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अमेरिकी रिसर्च ने कहा-लीची खाने से बच्चों की हो रही मौत, मुजफ्फपुर के डाक्टरों ने उठाए सवाल

मुजफ्फरपुर, बिहार का शाही लीची बहुत लजीज होता है, लेकिन हर वर्ष जब लीची का फल पेड़ों पर लाल लाल रंग बिखेरता है तब एक बीमारी बच्चों पर मौत बन कर टूटती है. हाल ही में अमेरिका की एक मशहूर पत्रिका में अमेरिकी वैज्ञानिकों के हवाले से रिसर्च छपा है कि ये मौतें लीची खाने से हुई हैं. हालांकि मुजफ्फरपुर के डॉक्टर इससे सहमत नहीं हैं.

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लीची काफी लोकप्रिय है
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मुजफ्फरपुर, बिहार का शाही लीची बहुत लजीज होता है, लेकिन हर वर्ष जब लीची का फल पेड़ों पर लाल लाल रंग बिखेरता है तब एक बीमारी बच्चों पर मौत बन कर टूटती है. हाल ही में अमेरिका की एक मशहूर पत्रिका में अमेरिकी वैज्ञानिकों के हवाले से रिसर्च छपा है कि ये मौतें लीची खाने से हुई हैं. हांलाकि मुजफ्फरपुर के डॉक्टर इससे सहमत नहीं है. उनका कहना है कि जो पीड़ित बच्चे आते हैं, उनमें ग्लूकोज की मात्रा स्थिर नहीं रहती है, सबका लक्षण एक जैसा नहीं होता. पिछले साल लीची का फल आने से पहले ही बच्चों की मौतें शुरू हो गई थी.

मई और जून के महीने में मुजफ्फपुर सैकड़ों बच्चे बीमार पड़ते हैं और रहस्यमय बीमारी से सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है. हर वर्ष गर्मी का मौसम कहर बन कर आता है. तीन साल के रिसर्च के बाद भारत और अमेरिकी वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे की खाली पेट लीची खाने से यह संदिग्ध बीमारी बच्चों में हो रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक लीची में हाईपोग्लिसीन ए और मिथाईलेन्साईक्लोप्रोपाईल्गिसीन नाम का जहरीला तत्व होता है. अस्पाताल में भर्ती हुए ज्यादातर बच्चों के खून और पेशाब की जांच से पता चला कि उनमें इन तत्वों की मात्रा मौजूद थी. ज्यादातर बच्चों ने शाम का भोजन नही किया था और सुबह ज्यादा मात्रा में लीची खाई. ऐसी स्थिति में इस तत्वों का असर घातक होता है. बच्चों में कुपोषण और पहले से बीमार होने की वजह से इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.

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वैज्ञानिको का यह शोध प्रकशित होने के बाद एसकेएमसीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गोपाल शंकर सहनी ने इसे एक सिरे से ख़ारिज किया है. डॉक्टर गोपाल शंकर सहनी अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि जो पीड़ित बच्चे आते हैं उनमें ग्लुकोज की मात्रा स्थिर नहीं रहती, कोई भी लक्षण एक जैसा नहीं रहता. बात लीची करें तो पिछले वर्ष लीची के फल पेड़ में आने से पहले ही कुछ बच्चे उसी लक्षण के अस्पताल आए और कुछ की मौत भी हुई. डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी से तीन वर्ष से लेकर 12 वर्ष के बच्चे प्रभावित होते हैं. 3 वर्ष का बच्चा कहां से लीची खाता होगा. जिले के सिविल सर्जन डॉक्टर ललिता सिंह ने भी सहमति जताते हुए कहा कि ग्लुकोज लेवल घटने से ग्रसित मरीज आते हैं. उन्होंने भी लीची के वजह को सिरे से ख़ारिज कर दिया.

2014 में इस बीमारी से 390 बच्चे ग्रसित हुए थे उसमें से 122 की मौत हो गई. जब ये बीमारी आती है तो नेताओं का दौरा होता है रिसर्च करने के लिए देश-विदेश से टीमें आती है. रिसर्च के लिए मुजफ्फरपुर में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और अमरीका से सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की टीम बीमारी के दौरान आई और उन इलाकों में भी रिसर्च भी किया. सरकार बीमारी के नाम को ही बदलते रही पहले दिमागी बुखार और फिर हाइपोग्लाइसीमिया और फिर एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम रखा, लेकिन तंग हक़ीक़त ये है कि बीमारी का पता नहीं चला पाया और बच्चों की मौत का सिलसिला चलता रहा. हांलाकि भारत सरकार ने इस शोध को प्रमाणित मानते हुए निर्देश भी जारी किया है कि खाली पेट लीची का खाने से परहेज करे और संतुलित भोजन ले.

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