बिहार की सियासत में बीजेपी किसी बैसाखी के सहारे के बजाय अपने खुद के दम पर खड़े होने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. बीजेपी ने बिहार में पहली बार अपने सभी सात मोर्चों की संयुक्त राष्ट्रीय कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक 30-31 जुलाई को कर रही है, जिसमें देश भर जिसमें 700 प्रतिनिधि शामिल होंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष तक शिरकत करेंगे.
बीजेपी की केंद्रीय फ्रंट संगठनों की संयुक्त बैठक में किसान मोर्चा, ओबीसी मोर्चा, अनुसूचित जाति मोर्चा, महिला मोर्चा, युवा मोर्चा, अनुसूचित जनजाति मोर्चा और अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष, महासचिव और अन्य पदाधिकारी शामिल होंगे. साथ ही बीजेपी ने 28-29 जुलाई को बिहार की सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने नेताओं को भेजने की तैयारी की है ताकि लोगों तक पहुंच बढ़ाई जा सके. बीजेपी की यह कवायद ऐसे समय हो रही है जब बिहार में उसकी सहयोगी जेडीयू के साथ रिश्ते तल्ख चल रहे हैं.
बताया जा रहा है कि करीब 10 साल के बाद बीजेपी बिहार के पटना में किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर रही है. पटना के ज्ञान भवन में होने वाले बीजेपी के राष्ट्रीय मोर्चो की संयुक्त कार्यकारिणी की बैठक में देश भर से पार्टी नेता और कार्यकर्ता शामिल होंगे. जेपी नड्डा 30 जुलाई शनिवार को बैठक का उद्घाटन करेंगे तो अमित शाह 31 जुलाई रविवार को कार्यक्रम के समापन में शामिल होंगे. राष्ट्रीय मोर्चो की संयुक्त बैठक के दौरान कुल 12 सत्र रखे गए हैं. इसमें एक प्रशिक्षण सत्र और सामाजिक-राजनीतिक विषय पर चर्चा होगी.
वहीं, बीजेपी इसी राष्ट्रीय मोर्चो की संयुक्त कार्यकारिणी की बैठक के बहाने बिहार में अपनी सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने की रणनीति बनाने जा रही है. बीजेपी राष्ट्रीय स्तर के नेताओं और पदाधिकारिओं को 28-29 जुलाई के दौरान पूरे बिहार के 200 विधानसभा क्षेत्रों में दो दिन का प्रवास करा रही है. बीजेपी ने 2025 में होने वाले अगले विधानसभा चुनावों की तैयारी के तहत रूप रेखा बनाई है.
बीजेपी बिहार की जिन 200 सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, उसमें वो भी सीटें शामिल हैं, जहां 2020 के चुनाव में जेडीयू 43 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इस तरह बीजेपी अपने सहयोगी जेडीयू की जीती सीटों पर फोकस कर रही है. इन सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में दो दिन के प्रवास के दौरान पार्टी के राष्ट्रीय फ्रंट संगठनों के नेता केंद्र सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों के साथ बातचीत करने के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक चर्चा करेंगे.
बता दें कि बीजेपी भले ही केंद्र की सत्ता में आठ साल से काबिज हो, लेकिन बिहार में अभी तक अपने दम पर न तो सरकार बना पाई है और न ही अपना मुख्यमंत्री. नीतीश कुमार के सहारे ही बीजेपी बिहार की सत्ता में बनी हुई है. 2020 के चुनाव में बीजेपी जरूर 73 सीटें जीतकर जेडीयू से बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही बैठन में कामयाब रहे.
बिहार के कुल 243 विधानसभा सदस्यों में से बीजेपी के पास 77 तो जेडीयू के 45 विधायक हैं. वहीं, आरजेडी के पास 79 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के 19 और बाकी अन्य दल के हैं. 2020 में बीजेपी और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ी थी. इसके बावजूद सत्ता में वापसी के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी, जिसके बाद कहीं जाकर सरकार बची थी.
वहीं, 2019 के लोकसभा सीटों के नतीजे को देखें तो एनडीए ने विपक्ष का सफाया कर दिया था. बीजेपी 17 और जेडीयू 16 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि 6 सीटें रामविलास पासवान की एलजेपी ने जीती थी. विपक्ष महागठबंधन में कांग्रेस ही एक लोकसभा सीट जीतने में सफल रही थी जबकि आरजेडी खाता भी नहीं खोल सकी थी. 2020 के चुनाव में आरजेडी सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई थी.
एनडीए में बीजेपी ने सबसे बड़ा दल होने के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी जेडीयू के नेता नीतीश कुमार को सौंप दी थी. इसके बाद भी दलों के बीच सियासी तल्खी बनी हुई है. जातिगत जनगणना से लेकर एनआरसी-एनपीआर सहित कई मुद्दों पर नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग स्टैंड लिया था. इस तरह जेडीयू और बीजेपी में टकराव कई मौके पर सार्वजनिक रूप से दिखा है.
वहीं, जेडीयू संसदीय बोर्ड के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले दिनों कहा था कि 2024 में लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन रहेगा या नहीं रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है. भविष्य की बात अभी नहीं कह सकता हूं. इतना ही नहीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में नीतीश कुमार के शामिल नहीं होने से भी तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे थे.
जेडीयू के साथ तल्ख होते रिश्तों के बीच बीजेपी बिहार में अपने सियासी आधार को मजबूत करने के लिए एक्सरसाइज शुरू कर रही है. बीजेपी अपने सभी सातों राष्ट्रीय मोर्चे की संयुक्त बैठक कर रही है, जिसमें दलित, ओबीसी, किसान सभी फ्रंट के नेता शामिल हो रहें. इन्हीं संगठनों के नेताओं को बीजेपी सूबे की 200 विधानसभा क्षेत्रों में दो दिन प्रवास कराकर राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने का दांव चला है.
बिहार की सियासत जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ऐसे में बीजेपी ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए रणनीति तैयार की है. बिहार में अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से संबंधित लोगों के वोटों का एक बड़ा हिस्सा, जो सूबे की कुल आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है, लेकिन वो बंटा हुआ है. अतिपिछड़ा वोटों का साधने की सभी दलों में होड़ है. इसी तरह से दलित वोटों को भी साधने की कवायद में सभी हैं. ऐसे में बीजेपी बिहार में अपने सातों मोर्चा की संयुक्त बैठक पहली बार कराकर सियासी संदेश देने की रणनीति मानी जा रही है?