बिहार का कोई भी इलाका ऐसा नहीं है जहां वैध या अवैध शराब न बेची जाती हो और लोग इसका सेवन न करते हों. ऐसे में गया जिले के एक गांव के लोगों ने अनोखी पहल करते हुए न केवल शराब बेचने वालों का, बल्कि पीने वालों का भी हुक्का-पानी बंद करने का निर्णय लिया है. चिकित्सक भी इनका इलाज नहीं कर रहे हैं.
गया जिले के खिजरसराय थाना क्षेत्र के हथियांवा गांव के लोगों की यह पहल अब इस इलाके में चर्चा का विषय बन गई है. गांव के लोगों ने अवैध शराब बेचने और पीने वालों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है. इसके तहत ग्राम समिति बनाकर ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है. ग्राम समिति के संयोजक शिवबालक चौधरी ने बताया, 'गांव में शराब बनाने और पीने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा था.
शराब पीने से कई लोगों की मौत हो चुकी थी तथा शराबियों के कारण गांव की महिलाओं का अपने घर से निकलना दूभर हो गया था.' इसे रोकने के लिए गांव के ही कुछ लोगों की मदद से ग्राम समिति का निर्माण कराया गया और शराब बेचने व पीने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया. यही नहीं, लोगों को शराब नहीं पीने के लिए जागरूक करने का भी कार्य शुरू किया गया है. गांवों में जुलूस निकालकर और बैठकें कर लोगों को जागृत किया जा रहा है.
ग्राम समिति के सदस्य राजबल्लभ प्रसाद कहते हैं कि पुलिस द्वारा इन पर कोई कार्रवाई नहीं करने की स्थिति में गांव के ही लोगों को खड़ा होना पड़ा. उन्होंने कहा कि गांव में 13 ऐसे परिवारों की पहचान की गई है, जिन पर अवैध शराब बनाने और बेचने का आरोप सिद्ध हुआ है. इन परिवारों का बैठक में सामाजिक बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया.
उन्होंने बताया कि इन परिवारों के लोगों से न केवल गांव के अन्य लोग बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि दुकानदार इन्हें सामान भी नहीं बेच रहे हैं और न ही चिकित्सक इनका इलाज कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'नशा करने वालों को सजा देने के लिए सामुदायिक भवन को जेल की शक्ल दी गई है, जिसमें इन शराबियों को तब तक रखा जाता है जब तक वे भविष्य में शराब न पीने का संकल्प नहीं ले लेते. इसके बाद ऐसे शराबियों पर आर्थिक दंड लागकर उन्हें छोड़ा जा रहा है.'
इधर, लोगों की इस अनोखी पहल का प्रभाव अब गांव में दिखने लगा है. ग्रामीण राजेंद्र कहते हैं कि ऐसी सजा मिलने से कई लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है और गांव में शराब की बिक्री पूरी तरह बंद हो गई है. गांव में लड़ाई-झगड़ा बंद है. कई ऐसे घरों में जहां शराब के कारण चूल्हे नहीं जलते थे, वहां अब सुबह-शाम खाना बनने लगा है.
गांव के लोगों द्वारा बहिष्कार करने के बाद शराब विक्रेता भी कोई दूसरा व्यवसाय करने की सोचने लगे हैं. कल तक शराब बेचकर जीविकोपार्जन करने वाले सत्येंद्र चौधरी कहते हैं कि गांव के लोगों का अगर यही निर्णय है तो अब व्यवसाय बदलना ही होगा. आखिर गांव को छोड़कर कहां जाएंगे? वैसे, चौधरी भी मानते हैं कि शराब बुरी चीज है.
बहरहाल, करीब ढ़ाई हजार आबादी वाले इस गांव की अनोखी पहल का प्रभाव आसपास के गांवों पर भी पड़ रहा है. आसपास के गांव वाले भी हथियांवा गांव में आकर ऐसी पहल को समझ रहे हैं और उसके प्रभाव को नजदीक से जानने की कोशिश कर रहे हैं. लोग कहते हैं कि नक्सल प्रभावित इस जिले के गांवों में अब अगर अवैध शराब की दुकानें बंद हो जाएं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.