फरवरी की पहली तारीख से सरकार की ओर से ई-कॉमर्स में एफडीआइ के नियमों में किए गए बदलाव लागू हो गए. नियमों में बदलाव का मुख्य उद्देश्य ई कॉमर्स कंपनियों की ओर से दिए जा रहे बड़े डिस्काउंट पर नजर रखना है. साथ ही नए नियमों के लागू होने के बाद कोई भी कंपनी किसी ब्रैंड के साथ एक्सक्लुसिव डील करके अपने प्लैटफॉर्म पर सामान नहीं बेच सकती. इसके अलावा प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने और बाजार में ज्यादा मौके पैदा हों इसके किसी एक वेंडर से अधिकतम 25 फीसदी सामान खरीदने की शर्त भी ई कॉमर्स कंपनियों को लागू कर दी गई है.
नए नियमों को लागू करने की तारीख आगे बढ़ाने को लेकर ई-कॉमर्स कंपनियों ने सरकार से अर्जी लगाई, लेकिन चुनाव से पहले कोई जोखिम न लेते हुए सरकार ने इसमें कोई राहत नहीं दी. तारीख आगे न बढ़ाए जाने का देश के व्यापारियों ने स्वागत किया. लेकिन इस बीच बड़ा सवाल यह है कि देश में तेजी से बढ़ते इस ई-कॉमर्स मार्केट पर नए नियमों का क्या असर होगा? साथ ही इससे किसे फायदा और किसे नुकसान होगा?
खत्म होंगे बड़े डिस्काउंट?
मार्केट शेयर और जीएमवी (ग्रॉस मर्केन्डाइज वैल्यु) बढ़ाने के लिए ग्राहकों को ई कॉमर्स कंपनियां बड़े कैशबैक और डिस्काउंट की पेशकश करती थी. लेकिन नए नियमों के बाद आकर्षक डील्स पर कुछ ब्रेक लग सकता है. ऐसे में ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले ग्राहकों को आने वाले दिनों में त्यौहारों पर मिलने वाले बड़े ऑफर्स नदारद रह सकते हैं.
वॉलमार्ट, अमेजन जैसी कंपनियां इससे सीधे तौर पर प्रभावित होंगी. देश में तेजी से बढ़ते ऑनलाइन शॉपिंग के चलन का बड़ा कारण यह था कि ऑनलाइन ग्राहकों को अच्छे ऑफर्स मिलते थे. अब अगर अच्छे ऑफर्स नहीं मिलेंगे तो निश्चित तौर पर इन कंपनियों की बिक्री में ग्रोथ की रफ्तार मंद पड़ सकती है.
छोटी कंपनियां जो किसी प्लैटफॉर्म पर अपना सामान बेचती थीं उन्हें अपनी क्षमता बढ़ाने पर खर्च करना होगा क्योंकि 25 फीसदी से ज्यादा माल किसी एक वेंडर से न लेने की शर्त उस कंपनी की बिक्री को प्रभावित कर सकती है.
भारतीय कंपनियों और ऑफलाइन बाजार को इससे फायदा होगा. क्योंकि कीमत में बहुत अंतर न होने पर ग्राहक बाजार का रुख कर सकते हैं.
शॉपिंग के बदलते ट्रेंड में सरकार की यह कोशिश कितना असर दिखाती है इसका सही अंदाजा आने वाले त्यौहारों पर ई कॉमर्स कंपनियों की ओर से होने वाली बिलियन डे सेल जैसे मौकों पर मिलने वाले रिस्पॉन्स से पता चलेगा.
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