लोकसभा चुनाव दस्तक देने को तैयार है. ऐसे में लोगों के बीच इस बात को लेकर उत्सुकता काफी बढ़ गई है कि कौन-सी पार्टी किसके साथ मिलकर खिचड़ी पकाएगी. अभी से ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि चुनाव के बाद बनने वाली सरकार टिकाऊ हो पाएगी या लुंज-पुंज बैसाखियों के सहारे ही टिकी होगी.
देश की राजनीति की बयार किस ओर बह रही है या यह किस ओर बह सकती है, इसे लेकर काफी कुछ अंदाजा मिल जा रहा है. पर एक प्रदेश ऐसा है, जिसे सियासतदान 'केंद्रीय राजनीति की धुरी' तक की संज्ञा देते हैं. ऐसा अगर न भी मानें, फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि 'पुरबइया बयार' से सियासत की हवा कई बार बदली है, अब भी बदल सकती है. जाहिर है, यहां बिहार की ही बात हो रही है.
बिहार में कौन-सी पार्टी किससे कितना सट रही है या कितनी दूर हट रही है, वोटर किसे भाव दे रहा है, किसे ताव दे रहा है, इन बातों की ठीक-ठीक पड़ताल तो ग्राउंड जीरो से ही की जा सकती है. हम बिहार से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा की 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' के पन्ने आपके सामने खोलकर रख रहे हैं. उनके चुनावी विश्लेषण को आप कई किस्तों में चटखारे लेकर पढ़ सकेंगे. पेश है पहली किस्त...
1. ''मधुबनी और पूर्णिया से केजरी उतने चमकदार नहीं दिखाई देते, जितने मयूर विहार से दिखते थे. कुछ दिनों से गांव की तरफ हूं और मधुबनी कलक्ट्रिएट के कुछ शातिर दलाल 'आप' में शामिल हो गए हैं. जमीन पर आप का संगठन जीरो है और ठेके पर काम करने वाले बहुत सारे सरकारी शिक्षक आप का मेम्बरशिप फार्म भरवा रहे थे. हां, अत्यधिक जागरूक लोगों के बीच केजरीवाल टॉकिंग प्वाइंट जरूर बने हैं. लेकिन लोग कहते हैं कि वे बीजेपी का वोट काटकर कांग्रेस को मदद पहुंचाएंगे.''
''उधर पूर्णिया से अररिया और फारबिसगंज की तरफ होर्डिंग्स पर मोदी ही मोदी ही टंगे हैं. लालू-नीतीश कम हैं. लेकिन गांव के पंडीजी (पंडितजी) ने कहा कि बाकी तो ठीक है, लेकिन मोदी की भाषा थोड़ी 'रफ' लगती है!''
2. ''फेंकन ऋषिदेव पूर्णिया में रिक्शा चलाता है और लालू को किसी कीमत पर वोट नहीं देना चाहता. वजह? दस साल पहले लालू राज में किसी ने घर लौटते वक्त 50 रुपया छीन लिया था, अब ऐसा नहीं है. कमल को दोगे? सीधा जवाब न देकर डिप्लोमेटिक हो जाता है. कांग्रेसी प्रवक्ताओं की तरह दार्शनिक भाव में कहता है कि हार-जीत तो लगी रहती है, जो जीतकर गए वो भी धरती के अंदर हैं. मैंने पूछा, ऋषिदेव क्या होता है? बोला कि मुसहर हूं, तिरहुतिया मुसहर....मुसहरों मे सबसे बड़ा! मगहिया मुसहर (मगध का मुसहर) अगर लाख टका भी दहेज दे, तो शादी नहीं करूंगा. फेंकन हैप्पी मूड में था. रिक्शे का किराया दिया, तो तीन बार सलाम ठोका.'' (कई किस्तों में जारी)
(यह विश्लेषण स्वतंत्र पत्रकार सुशांत झा ने लिखा है. वह इन दिनों 'बिहार डायरी बिफोर इलेक्शन' के नाम से एक सीरीज लिख रहे हैं.)