आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में अलग-थलग पड़ गए हैं. चुनाव के पहले उनके सहयोगी राम विलास पासवान ने उनसे पल्ला झाड़ लिया और अब कांग्रेस भी उनसे रिश्ते तोड़ने को अकुला रही है. यह खबर द इंडियन एक्सप्रेस ने दी है.
अखबार के मुताबिक बिहार प्रदेश कांग्रेस अब लालू से पीछा छुड़ाने को तैयार दिखती है. उसका कहना है कि लालू यादव से हाथ मिलाने से उसके वोट शेयर में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, उलटे यह घटा है. कांग्रेस ने बिहार में 12 सीटों पर चुनाव लड़ा था और लालू की पार्टी ने 27 सीटों पर. एक सीट एनसीपी को दी गई थी. कांग्रेस को कुल वोट का 8 प्रतिशत मिला और पार्टी दो सीटों पर विजयी रही. आठ सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही तथा तीन पर तीसरे नंबर पर.
बुधवार को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई और इस बात पर पूर्ण सहमति बनी कि पार्टी आरजेडी से पूरी तरह से नाता तोड़ ले. ज्यादातर नेताओं ने कहा कि 2015 के चुनाव में पार्टी को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए या फिर नीतीश कुमार से हाथ मिला ले. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि हमें 2009 में 10.26 प्रतिशत वोट मिले थे, जब पार्टी अकेले चुनाव लड़ी थी. इस बार पार्टी अपनी सबसे सुरक्षित सीट सासाराम भी हार गई है. इसका मतलब यह हुआ कि लालू प्रसाद से हमें कोई फायदा नहीं हुआ. बिहार में पार्टी बिना मांगे ही जेडीयू सरकार का सपोर्ट कर रही है.
एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने बताया कि हमारे कई उम्मीदवारों की हार से हमें लगा कि आरजेडी के समर्थन के बावजूद हमें उनके वोट नहीं मिले. ज्यादातर नेता संबंध तोड़ने के पक्ष में हैं.
लालू के बोल
नई दिल्ली में लालू यादव ने कहा कि मेरी सोनियाजी से बात हुई थी, वहां ऐसी कोई बात नहीं सुनाई दी. ये बातें वो लोग कर रहे हैं जिन्हें लोक सभा का टिकट नहीं मिला. बिहार में कांग्रेस के साथ हमारा गठबंधन बना रहेगा. लालू यादव ने यह भी कहा कि हमने जेडीयू से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है. उनकी तो 25 सीटों पर जमानत जब्त हो गई जबकि हमारी एक सीट पर हुई.