चुनावी वर्ष में प्रवेश कर चुका बिहार इन दिनों भारी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है. ताजा हालात ये हैं कि एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, जिन्हें जेडीयू ने विधायक दल का नेता घोषित कर दिया है. जबकि दूसरी तरफ मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, जिन्होंने मुख्यमंत्री पद से हटने से इनकार ही नहीं किया बल्कि नीतीश से बगावत करते हुए राज्यपाल से पहले विधानसभा भंग करने की सिफारिश की और अब सरकार द्वारा सदन में बहुमत साबित कर देने का दावा कर रहे हैं. नीतीश का दोबारा मुख्यमंत्री बनने के दांव में दम कितना है इसके लिए हमें उनके दांव के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर नजर डालनी होगी.
दांव के सकारात्मक पहलू-
1. चुनाव से ठीक पहले नीतीश दोबारा सत्ता में आते हैं तो उनके पास अपने काम से अपने वोटरों को लुभाने का मौका होगा. वर्तमान में नीतीश सिर्फ विधान परिषद सदस्य हैं और जेडीयू पर लगातार टूट का खतरा मंडरा रहा है. वे बयान भी कुछ ऐसा ही दे रहे हैं.
2. मुलायम सिंह द्वारा महागठबंधन को लेकर लगातार ना-नुकुर करने और लालू द्वारा भी बहुत उत्साह नहीं दिखाने के कारण नीतीश के पास फिलहाल खुद को मजबूत करने का एक यही रास्ता था.
3. जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से उनके खिलाफ पार्टी के अंदर से खड़े हो रहे विरोध के स्वर शांत हो जाएंगे.
4. अगर प्रदेश के राष्ट्रपति शासन लगता है तो भी ये एक तरह से नीतीश की जीत ही मानी जाएगी क्योंकि वे कहीं न कहीं लोगों को ये भरोसा दिलाने में कामयाब हो जाएंगे कि पर्दे के पीछे से बीजेपी ही खेल खेल रही थी.
5. अगर नीतीश दोबारा सत्ता में काबिज हो जाते हैं तो उनके पास संगठन को मजबूत करने, मांझी सरकार के कार्यकाल में हाथ से छूटते जनाधार को वापस लाने और सुशासन बाबू की अपनी छवि को मजबूत करने का मौका मिल जाएगा.
दांव के नकारात्मक पहलू-
1. जिस मुख्यमंत्री की सीट को उन्होंने नैतिकता की दुहाई देते हुए अपने से दूर किया था, आज वे जनता में उसी के लिए आतुर दिख रहे हैं.
2. सीएम जीतन राम मांझी को हटाने का नीतीश कुमार कोई ठोस कारण जनता में नहीं दे सके हैं.
3. नीतीश लगातार जीतन राम मांझी पर आरोप लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक जीतन राम मांझी ने उनके खिलाफ तोलमोल कर बयान दे रहे हैं. राज्यपाल पर बीजेपी के निर्देशन में काम करने का आरोप भी कहीं न कहीं नीतीश की आतुरता की ओर इशारा कर रहा है. खुद राज्यपाल कह चुके हैं कि मांझी के प्रस्ताव पर दो ही दिन में उनके द्वारा जब निर्णय ले लिया गया तो विधायकों की परेड कराने की क्या जल्दी थी.
4. सीएम मांझी लगातार ऐसी लोक-लुभावन घोषणाएं करते जा रहे हैं और नीतीश अगर मुख्यमंत्री बनते हैं तो ये घोषणाएं उनके लिए गले की फांस ही साबित हो सकती हैं क्योंकि इन पर रोक लगाना या खारिज करना, वोट बैंक से खेलना ही होगा.
5. मांझी की कुर्सी पर आए संकट के कारण बिहार में आरक्षण में महादलित की अलग से व्यवस्था देने वाले नीतीश के हाथ से महादलित वोटबैंक खिसकने का बड़ा संकट खड़ा हो गया है.