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बिहार में अबकी बार 4 vs 4, 2014 से अलग बन रहे हैं समीकरण

बिहारी में 2019 का सियासी संग्राम काफी दिलचस्प होने जा रहा है. एक तरह बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में चार दल शामिल हैं. वहीं मोदी को मात देने के लिए महागठबंधन के तहत विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं. ऐसे  में चार बनाम चार की लड़ाई होने की संभावना है.

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नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

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2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में दो दलों के नहीं बल्कि दो गठबंधनों के बीच मुकाबला होने की संभावना है. 2014 के चुनावी मुकाबले से अलग इस बार 4 बनाम 4 के समीकरण उभर रहे हैं जिससे सियासी संग्राम रोचक होने के हालात दिख रहे हैं. एक तरफ जहां महागठबंधन मोदी को मात देने के लिए एकजुट हो रहा है.  वहीं, विपक्षी एकता की काट के लिए एनडीए भी अपना खेमा मजबूत करने में जुट गया है.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए में बिहार की सियासी रणभूमि में चार पार्टियां एक साथ हैं. इनमें बीजेपी, जेडीयू, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी शामिल हैं.

महागठबंधन में फिलहाल आरजेडी, कांग्रेस, लोकतांत्रिक जनता दल और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल हैं. तारिक अनवर के इस्तीफे के बाद राज्य में एनसीपी की चुनावी संभावना खत्म हो गई है. बीते लोकसभा चुनाव में एनसीपी भी यूपीए में शामिल थी. इस तरह फिलहाल चार पार्टियां प्रमुख हैं. जबकि भाकपा माले, सीपीआई, सीपीएम, सपा और बसपा का भी तय नहीं है.

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बिहार में एनडीए 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे के फॉर्मूले को तकरीबन अंतिम रूप दे चुका है. मंगलावर को पितृ पक्ष खत्म होने के बाद सीट बंटवारे की घोषणा किसी भी दिन की जा सकती है. नीतीश कुमार ने सितंबर में प्रदेश कार्यकारी समिति की बैठक में इस बात का संकेत दिया था कि उनकी पार्टी बीजेपी के साथ सीट बंटवारे के सम्मानजनक समझौते पर पहुंच चुकी है.

बता दें कि अभी बीजेपी, एलजेपी और आरएलएसपी के पास क्रमश: 22, 6 और 3 सीटें हैं. जेडीयू 2014 लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा नहीं थी. राज्य के बदले समीकरण के चलते बीजेपी बिहार में नीतीश कुमार का किसी भी सूरत में साथ नहीं छोड़ना चाहती है.

सूत्रों की मानें तो इसी के मद्देनजर बीजेपी ने अपनी कुछ जीती हुईं सीटें जेडीयू के लिए छोड़ने का मन भी बना लिया है. इसके अलावा सहयोगी दल एलजेपी भी अपनी एक सीट छोड़ सकती है, लेकिन आरएलएसपी के खाते में फिर तीन सीटें मिलना करीब तय है.

जेडीयू जमीनी स्तर पर अपना आधार मजबूत करने पर फोकस करना शुरू चुकी है. जेडीयू पिछड़े वर्ग की अधिकतर जातियों को संगठित करने की कोशिश के अलावा अनुसूचित जाति के अपने कार्यकर्ताओं के साथ जिला स्तर की बैठक करने में जुटी है.

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सूत्रों की मानें तो बिहार में महागठबंधन में शामिल दलों के बीच सींट बंटवारे को लेकर फॉर्मूला तय है. राज्य की आधा से ज्यादा यानी 20 से 25 सीटें आरजेडी के खाते में जा सकती हैं. इसके अलावा करीब 10 सीटों पर कांग्रेस लड़ सकती है. जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस 12 सीटों पर लड़ी थी.

शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल के लिए दो से तीन सीटों का प्रस्ताव है. शरद के लिए मधेपुरा और उदय नारायण चौधरी के लिए जमुई सीट के अलावा झंझारपुर की सीट भी उनके खाते में जा सकती है. इसके अलावा चौथे पार्टनर जीतनराम मांझी के लिए गया की सीट आरक्षित है. इसके अलावा एक अन्य सीट मांझी की पार्टी हम के नेता डा. महाचंद्र प्रसाद सिंह को दी जा सकती है.

हालांकि आरजेडी ने केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को महागठबंधन में शामिल कराने के जुगत में है. ऐसे में अगर आरएलएसपी एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन का हिस्सा बनती है तो फिर आरजेडी अपने कोटे से चार-पांच सीटें दे सकती है.

इनमें से एक झारखंड की भी सीट हो सकती है. पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि चतरा से चुनाव लड़ना चाहते हैं. आरजेडी ने अगले लोकसभा चुनाव में एनडीए को मात देने का मुख्य लक्ष्य बनाया है, लेकिन इस शर्त के साथ कि महागठबंधन के उम्मीदवार कम से कम 20 सीटों पर जीत दर्ज कराएं.

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