को गुजरे सत्र का 80 फीसद से अधिक भुगतान कर दिया गया है. 35.4 हजार करोड़ में से 2,800 करोड़ से अधिक का भुगतान हो गया है. बाकी भुगतान भी जल्द कर दिया जाएगा. पूर्व की बसपा सरकार ने 21 चीनी मिलों को बेचा, सपा ने 10 मिलों को बंद किया जबकि योगी सरकार ने दो दर्जन से अधिक मिलों का कायाकल्प किया है.”
इनके जरिए गन्ना किसानों को लुभाएगी योगी सरकार
#चीनी मिलों का आधुनिकीकरण: योगी सरकार ने सबसे ज्यादा जोर पुरानी मिलों के आधुनिकीकरण और नयी मिलों की स्थापना पर दिया. इस क्रम में 11 मिलों की क्षमता बढ़ायी गयी और गोरखपुर के पिपराइच, बस्ती के मुंडेरा और बागपत के रमाला में अत्याधुनिक और अधिक क्षमता की नई मिलें लगायी गईं.
#खांडसारी इकाईयां: स्थानीय स्तर पर गन्ने की पेराई हो इसके लिए 25 साल बाद पहली बार किसी सरकार ने 100 घंटे के अंदर खांडसारी इकाईयों को ऑनलाइन लाइसेंस जारी करने की व्यवस्था की. इसके दायरे में पहले से चल रही इकाईयां भी थीं. सरकार के अनुसार मौजूदा समय में 105 इकाईयों को लाइसेंस निर्गत किया जा चुका है. इकाईयों को लाइसेंस मिलने से पेराई क्षमता में 27850 टीडीएस की वृद्धि हुई है
#गुड़ महोत्सव: लोग गुड़ के गुण और स्वाद को जानें इसके लिए सरकार ने मुजफ्फरनगर में गुड़ महोत्सव का आयोजन किया. प्रसंस्करण के जरिए गुड़ को और उपयोगी बनाया जाय इसके लिए सरकार ने गुड़ को मुजफ्फरनगर और अयोध्या का एक जिला, एक उत्पाद घोषित कर रखा है.
#एथनॉल उत्पादन: योगी सरकार एथनॉल के जरिए गन्ने को ग्रीन गोल्ड बनाने का प्रयास कर रही है. सरकार के प्रयास से अब उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक (126.10 करोड़ लीटर वार्षिक) आपूर्ति करने वाला राज्य बन चुका है. कुल 50 आसवानियां एथनॉल बना रही हैं. पिछले वर्ष दो मिलें हैवी मोलासिस से एथनॉल बना रही थीं. इस साल इनकी संख्या बढक़र 20 हो गयी.
#सैनिटाइजर का रिकार्ड उत्पादन: योगी सरकार ने कोरोना काल में 9 महीने की अवधि के दौरान सैनिटाइजर का 177 लाख लीटर उत्पादन कर राजस्व वृद्धि का एक नया रिकॉर्ड बनाया. राज्य की चीनी मिलों और छोटी इकाइयों से 24 मार्च से 15 नवंबर 2020 तक 177 लाख लीटर सैनिटाइजर का रिकॉर्ड मात्रा में उत्पादन कर, 137 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया. इस तरह गन्ना किसानों को रोजगार और मुनाफे के नए आयाम से भी जोड़ा गया. आबकारी विभाग के मुताबिक, यूपी के बाहर 78.38 लाख लीटर सैनिटाइजर की बिक्री हुई है. वहीं यूपी में कुल 87.01 लाख लीटर सैनिटाइजर बेचा गया है. सैनिटाइजर की कुल बिक्री 165.39 लाख लीटर हुई है.
#रिकॉर्ड चीनी रिकवरी: प्रदेश सरकार ने चीनी की रिकवरी (11.46 फीसद) के क्षेत्र में भी रिकॉर्ड बनाया. गन्ने की ढ़ुलाई का मानक किमी की बजाय प्रति क्विंटल किया गया. पहले सरकार 8.75 रुपये प्रति किमी की दर से भुगतान करती थी, इसे बदलकर 42 पैसे प्रति क्विंटल कर दिया गया.
#माफियाओं पर नकेल: फर्जी बांड गन्ना माफियाओं का सबसे प्रभावी हथियार था. योगी सरकार ने दो लाख से अधिक फर्जी बांड रद्द कर इन माफियाओं की कमर तोड़ दी. पारदर्शिता के लिए गन्ना किसानों का पंजीकरण शुरू किया गया. इसी क्रम में गन्ना ऐप भी लॉन्च किया गया.
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