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'लोक सेवा अधिकार कानून' दिला रहा दलालों से मुक्ति

बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज के अमित कुमार बिहार में लागू लोक सेवा के अधिकार कानून की प्रशंसा करते नहीं अघाते. वह कहते हैं कि अगर यह कानून नहीं होता तो वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की नौकरी हासिल नहीं कर पाते, क्योंकि इतनी आसानी से उन्हें जाति और आवासीय प्रमाणपत्र जो नहीं मिल पाता.

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बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज के अमित कुमार बिहार में लागू लोक सेवा के अधिकार कानून की प्रशंसा करते नहीं अघाते. वह कहते हैं कि अगर यह कानून नहीं होता तो वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की नौकरी हासिल नहीं कर पाते, क्योंकि इतनी आसानी से उन्हें जाति और आवासीय प्रमाणपत्र जो नहीं मिल पाता.

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अमित कहते हैं कि उन्होंने इन दोनों प्रमाणपत्रों के लिए ऑनलाइन आवेदन किया और 21वें दिन प्रखंड कार्यालय से जाकर प्रमाणपत्र ले आए. यह कहानी केवल एक अमित की नहीं है. जिन्हें जाति और आवासीय प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़े और घर बैठे ही ऑनलाइन आवेदन करने पर उनके प्रमाणपत्र बन गए.

करीब एक वर्ष पूर्व 15 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोक सेवा अधिकार कानून लागू करने की घोषणा की थी और 16 अगस्त, 2011 से यह लागू हुआ. पिछले एक वर्ष में इस कानून का इस्तेमाल कर दो करोड़ प्रमाणपत्र हासिल किए गए.

इस कानून ने आज गांवों से लेकर शहरों तक के लोगों को एक अदद प्रमाणपत्र के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने से आजादी दिला दी है. सामान्य प्रशासन विभाग में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक यह कानून तो वैसे 10 विभागों की 50 तरह की सेवाओं के लिए लागू है परंतु सबसे अधिक आवेदन आवासीय और जाति प्रमाणपत्र को लेकर आए हैं.

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पिछले एक वर्ष में ऑनलाइन इन तीनों प्रमाणपत्रों के लिए 1.25 करोड़ आवेदन आए जिसमें से 1.23 करोड़ लोगों को प्रमाणपत्र दे दिया गया, जबकि ऑनलाइन जाति प्रमाणपत्र के लिए 5.50 लाख आवासीय प्रमाणपत्र के 8.50 लाख और आय प्रमाणपत्र के चार लाख से ज्यादा आवेदनपत्र आए. इस तरह इन प्रमाणपत्रों के लिए ऑनलाइन करीब 18 लाख आवेदनपत्र आए, जिसमें से 16.60 लाख आवेदनों का निपटारा कर दिया गया है.

पूर्व में आय, आवासीय और जाति के लिए 21 दिनों तक लोगों को इंतजार करना पड़ता था परंतु 15 अगस्त को मुख्यमंत्री ने अब इन प्रमाणपत्रों को बनाने की समय सीमा घटाकर 14 दिन करने की घोषणा की है. राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इस सेवा का मुख्य उद्देश्य सेवा के लिए लम्बी अवधि तक इंतजार से लोगों को राहत दिलाना है.

इस एक्ट में तत्काल सेवा का प्रावधान किया गया है. वह हालांकि मानते हैं कि इसके लिए जितनी आधारभूत संरचना की आवश्यकता है उतनी अभी भी नहीं है, जिस कारण कार्य में कई व्यवधान पड़ते हैं. वैसे कई क्षेत्रों में अब भी इस कानून का समुचित पालन नहीं करने की शिकायत भी आती रहती है.

एक अधिकारी भी मानते हैं कि दफ्तरों के इर्द-गिर्द अब भी दलालों का शिकंजा बदस्तूर जारी है. कई जिलों से यह शिकायत है कि जल्दबाजी में प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए लोग नाजायज रकम खर्च करते हैं. वह कहते हैं कि आज भी कई कार्यालयों में अधिकारियों और कर्मचारियों के काम करने का ढर्रा नहीं बदला है. अधिकारियों के अनुसार समय-समय पर प्रखंड कार्यालयों या अन्य कार्यालयों में भी बिचौलियों की गिरफ्तारी की जा रही है.

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एक ओर जहां देशभर में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए आंदोलन और चर्चा का दौर जारी है वहीं इस एक्ट के आने से भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाने का बिहार में भी प्रयास किया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि इस एक्ट का प्रथम चरण के तहत 10 विभागों की 50 तरह की सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं.

गौरतलब है कि इस एक्ट में सेवा के लिए सात से तीस दिन का समय रखा गया है. प्रावधान के मुताबिक नियत समय पर सेवा नहीं मिलने पर अधिकारी की शिकायत की जा सकती है जिसमें दोषी पाए जाने पर प्रतिदिन के हिसाब से अधिकारी से 250 रुपये और अधिकतम 5,000 रुपये वसूले जाएंगे. अब तक इस मामले में एक दर्जन से जयादा अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई है.

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