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NDA Vs महागठबंधन: बिहार की सियासत में कौन किस पर पड़ेगा भारी?

2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की राजनीति में नए समीकरण सामने आए हैं. एक तरफ महागठबंधन है, जिसके साथ कांग्रेस और आरजेडी सहित पांच दल हैं. वहीं बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी साथ हैं. इस तरह से दोनों गठबंधनों के पास जातीय समीकरण का बेहतर तालमेल है.

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उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन का हिस्सा बने (फोटो-twitter)
उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन का हिस्सा बने (फोटो-twitter)

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बिहार की सियासत में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए नई इबारत लिखी जा रही है. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से नाता तोड़कर अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं. इस तरह एक तरफ महागठंबन तो दूसरी तरफ एनडीए का कुनबा है, जिनके बीच 2019 की सियासी जंग की बिसात बिछाई जा रही. ऐसे में दोनों गठबंधन जातीय और राजनीतिक समीकरण के मामले में एक- दूसरे से कम नजर नहीं आ रहे है.

महागठबंधन में सीट का फॉर्मूला

आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा बिहार में महागठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं. कुशवाहा के एंट्री के बाद सूबे में महागठबंधन के बीच की सीट के फॉर्मूला तय हो गया है. माना जा रहा है कि बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 8-12 सीटें, आरजेडी को 18-20 सीटें, आरएलएसपी को 4-5 सीटें, HAM को 1-2 सीटें और CPM-CPI को एक सीट मिल सकती है. इसके अलावा शरद यादव की एलजेडी को 1-2 सीटें मिल सकती हैं.

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एनडीए में सीट शेयरिंग

वहीं, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से कुशवाहा के अलग होने के बाद अब एलजेपी के सुर बदले हुए नजर आ रहे थे. तीन दिनों के मंथन के बाद पासवान ने शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की है. इसके बाद उनके तेवर नरम हुए हैं.

बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में एनडीए के तीन दलों के बीच सीट बंटवारे का एक फॉर्मूला बना है. हालांकि इस पर अंतिम फैसला होना बाकी है. इसके तहत 17 बीजेपी, 17 जेडीयू और बाकी बची 6 सीटों पर रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी को मिल सकती है. जबकि 2014 के चुनाव में एलजेपी कुल सात सीटों पर चुनाव लड़ी थी और छह पर उसे जीत मिली थी.

महागठबंधन-2 का वोट शेयर

2014 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से महागठबंधन में शामिल दलों की वोट शेयर को देखें तो आरजेडी 20 फीसदी के साथ 4 सीट, कांग्रेस 8.40 फीसदी के साथ 2 सीटें, एनसीपी 1.2 फीसदी के साथ 1 सीट और आरएलएसपी 3 फीसदी के साथ 3 सीटें हासिल की थी. इस तरह से कुल वोट शेयर 32.6 फीसदी होता है.

वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से महागठबंधन का वोट शेयर देखें तो आरजेडी को 19.6 फीसदी, कांग्रेस को 6.5 फीसदी, हम को 2.3 फीसदी और सीपीआई 1.7 फीसदी वोट मिले थे. इस तरह से 30 फीसदी के करीब वोट मिला था.

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एनडीए का वोटर शेयर

2014 के चुनाव में बीजेपी को 29.40 वोट शेयर के साथ 22 सीटें और एलजेपी को 6.4 फीसदी वोट के साथ 6 सीटें  मिली थीं. जेडीयू को 15.80 फीसदी वोट के साथ 2 सीटें मिली थीं. इस तरह एनडीए का कुल वोट शेयर 51 फीसदी के करीब है.

वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर देखें तो बीजेपी को 23.6 फीसदी, एलजेपी को 4.8 और जेडीयू को 16.7 फीसदी वोट मिले थे. इस तरह से यह कुल 45 फीसदी वोट होता है.

नया समीकरण

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में विपक्ष दल का पूरी तरह से सफाया हो गया था. जबकि बीजेपी जेडीयू से अलग होकर चुनावी मैदान में उतरी थी. इस बार के सियासी जंग में दोनों एक साथ हैं. हालांकि, इस बार एनडीए के बिहार में पुराने सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन की गोद में बैठे हुए नजर आ रहे हैं.

दरअसल, कुशवाहा के महागठबंधन का हिस्सा बनने के बाद उसकी राजनीतिक ताकत में इजाफा होना लाजमी है. मोदी सरकार में कुशवाहा की हैसियत भले राज्य मंत्री की रही हो, लेकिन बिहार की सियासत में पिछले कुछ सालों में जातिगत राजनीति में वो एक ताकत के तौर पर उभर कर सामने आए हैं.

कुशवाहा समाज की ताकत

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2014 में कुशवाहा की पार्टी ने 3 सीटें जीती थीं. बिहार में कुशवाहा समाज की आबादी 6 से 7 फीसदी वोटर है. बिहार की 63 विधानसभा सीटों पर कुशवाहा समाज के वोटर्स की संख्या 30 हजार से ज्यादा है. जबकि कुर्मी समाज की आबादी 3 फीसदी है. मुख्यमंत्री नीतीश इसी समाज से आते हैं. इस तरह से  कुशवाहा समाज की आबादी नीतीश के कुर्मी वोट बैंक से दोगुना है.

कुर्मी और कुशवाहा समाज का बड़ा वोटबैक लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ जुड़ा रहा है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर जिस तरह अपनी पार्टी को तोड़ने और कमजोर करने का आरोप लगाया है. इसके बाद माना जा रहा है कि कुशवाहा समाज नीतीश कुमार का साथ छोड़ सकता है.

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