बिहार के मुजफ्फरपुर में 1994 में IAS जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल किया है. इस हलफनामे में आनंद मोहन ने कहा है कि जेल से उसकी रिहाई का फैसला मनमाना नहीं कहा जा सकता. ये स्थापित वैधानिक प्रकिया का पूरी तरह पालन करते हुए सोच समझकर लिया गया फैसला है.
आनंद मोहन ने कहा है कि उनकी रिहाई तब संभव हो पाई, जब वो इस रिहाई का हकदार होने के लिए न्यूनतम समय पहले ही जेल में गुजार चुका है. इसलिए ये कहना कि सरकार ने उसको फायदा पहुंचाने के लिए ये सारी कवायद की है ये सरासर गलत है. इसलिए उनकी रिहाई को चुनौती देने वाली जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी की ओर से दायर याचिका कानूनी प्रकिया का दुरुपयोग है.
बता दें कि किसी दोषी को रिहाई के फैसले को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि उसकी रिहाई के चलते पीड़ित के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है. आनंद मोहन के हलफनामे के मुताबिक जेल नियमावली में बदलाव करने का अधिकार सरकार की कार्यकारी शक्तियों के दायरे में आता है. ये सरकार का विशेषाधिकार है.
'मेरे खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई'
इस अधिकार के तहत सरकार ने अगर किसी दोषी की रिहाई का फैसला किया है तो इस फैसले की न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है. आनंद मोहन ने अपने बारे में लिखा है कि जेल में कैद के दौरान उसका व्यवहार हमेशा अच्छा रहा. जेल में रहते कोई भी शिकायत उसके व्यवहार को लेकर नहीं की गई. जेल में रहते हुए भी उसने पढ़ाई लिखाई की और किताबें भी लिखी हैं.
'मेरा राजनीतिक जीवन बर्बाद हुआ'
वो साल 2002 और 2012 दोनों समय के जेल नियमों के मुताबिक इस समय रिहाई का अधिकारी है. आनंद मोहन ने कहा है कि उसने 15 साल जेल के अंदर गुजारे हैं. उसका पूरा सक्रिय राजनीतिक जीवन जेल के अंदर बर्बाद हो गया. अब 67 साल की इस उम्र में उसके पास आगे कुछ करने के लिए बचा नहीं है.