उत्तर बिहार का मुजफ्फरपुर जिला एक खास बीमारी AES (चमकी बुखार) की चपेट में है. जिले में खतरनाक रूप धारण कर चुकी इस बीमारी से अब तक 14 मासूम काल के गाल में समा चुके हैं, जबकि 38 बच्चों का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है. स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार पिछले 24 घंटों में 5 बच्चों की मौत हुई है. चिकित्सकों ने परिजनों के बच्चों का विशेष ख्याल रखने की अपील करते हुए दिन में 2 से 3 बार स्नान कराने की सलाह दी है.
मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक सुनील शाही ने कहा कि अस्पताल में भर्ती 38 बच्चों में इस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं. वहीं इन लक्षण वाले 14 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस बीमारी के संबंध में शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर गोपाल सहनी ने बताया कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को पहले तेज बुखार और शरीर में ऐंठन होती है और फिर वे बेहोश हो जाते हैं. बीमारी के कारणों को बताते हुए डॉ सहनी ने कहा कि इसका कारण अत्यधिक गर्मी के साथ-साथ ह्यूमिडिटी का लगातार 50 फीसदी से अधिक रहना है. उन्होंने कहा कि इस बीमारी का अटैक अधिकतर सुबह के समय ही होता है. डॉक्टर सहनी ने कहा कि इस जानलेवा बीमारी से बचाव के लिए परिजनों को अपने बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने सलाह दी कि बच्चों में पानी की कमी न होने दें. डॉक्टर गोपाल ने कहा कि बच्चे को भूखा कभी न छोड़ें.
सिविल सर्जन एसपी सिंह ने कहा कि अधिकांश बच्चों में हाइपोग्लाइसीमिया यानी अचानक शुगर की कमी की पुष्टि हो रही है. उन्होंने कहा कि चमकी बुखार के कहर को देखते हुए जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को हाई अलर्ट पर रखा गया है. चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए समुचित व्यवस्था की गई है. उन्होंने लोगों से बच्चों को गर्मी से बचाने के साथ ही समय-समय पर तरल पदार्थों का सेवन कराते रहने की अपील की है.
चपेट में आ रहे 15 वर्ष तक के बच्चे
इस बीमारी के शिकार आम तौर पर गरीब परिवारों के बच्चे ही हो रहे हैं. 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और मृतक बच्चों में से अधिकांश की आयु 1 से 7 वर्ष के बीच है. गौरतलब है कि पूर्व के वर्षो में दिल्ली के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के विशेषज्ञों की टीम और पुणे के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की टीम भी यहां इस बीमारी का अध्ययन कर चुकी है, लेकिन इन दोनों संस्थाओं ने इस बीमारी का पुख्ता निदान नहीं बताया है. लिहाजा प्रत्येक वर्ष दर्जनों मासूमों की जान जा रही है.