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'15 साल की सजा काट चुका हूं', जेल से रिहाई के बाद बाहुबली आनंद मोहन का पहला इंटरव्यू

बाहुबली आनंद मोहन सिंह की जेल से परमानेंट रिहाई होने के बाद आजतक ने उनसे एक्सक्लूसिव बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि जो लोग अदालत के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, उनके खिलाफ वह अवमानना का केस लेकर फिर कोर्ट जा सकते हैं. जो लोग रिहाई का विरोध कर रहे हैं, वह कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं.

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आनंद मोहन
आनंद मोहन

बिहार के पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन को जेल से परमानेंट रिहाई मिल गई है. जेल से निकलने के बाद आनंद मोहन ने आजतक को एक्सक्लूसिव इंटव्यू देते हुए कई अहम बातें कही हैं. उन्होंने कहा है कि जो लोग अदालत के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, उनके खिलाफ वह अवमानना का केस लेकर फिर कोर्ट जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट लगातार कानून में एकरूपता का निर्देश देता रहता है.

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आनंद मोहन ने आगे कहा,'मेरी अवमानना को छोड़ भी दें तो जो लोग मेरी रिहाई का विरोध कर रहे हैं, वह कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं.' उन्होंने कहा कि 2007 में उन्हें सजा मिली थी. इसके बाद 2012 में एक एक्ट आया. इसके आधार पर ही उन्हें रिहाई मिली है. वैसे भी अजीवन कारावास का मतलब, जिंदगी भर नहीं होता है. इसका मतलब होता है 20 साल की सजा.

उन्होंने आगे कहा,'अगर किसी भी कैदी का आचरण अच्छा होता है तो 14 साल की सजा काटने के बाद उसे रिहा किया जा सकता है और अपने केस में मै 15 साल की सजा काट चुका हूं. डीएम जी. कृष्णैया की मौत पर आनंद मोहन ने कहा कि उनकी मौत का उन्हें भी दुख है. 

कौन थे जी कृष्णैया?

बता दें कि आनंद मोहन जिस जी. कृष्णैया की बात कर रहे हैं, वह मूलत: तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे. इनकी हत्या के मामले में ही आनंद मोहन जेल से बाहर आए हैं. जी. कृष्णैया बिहार कैडर में 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी थे. वह दलित समुदाय से आते थे और बेहद साफ सुथरी छवि वाले ईमानदार अफसर थे. साल 1994 में जी. कृष्णैया गोपालगंज के जिलाधिकारी यानी डीएम थे.

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प्रदर्शन कर रही थी भीड़

चार दिसंबर को उत्तरी बिहार का एक कुख्यात गैंगस्टर छोटन शुक्ला मारा गया था. उसकी हत्या की गई थी. जिसकी वजह से मुजफ्फरपुर इलाके में भारी गुस्सा था. लोग सरकार और पुलिस से खासे नाराज थे और छोटन शुक्ला की लाश को सड़क पर रखकर प्रदर्शन कर रहे थे. उस वक्त हाइवे पर धरना-प्रदर्शन करने वाले लोगों की संख्या हजारों में थी.

अमेरिका
बाहुबली आनंद मोहन के बेटे चेतन की सगाई में सीएम नीतीश कुमार समेत कई पार्टियों के नेता पहुंचे थे.

गोपालगंज से लौट रहे थे DM

पांच दिसम्बर 1994 को गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया एक विशेष बैठक में भाग लेकर गोपालगंज लौट रहे थे. वो अपनी लालबत्ती वाली सरकारी कार में सवार थे. उनके साथ एक सरकारी गनर और ड्राइवर कार में मौजूद थे. उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि आगे हाइवे पर क्या हंगामा हो रहा है.

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गुस्साई भीड़ ने घेर ली थी गाड़ी

जी. कृष्णैया की सरकारी कार तेजी से हाइवे पर दौड़ रही थी. जैसे ही कार प्रदर्शनकारियों के करीब पहुंची तो वहां जमा भीड़ लाल बत्ती लगी सरकारी कार देखकर भड़क गई. गुस्साए लोगों ने उनकी कार पर पथराव शुरू कर दिया. इस दौरान कार का चालक और सरकारी गनर उन्हें बचाने की कोशिश करने लगे. लेकिन भारी भीड़ के सामने वो ज्यादा देर नहीं टिक सके.

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मार-पीट के दौरान मारी गई गोली

जी. कृष्णैया चीख-चीखकर भीड़ को बता रहे थे कि वो गोपालगंज के डीएम हैं, मुजफ्फरपुर के नहीं. लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी, उनके साथ मारपीट की गई और भीड़ ने डीएम कृष्णैया को जबरन कार से बाहर खींच लिया और उनके साथ मार-पीट होने लगी. कुछ देर बाद ही हिंसक भीड़ ने खाबरा गांव के पास आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया. बताया गया कि भीड़ में ही पिटाई के दौरान उन्हें गोली मार दी गई थी.

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मौके से मिली थी खून से सनी लाश

बाद में पुलिस ने मौका-ए-वारदात से उनकी खून से सनी लाश बरामद की थी. डीएम की हत्या की खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई थी. जी. कृष्णैया के मर्डर ने बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सनसनी फैला दी थी. इस हत्याकांड में अज्ञात लोगों के साथ-साथ गैंगस्टर छोटन शुक्ला के भाई को भी हत्या का आरोपी बनाया गया था.

अमेरिका
बाहुबली आनंद मोहन.

गले की हड्डी बन गया था ये केस

इल्जाम था कि उसी ने डीएम जी. कृष्णैया के सिर में सटाकर गोली मारी थी. बाद में इस हाई प्रोफाइल मर्डर केस में नाम आया था माफिया गैंगस्टर और पूर्व सांसद आनंद मोहन का.. यूं तो आनंद मोहन सिंह पर कई संगीन आरोप लगे. अधिकतर मामले या तो हटा दिए गए या वो बरी हो गए. जी. कृष्णैया की हत्या का मामला आनंद मोहन के लिए गले की हड्डी बन गया.

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आनंद मोहन ने भीड़ को उकसाया?

आरोप लगा कि डीएम की हत्या करने वाली उस भीड़ को कुख्यात आनंद मोहन ने ही उकसाया था. यही वजह थी कि पुलिस ने इस मामले में आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को नामजद किया था. ये केस अदालत में चलता रहा और साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन को दोषी करार दिया और फांसी की सजा सुना दी.

SC ने खारिज कर दी थी अपील

शायद, आजाद भारत में यह पहला मामला था, जब एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. साल 2012 में आनंद मोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की अपील की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. तभी से वो जेल में बंद थे और 

बिहार सरकार ने बदला कानून

बिहार की वर्तमान सरकार ने कुख्यात आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकालने की तरकीब निकाली. राज्य सरकार ने इसी साल 10 अप्रैल को जेल नियमावली में एक संशोधन कर डाला और उस खंड को हटा दिया, जिसमें अच्छा व्यवहार होने के बावजूद सरकारी अफसरों के कातिलों को रिहाई देने पर रोक थी. राज्य गृह विभाग ने बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 (1) ए में संशोधन की जानकारी एक नोटिफिकेशन जारी करके दी थी.

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